हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने एन. चंद्रबाबू नायडू राजधानी की पहेली से जूझ रहे हैं. एक ओर वे नई राजधानी को लेकर अब भी अनिर्णय की स्थिति में हैं, साथ ही उनकी दूसरी चिंताएं अपने मंत्रिमंडिल के सहयोगियों को ऑफिस मुहैया कराने और उन वादों को पूरा करने की हैं जो उन्होंने चुनावों से पहले किए थे. असल में इन वादों को पूरा करने के लिए उन्हें कई बड़े बिल जल्दी से पारित कराने होंगे.
नायडू को नई राजधानी जाने में काफी समय लगने वाला है जिसे विजयवाड़ा और गुंटूर के बीच नंबुरु में विकसित किया जाना है. उनके शपथ ग्रहण से एक हफ्ते बाद 15 जून को राज्य के वित्त मंत्री यनामला रामकृष्णुडु हैदराबाद में बने अस्थायी सचिवालय में अपने ऑफिस पर कब्जा करने के लिए तेजी से सीढिय़ां चढ़ते दिखे. इसके अगले ही घंटे सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री पी. रघुनाथ रेड्डी ने भी अपने ऑफिस पर कब्जा कर लिया.
राज्य सचिवालय में नायडू मंत्रिमंडल के 19 में से सिर्फ 11 मंत्रियों के लिए ऑफिस बन पाया था और एक तरह से जगह को लेकर छीना-झपटी चल रही थी. अविभाजित आंध्र प्रदेश सचिवालय और हैदराबाद के पुराने सरकारी कार्यालयों को 2 जून को राज्य की बंटवारा तिथि से पहले ही बांट दिया गया था ताकि दोनों राज्यों (तेलंगाना और आंध्र प्रदेश) की जरूरत पूरी हो सके. लेकिन लगता है कि यह बंटवारा काफी अविवेकपूर्ण तरीके से किया गया है.
दोनों राज्यों को एक विशाल परिसर में चार-चार ब्लॉक आवंटित किए गए हैं जिनमें उन्हें अपने सारे विभागों को समायोजित करना है. अफसर ऑफिस स्पेस की चाहत और वरिष्ठता को लेकर सचेत प्रशासन के आदेश के मुताबिक पर्याप्त सुविधाएं न होने से आपे से बाहर हैं.
हैदराबाद को जितनी जल्दी संभव हो, छोडऩे की नायडू की बेताबी बिल्कुल साफ दिख रही है. उन्होंने विधायी दल की बैठक 4 जून को तिरुपति में बुलाई, शपथ ग्रहण समारोह 8 जून को विजयवाड़ा में हुआ और मंत्रिमंडल की पहली बैठक विशाखापत्तनम में 12 जून को हुई.
समस्या को और बढ़ाते हुए नायडू के वास्तु विशेषज्ञ चिवुकुला राघवेंद्र सरमा ने सचिवालय के एच-ब्लॉक में बने मुख्यमंत्री कार्यालय को खारिज कर दिया और एल-ब्लॉक की आठवीं मंजिल पर ज्यादा ‘अनुकूल’ जगह देने को कहा. अब एल-ब्लॉक में बन रहे सीएमओ में आंतरिक साज-सज्जा पर काम चल रहा है, लेकिन इसे तैयार होने में अभी चार हफ्ते और लग जाएंगे.
नायडू अब हेरिटेज लेक व्यू गेस्ट हाउस का इस्तेमाल अपने कैंप ऑफिस के रूप में करेंगे और आवास उनका जुबली हिल वाला बंगला ही रहेगा. इसकी मरम्मत, नए डिजाइन और नई साज-सज्जा पर करीब 2 करोड़ रु. खर्च किए गए हैं. नायडू वैभव और सजावट के बहुत प्रेमी नहीं हैं, लेकिन उन्हें खूबसूरत लेक व्यू गेस्ट हाउस की जरूरत संभावित निवेशकों को आकर्षित करने के लिए है ताकि उनकी पूंजी संबंधी चिंता को दूर करने में मदद मिल सके, जो बंटवारे के बाद बने आंध्र प्रदेश के विकास से जुड़ी है.
अब कई हैदराबाद हैं
विधानसभा की 175 में से 102 सीटें जीतने वाले नायडू को यह अच्छे से मालूम है कि उन्होंने लोगों की आकांक्षा बढ़ा दी है, खासकर यह कि वे सही कदम उठाएंगे. यह बंजारों जैसी कवायद लगती है कि पहली बार तीन महत्वपूर्ण आयोजन तीन शहरों तिरुपति, विजयवाड़ा और विशाखापत्तनम में करने पड़े. अपनी पहली कैबिनेट बैठक की समाप्ति पर नायडू ने कहा, “हम सभी इलाकों को यह संकेत देना चाहते हैं कि राज्य का संतुलित और एकीकृत विकास होगा और हम विकेंद्रीकरण का रास्ता चुनेंगे.”
