हरियाणा के गुड़गांव में रहने वालीं 49 वर्षीया हरप्रीत कौर ने 1988 में दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में एमफिल पूरा किया. हालांकि पेशेवर करियर शुरू करने से पहले ही उनकी शादी हो गई. वे कई साल तक घर संभालती रहीं. फिर उनके देवर ने 1998 में उन्हें एमवे के डायरेक्ट सेलिंग कारोबार के बारे में बताया. आज उनके और उनके पति के नेटवर्क में सैकड़ों वितरक हैं, जो महीने में एक लाख रु. से अधिक कीमत का सामान बेचते हैं. हरप्रीत ने बताया, ''एक वक्त था जब मैं सिर्फ अपने पति के घर लौटने का इंतजार करती थी. वे दिल्ली में एक इलेक्ट्रॉनिक यूनिट चलाया करते थे. आज हम दोनों एक समान उद्यमी हैं और मनचाहे वक्त पर काम करते हैं."
भारत में हरप्रीत कौर जैसे 60 लाख लोग ''डायरेक्ट सेलिंग" (सीधी बिक्री) के धंधे से जुड़े हैं, जो एमवे इंडिया, टपरवेयर, मोदीकेयर, एवॉन, हिंदुस्तान यूनीलिवर नेटवर्क और हर्बलाइफ जैसी नामी कंपनियों के लिए काम करते हैं. ये लोग एक साल में 7,200 करोड़ रु. मूल्य के हेल्थकेयर से जुड़ी वस्तुएं, कॉस्मेटिक्स और घरेलू वस्तुएं बेचते हैं, इन कंपनियों के डायरेक्ट सेलर या वितरक दो तरह से पैसा कमाते हैं. एक तो, वे जो सामान खुद बेचते हैं उस पर कमिशन मिलता है और दूसरे वे जिन लोगों को सामान बेचने के लिए भर्ती करते हैं, उनके कमीशन में भी हिस्सा मिलता है. इन डायरेक्ट सेलर में 60 प्रतिशत महिलाएं हैं. कंसल्टिंग कंपनी केपीएमजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के डायरेक्ट सेलिंग उद्योग में वित्त वर्ष 2012-13 में 34 लाख महिलाओं को रोजगार मिला. दुनिया भर में 167 अरब डॉलर के इस उद्योग में 9 करोड़ से ज्यादा डायरेक्ट सेलर हैं. इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी 44 प्रतिशत के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र की है. उसके बाद उत्तर और दक्षिण अमेरिका की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत और यूरोप की 15 प्रतिशत है.
भारत में डायरेक्ट सेलिंग कारोबार की शुरुआत 1990 के दशक के मध्य में हुई और 2010-11 में 27 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ यह बुलंदी पर पहुंच गया. लेकिन उसके बाद उसकी वृद्धि की यह मीनार बुरी तरह ढहने लगी. 2013-14 में वृद्धि दर सिर्फ 4.3 प्रतिशत रही. इस उद्योग पर धोखाधड़ी के आरोपों, गिरक्रतारियों और कुछ कारोबारों के बंद होने की मार पड़ी. लिहाजा, इसका बाजार सिकुड़ गया और इस तरह डायरेक्ट सेलिंग उद्योग सदमे में है.
अवरुद्ध विकास
इंडियन डायरेक्ट सेलिंग एसोसिएशन (आइडीएसए) में 19 सदस्य कंपनियां हैं. एसोसिएशन की महासचिव छवि हेमनाथ का कहना है कि इस गिरावट के लिए नियम-कानूनों की अस्पष्टता जिम्मेदार है. उन्होंने बताया, ''गिरफ्तारी और बदनाम करने वाले प्रचार का असर बहुत गहरा पड़ा. वैध तरीके से चल रहे काम को भी फर्जी बताया जाने लगा." इस क्षेत्र में सबसे बड़ी कंपनी एमवे इंडिया के रजिडेंट डायरेक्टर विलियम पिंकने और दो प्रमुख अधिकारियों को केरल पुलिस ने मई 2013 में इस आरोप में पकड़ लिया कि उन्होंने प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीक्वस (प्रतिबंध) अधिनियम या पीसीएमसी ऐक्ट का उल्लंघन किया है. एक साल बाद आंध्र प्रदेश पुलिस ने भी इसी तरह के आरोपों में उन्हें गिरफ्तार किया है.
