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उत्तर प्रदेश के मऊरानीपुर के किसान रामाधार एक बार फिर सूखे की आहट से सकते में हैं. दो एकड़ जोत के मालिक रामाधार ने उड़द बोई थी और उन्हें बारिश का इंतजार था. लेकिन बारिश दगा दे गई. फसल सूख गई और उनकी लागत डूब गई. सूखी उड़द की फसल कटवाने में और भी खर्च होता, लिहाजा रामाधर ने खेत को मवेशियों के चरने के लिए छोड़ दिया.
इसी तरह झांसी के नजदीक भटपुरा के 75 वर्षीय किसान हरपे एक बार फिर कर्ज के जाल में फंस गए हैं. उन्होंने भी कर्ज लेकर उड़द बोई थी. हरपे कहते हैं, ''पिछले साल भी सूखे से फसल खराब हो गई थी. अब खाने का संकट है तो बीज का पैसा कैसे चुकाएं.'' टीकमगढ़ के गांव मऊघाट के किसान रतीराम कुशवाहा की अलग कहानी है. 6 एकड़ जमीन के मालिक रतीराम ने उड़द और तिल की फसल लगाई थी. थोड़ी-बहुत बरसात और सिंचाई से फसल तो तैयार हो गई, लेकिन कटाई से ऐन पहले हुई बरसात से फसल खेत में ही सड़ गई. किसान नेता और गरौठा से भाजपा विधायक जवाहर राजपूत भरोसा दिलाते हैं कि किसानों के सामने आए इस संकट को मुख्यमंत्री के सामने रखा जाएगा और नुक्सान की भरपाई की कोशिश होगी.
यह हालत सिर्फ बुंदेलखंड की ही नहीं है, बल्कि भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के लिहाज से ही, देश के 224 जिलों में सामान्य से 20 फीसदी से कम बरसात हुई है. हालांकि, मौसम विभाग ने इस बार देश में सामान्य मॉनसून की घोषणा की थी लेकिन इन जिलों की कहानी कुछ और है. सूखे से जूझ रहे इलाकों में सुदूर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के दो जिलों से लेकर पूरा मध्य, पश्चिमोत्तर और उत्तर भारत शामिल है.
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब, हरियाणा-चंडीगढ़-दिल्ली, पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश और विदर्भ में सामान्य से कम बारिश हुई है (देखें नक्शा). लेकिन जिलावार आंकड़े और जमीनी हकीकत इस आंकड़े से कहीं अधिक मुश्किल तस्वीर पेश करती है.
देश भर में हुई बारिश की कुल मात्रा पर नजर डालें तो 26 सिंतबर तक सामान्य से महज 5 फीसदी ही बारिश कम हुई है. लेकिन मॉनसून की बारिश इस बार कुछ ऐसी हुई है, मानो किसी को हफ्ते भर का राशन एक ही दिन में ताबड़तोड़ खिलाकर बाकी दिनों की थाली गुम कर दी गई हो. भारतीय मौसम विभाग में ग्रामीण सिंचाई और वर्षा आधारित खेती की एक परियोजना के वरिष्ठ वैज्ञानिक रंजीत सिंह कहते हैं, ''मॉनसून के दौरान बारिश की मात्रा तो औसत के आसपास ही है लेकिन बारिश वाले दिनों में कमी आई है, यानी कुछ ही दिनों में तेज बरसात हो गई है.'' बुंदेलखंड में ही, 20 सितंबर तक किसान बारिश की एक बूंद को तरस रहे थे. लेकिन उसके बाद मौसम का मिजाज ऐसा बदला कि बुंदेलखंड पानी-पानी हो गया. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
उधर, अगस्त में बाढ़ की विभीषिका झेल रहा बिहार अब सूखे के संकट से दो-चार है. राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 14 जिलों में सूखे जैसे हालात हैं. इनमें सबसे ज्यादा असर नवादा जिले की खेती पर पड़ा है. बिहार में पहले बाढ़ और फिर सूखे ने खरीफ की फसल को तकरीबन बर्बाद कर दिया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की करीब 8.10 लाख हेक्टेयर फसल, जिसमें मुख्य फसल धान और मक्का शामिल है, बाढ़ और सूखे से बर्बाद हो गई है. घोसतावां के किसान सुरेंद्र सिंह कहते हैं, ''सरकार ने डीजल अनुदान की घोषणा कर रखी है, लेकिन इसका फायदा ज्यादातर बिचैलिए उठा ले जाते हैं. जिन किसानों को अनुदान मिलता भी है, वह फसल बर्बाद होने के बाद ही.''