राजनैतिक अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर कहते हैं, “तरक्की के पिछले मॉडल को छोडऩा होगा जिसमें हर चीज हैदराबाद केंद्रित हो गई थी. चुनौती यह होगी कि राजनैतिक दलों और उद्योगों के प्रतिरोध से निबटते हुए, जो हर चीज राजधानी में ही रखना चाहेंगे, एक विकेंद्रीकरण मॉडल को लागू किया जाए.”
मुख्यमंत्री ने सभी अधिकारियों से कहा है कि एक पूरी तरह अत्याधुनिक प्रशासनिक परिसर बनाएं जिसमें हाइ-स्पीड नेटवर्क हो और राज्य के नए मुख्यालय के लिए बुनियादी ढांचे और अन्य जरूरी साजो-सामान का बंदोबस्त दो माह के भीतर पूरा किया जाए.
नायडू ने अपनी कोर टीम से भी यह कहा है कि वह आंध्र प्रदेश के लिए बने विजन-2020 पर भी नए सिरे से विचार करे जो उनके मुख्यमंत्री के पिछले कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था. नई सरकार साइबराबाद जैसा ही बापुलापडु में 2,000 एकड़ में फैला खास आइटी क्षेत्र विकसित करने की योजना बना रही है जो विजयवाड़ा और पूरे इलाके को जोड़ेगा.
आइटी मंत्री पी. रघुनाथ रेड्डी ने कहा, “पहले चरण में अनंतपुर और विशाखापत्तनम में आइटी हब का विकास किया जाएगा जहां पहले से ही आइटी के स्पेशल इकोनॉमिक जोन के लिए जमीन आवंटित की गई है.”
राज्य सरकार तिरुपति को घरेलू पर्यटन के सबसे लोकप्रिय ठिकाने के रूप में विकसित करना चाहती है जहां तीर्थयात्रियों की संख्या हर साल बढ़ रही है.
कई वादे पूरे करने हैं
आंध्र प्रदेश को अगले आम चुनाव तक अगर कुछ बड़े निवेश लक्ष्यों को पूरा करना है तो कई समस्याओं से निबटना जरूरी होगा. राजस्व घाटा और कर्ज बोझ, दो ऐसे मसले हैं जिनका समाधान प्राथमिकता के आधार पर करना होगा. वित्त मंत्री यनामला रामाकृष्णनुडु कहते हैं, “राजस्व घाटा करीब 15,900 करोड़ रु. का है. हमें अनुत्पादक खर्चों की पहचान करनी होगी और जहां भी संभव हो, इसमें कटौती करनी होगी. हमें टैक्स थोपे बिना राजस्व बढ़ाने पर अपना ध्यान देना होगा.”
सरकार में नकदी संकट के मसले को तो सुलझ लिया गया है, पर्सेप्शन मैनेजमेंट के जानकार नायडू यह बताने के लिए कठोर प्रयास कर रहे हैं कि तमाम कमियों के बावजूद आंध्र प्रदेश संभावित निवेशकों के लिए मुफीद जगह है. इसके मजबूत आधार कृष्णा-गोदावरी बेसिन में गैस और रायलसीमा क्षेत्र में खनिज संपदा है. ऐसी गहन विकास रणनीति के लिए नकदी की तंगी का सामना कर रहे राज्य को फंड की जरूरत होगी, जिसके लिए उसे दिल्ली का मुंह देखना होगा.
नायडू की तात्कालिक चिंता किसानों की कर्ज माफी के वादे को पूरा करने की है. अनुमान के मुताबिक, कुल कृषि कर्ज माफी से खजाने पर करीब 60,000 करोड़ रु. का बोझ पड़ेगा. गरीबों को पीने का पानी, विधवाओं की पेंशन बढ़ाने, सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने जैसे उनके दूसरे वादों को पूरा करने से भी सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा.
बेल्ट शॉप (शराब के लाइसेंसधारी वेंडर्स की गैर-कानूनी दुकानें) बंद करने से भी आबकारी राजस्व में कमी आ सकती है. 1994 में वित्त मंत्री के रूप में नायडू ने बेल्ट शॉप को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया था और सब्सिडी योजना के तहत चावल की कीमत बढ़ाकर 5 रु. प्रति किलो कर दी थी ताकि राज्य की वित्तीय सेहत सुधर सके. एक मुख्यमंत्री के रूप में नायडू ने जिसकी परिकल्पना अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पेश की थी, अगर वे एक और सिंगापुर बनाना चाहते हैं तो इन सब बातों पर गौर करना होगा.
दस साल के अंतराल के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने वाले तेलुगू देशम पार्टी के मुखिया बहुत लंबे समय तक नहीं तो कम से कम इतने ही वर्षों तक ही इस पद पर बने रहने को दृढ़ संकल्प नजर आ रहे हैं.