पीसीएमसी ऐक्ट 1978 में बनाया गया था, ताकि फर्जी पिरामिड और चिट फंड योजनाओं के जरिए लोगों से धोखे से पैसा न इकट्ठा किया जा सके. असल में इन फर्जी चिटफंड योजनाओं में डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के वैध मॉडल की नकल की जाती है और ऊं ची कमाई के सपने दिखाए जाते हैं. इन योजनाओं में अधिकतर नए अंशधारक या निवेशक जोड़े जाते हैं और जब नए निवेशक जुडऩा बंद हो जाते हैं तो ये योजनाएं फौरन ढह जाती हैं.
पश्चिम बंगाल के शारदा ग्रुप के मुखिया सुदीप्त सेन के खिलाफ चिट फंड घोटाले में 14 लाख निवेशकों को 4,000 करोड़ रु. का चूना लगाने का आरोप है. वह अब धोखाधड़ी के आरोप में जेल में है. पिछले कुछ वर्षों में स्पीकएशिया और जापान लाइफ जैसी पोंजी योजनाएं भी देखते ही देखते ढह गईं, जिसके कारण सरकारी अधिकारी पहले से अधिक सतर्क हो गए हैं. लेकिन कभी-कभी वे हद से ज्यादा सावधानी बरतने लगते हैं. डायरेक्ट सेलिंग उद्योग की छवि सुधारने में सहयोग कर रही केपीएमजी के एक पार्टनर रजत वाही कहते हैं, ''कानूनी तरीके से जायज डायरेक्ट सेलिंग कारोबार की योजनाओं को भी कभी-कभी गलती से फर्जी योजनाएं मान लिया जाता है."
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एमवे के नाम 13 एफआइआर दर्ज हैं. इनमें उस पर अवैध मनी सर्कुलेशन स्कीम चलाने और ग्राहकों से धोखाधड़ी करने के गंभीर आरोप हैं. कंपनी के एक प्रवक्ता का कहना है, ''इसमें दो राय नहीं कि ये सभी आरोप पूरी तरह निराधार और बेमतलब हैं. शिकायत करने वाला अक्सर वही व्यक्ति होता है, जो एमवे के कारोबारी मॉडल के बारे में झूठे आरोप लगाता है." ऐसे दो मुकदमों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट की अदालत में सुनवाई लंबित है. लेकिन इससे डायरेञ्चट सेलिंग के बाजार पर भारी असर पड़ा है और लोग इस धंधे को संदेह की नजर से देखने लगे हैं.
भ्रम ही भ्रम
पिंकने ने 1998 में भारत आकर एमवे का कारोबार जमाया था. उनका कहना है कि आरोप एक्टिविस्ट लगाते हैं और कानून पर अमल करने वाले अधिकारी, ''भले और बुरे के बीच फर्क नहीं कर पाते." हर्बलाइफ के कंट्री प्रमुख अजय खन्ना कहते हैं, ''इस बारे में कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है कि क्या फर्जी है और क्या कानूनन सही है." हर्बलाइफ पिछले 15 साल से भारत में न्यूट्रिशनल उत्पाद बेच रही है और देश भर में उसके ढाई लाख वितरक हैं.