पिछले कुछ समय से देश के विभिन्न इलाकों में बारिश के पैटर्न में एक बदलाव देखा गया, (देखें 13 सितंबर के अंक में 'बीच बरसात में बिगड़े बादल') इससे मॉनसून के दौरान मूसलाधार बारिश के दिन तो बढ़ गए लेकिन खेती के लिए मुफीद पानी नहीं बरसा. लेकिन केंद्र में कृषि मंत्रालय सूखे जैसी स्थिति को मानने को तैयार नहीं हुआ और उसने 224 जिलों में सूखे जैसी स्थिति पर आई खबरों को 14 सितंबर को निराधार बताया. बाद में, कृषि मंत्रालय ने अपने शुरुआती अनुमान में खरीफ की पैदावार में पिछले साल की तुलना में करीब 3 फीसदी की कमी की आशंका जताई है (देखें बॉक्स). साथ ही तिलहन की उपज में भी खासी कमी होने का अनुमान है. हालांकि कपास की बुआई इस बार पिछले साल की तुलना में करीब 20 फीसदी अधिक थी लेकिन बरसात की लुका-छिपी ने खेल खराब कर दिया. सरकार का अनुमान है कि कपास की पैदावार में गिरावट आएगी और इस साल पैदावार गिरकर 3.3 करोड़ गांठों की तुलना में 3.23 करोड़ गांठें (एक गांठ 170 किलोग्राम के बराबर होती है) ही रह जाएगी.
कृषि सचिव एस के पटनायक कहते हैं, ''अभी मॉनसून औपचारिक रूप से खत्म नहीं हुआ है. हम आंकड़ों के लिहाज से अपने अनुमान में सुधार करते हैं.'' गौर करने वाली बात यह है कि खरीफ की फसल को लेकर आया यह अनुमान शुरुआती ही है और मॉनसून सीजन खत्म होने के बाद इन आंकड़ों में बदलाव आ सकता है. पटनायक कहते हैं, ''अभी सूखे जैसी स्थिति नहीं कह सकते क्योंकि किसी राज्य ने सूखे की रिपोर्ट नहीं की है. स्थिति पर हमारी नजर है लेकिन बारिश में कमी पैदावार और उत्पादकता पर कितना असर डालेगी, यह देखना बाकी है.''
खरीफ की इस फसल में आई कमी पिछले साल की 4.9 फीसदी की कृषि विकास दर को खींचकर नीचे ले आएगी. इस स्थिति में सुधार तभी हो सकता है, अगर रबी की फसल में बंपर पैदावार हो और गैर-फसली कृषि यानी वनोपज, मछलीपालन और पशुधन में विकास दर कुलांचे भरने लगे. लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिखता. मौसम वैज्ञानिक रंजीत सिंह चेताते हैं, ''पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में कम बारिश की वजह से वहां मौजूद सिंचाई के साधनों का इस्तेमाल बढ़ेगा. यानी, सिंचाई के संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा.'' इसका एक मतलब यह भी है कि खेती की लागत बढ़ जाएगी.
सूखे के इस संकट की आहट के बीच मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि देश के 100 जिले ऐसे भी हैं जहां 20 फीसदी या उससे अधिक या अत्यधिक बरसात दर्ज हुई है. ऐसे में बाढ़ और सूखे के विरोधाभास वाली बिहार जैसी स्थितियां देश के कई इलाकों में बनी हैं. उधर, ओडिशा में राज्य सरकार ने 16 जिलों के 96 प्रखंडों में सूखे के हालात पर जिलाधिकारियों को 10 अक्तूबर तक रिपोर्ट देने को कहा है. मौसम विभाग के आंकड़े तस्दीक करते हैं कि पिछले 70 साल में सामान्य बरसात में जब भी 10 फीसदी के आसपास की गिरावट आई है, देश को सूखे का सामना करना पड़ा है.
पिछले 17 साल में ही, देश ने छह बड़े सूखे झेले हैं और दस बार देश के 100 जिलों में सूखे जैसी परिस्थितियां बनी हैं. इस बार देश के खाद्यान्न भंडारों पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी सूखे ने दस्तक दी है. खासकर, यह संकट इसलिए भी ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि इस साल सूखे की चपेट में ऐसे इलाके भी हैं जो पिछले दो साल से कम बारिश का सामना कर रहे हैं. कृषि सचिव कहते हैं, ''अगर कोई सूखा हुआ, तो उसके लिए आपातकालीन प्रबंध तैयार हैं.'' लेकिन समस्या यह है राज्य सरकारों ने अभी तक केंद्र सरकार को सूखे की रिपोर्ट नहीं दी है.
—साथ में अशोक कुमार प्रियदर्शी