पोंजी या पिरामिड स्कीम के मुकाबले डायरेक्ट सेलिंग कारोबार में एक बड़ा फर्क यह है कि डायरेक्ट सेलिंग के वितरक को पैसा तभी मिलता है, जब ग्राहक बराबर सामान खरीदते रहें. इसके विपरीत फर्जी स्कीक्वस में नए निवेशक भर्ती करने के आधार पर पैसा मिलता है. डायरेक्ट सेलिंग कंपनियां अपने माल की बिक्री बढ़ाने पर जोर देती हैं, जबकि पिरामिड स्कीक्वस में सारा जोर नए निवेशक जुटाने पर रहता है. डायरेक्ट सेलिंग कारोबार में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है और इसमें वास्तव में कारोबार करने के अवसर मिलते हैं. इसके विपरीत पिरामिड स्कीक्वस में प्रवेश शुल्क बहुत अधिक है और कारोबार की वास्तव में कोई खास गुंजाइश नहीं है. एमवे पहले 995 रु. प्रवेश शुल्क लेती थी, लेकिन नवंबर 2011 के बाद उसने इसे बंद कर दिया.
पिंकने का कहना है कि एमवे के अधिकारियों की गिरफ्तारी से वे स्तब्ध थे. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''मैंने कहा कि आप मुझे एक आदमी ऐसा दिखा दो जिसने हमारे साथ पैसा गंवाया हो." एमवे ने 2013-14 में 2,046 करोड़ रु. का कारोबार किया और कंपनी भारत में 140 वस्तुएं बेचती है.
भारत में डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों का कहना है कि उत्पादन में भारी निवेश करने के बावजूद उनके साथ सौतेला व्यवहार होता है. एमवे अपने 95 प्रतिशत उत्पाद भारत में ठेके पर बनवाती है. वह चेन्नै में अपना कारखाना लगा रही है. इसके तैयार हो जाने पर श्रीलंका, बांग्लादेश और पहली बार पश्चिम एशिया में निर्यात के लिए भी यहां सामान बनेगा. हर्बलाइफ के लिए सामान हिमाचल प्रदेश के बद्दी और पौंटा साहिब में ठेके के कारखानों में बनता है. ओरिफ्लेम इंडिया स्वीडन की ओरिक्रलेम की सहायक कंपनी है और नोएडा में उसकी उत्पादन इकाई है. उसका सारा सामान नोएडा में ही बनता है.
नए नियमों की जरूरत
दुनिया भर में 60 देशों की डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों की प्रतिनिधि वल्र्ड फेडरेशन ने इस उद्योग में मानक ढांचा तैयार करने के लिए वल्र्ड सेलिंग कोड ऑफ कंडक्ट यानी आचार संहिता जारी की है. इससे इस उद्योग के अपने नियम-कानून बनाने की दिशा में पहल हो सकती है. इसके अलावा अधिकतर देशों में डायरेक्ट सेलिंग कारोबार के नियामक कानून हैं जिनसे यह संचालित होता है. अमेरिका के विभिन्न राज्यों में बहुस्तरीय मार्केटिंग स्कीक्वस के लिए अलग से नियम-कानून है. यूरोप में डायरेक्ट सेलिंग का कारोबार यूरोपीय संघ के विभिन्न निर्देशों के तहत चलता है. सिंगापुर के कानून में ऐसी किसी भी स्कीम को अवैध माना जाता है, जिसमें प्रवेश शुल्क लगता हो, भर्ती के लिए कमिशन लिया जाता हो और हिसाब-किताब न रखा जाता हो और हर साल उसकी ऑडिट न कराई जाती हो. चीन में डायरेक्ट सेलिंग के जरिए बेचने के लिए उत्पादों की संक्चया काफी सीमित है, वहां प्रवेश शुल्क लेने और नए भर्ती निवेशकों की संक्चया के आधार पर भुगतान करने की पाबंदी है. इन नियमों की वजह से यह कारोबार भी सीमित रहता है और लोगों से धोखाधड़ी की गुंजाइश भी कम हो जाती है.
उपभोक्ता कानून के विशेषज्ञ और कंज्यूमर ऑनलाइन फाउंडेशन के संस्थापक बिजन मिश्र का कहना है, ''भारत में कारोबार चलाने के लिए कोई नियामक कानून नहीं है. न तो पुलिस और न ही राज्य के नियामक तब तक कोई कार्रवाई कर सकते हैं जब तक कुछ धोखाधड़ी न हो जाए." उनका कहना है कि इससे रातोरात चूना लगाकर भागने वालों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्होंने कहा, ''कारोबार चलाने में पारदर्शिता लाना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह सारा कारोबार कही-सुनी बातों से चलता है." उद्योग परिसंघ फिक्की के महासचिव दीदार सिंह का कहना
है कि उनके संगठन ने सरकार के पास डायरेक्ट सेलिंग उद्योग के लिए अलग नियामक बनानेका सुझाव रखा है.
अब सरकार की नींद टूटी
ऐसा लगता है कि अब सरकार भी इस मुद्दे पर जाग गई है. उसे एहसास हो गया है कि धोखाधड़ी रोकने केलिए अलग से कानून बनाने की जरूरत है. पिछली यूपीए सरकार ने बहुस्तरीय मार्केटिंग और डायरेक्ट सेलिंग की परिभाषा तय करने और असली तथा नकली कंपनियों के बीच भेद करने के दिशानिर्देश निर्धारित करने के लिए एक अंतरमंत्रालय समिति बनाई थी. लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली.
उपभोक्ता कार्य मंत्रालय के अध्यक्षता में यह समिति इस बात पर विचार कर रही है कि इस क्षेत्र के लिए अलग नियामक चाहिए या नहीं. उपभोक्ता कार्य मंत्री रामविलास पासवान ने हाल ही में कहा था, ''हमें लगता है कि असली और नकली कंपनियों के बीच फर्क करना जरूरी है और किसी भी प्रस्तावित नियामक कानून में उपभोक्ता के हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए." उन्होंने यह भी कहा कि डायरेक्ट सेलिंग कारोबार में अधिक पारदर्शिता बरतने की जरूरत है.
आइडीएसए ने स्वनियमन आचरण संहिता तैयार की है, जिसमें सदस्यों से नैतिक आचरण की अपेक्षा की गई है. इसके तहत वे गुमराह करने या धोखा देने वाली अथवा बिक्री का कोई अनुचित तरीका नहीं अपनाएंगे और उपभोक्ताओं को अपने उत्पादों तथा दामों के बारे में सटीक जानकारी देंगे. इस संहिता में यह भी अपेक्षा है कि लिखित ऑर्डर फॉर्म तथा रसीदें रखी जाएं. इसके अलावा कंपनियों से कहा गया है कि वे ''धोखा देने वाले या गुमराह करने वाले" प्रचार से बाज आएं. इसमें दावा किया गया है कि उसके सदस्य कारोबार के पाक-साफ तरीके अपनाते हैं. मिसाल के तौर पर एमवे बैंक खातों के जरिए वितरकों को एक साल में 36 लाख रु. का भुगतान करती है. हर्बलाइफ ने कंपनी से जुड़ते समय वितरकों के लिए ''गोल्ड स्टैंडर्ड गारंटी" शुरू की है, जिसमें मुख्त प्रवेश, कम स्टॉक और 30 दिन की मनी बैक गारंटी दी जाती है.
केपीएमजी के वाही का कहना है कि भारत में डायरेक्ट सेलिंग उद्योग 10 साल में 15 अरब डॉलर या 90,000 करोड़ रु. का स्तर छू सकता है और स्वरोजगार के जबरदस्त अवसर जुटा सकता है. ऐसा तभी हो सकता है जब उद्योग अपनी गतिविधियों में पारदर्शिता बनाए रखे. इसके लिए न सिर्फ सरकार को स्पष्ट कानून बनाने होंगे, बल्कि उद्योग को भी अपने मानक तय करने होंगे और उनका पालन करना होगा.