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कश्मीर में पत्थरबाजों से निपटने का नया फॉर्मूला, बिना पैलेट गन होगा अटैक!

जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी को रोकना एक बड़ी चुनौती है. इन्हें नियंत्रित करने के लिए सीआरपीएफ अब तक पैलेट गन का इस्तेमाल करती रही है. लेकिन अब पत्थरबाजों को कंट्रोल करने के लिए साउंड कैनन का इस्तेमाल होगा.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
अभि‍षेक भल्ला
  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2019,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

जम्मू कश्मीर के कई इलाकों में लगातार पत्थरबाजी होती है. इन पर नियंत्रण के लिए सीआरपीएफ अब तक पैलेट गन का इस्तेमाल करती रही है. लेकिन पैलेट गन के इस्तेमाल पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. पैलेट गन के कारण बड़ी संख्या में लोग घायल होते रहे हैं. इससे कई लोगों को आंखों की रोशनी भी गंवानी पड़ी है. ऐसे में अब सीआरपीएफ पैलेट गन की जगह लॉन्ग रेंज अकुस्टिक डिवाइस (LARD) का इस्तेमाल करेगी, जिसे साउंड कैनन के नाम से भी जाना जाता है. बताया जा रहा है कि साउंड कैनन कम घातक है. सीआरपीएफ ने साउंड कैनन को लेकर इसे बनाने वाली कंपनी से विस्तार से इसकी जानकारी मांगी है.

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क्या है साउंड कैनन

साउंड कैनन का प्रयोग उग्र भीड़ को रोकने के लिए किया जाएगा. साउंड कैनन के जरिए एक आवाज भी निकलेगी जो भीड़ में मौजूद लोगों को हटने की चेतावनी देगी. आपको बता दें कि कश्मीर में पत्थरबाजी की घटना लगातार होती रही हैं. इसमें नाबालिग बच्चे और महिलाएं भी शामिल होती हैं जो सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करते हैं.

ऐसे में सीआरपीएफ के पैलेट गन के इस्तेमाल पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. इसके इस्तेमाल से कई लोगों की आंखे खराब हो चुकी हैं. हालांक,  दुनिया के दूसरे देशों में साउंड कैनन का इस्तेमाल भी होता रहा है. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता इस पर भी सवाल उठाते हैं कि इसके इस्तेमाल से कई लोगों की सुनने की क्षमता जा रही है यानी वे बहरे हो रहे हैं.

सीआरपीएफ के मुताबिक साउंड कैनन में पांच स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल किया जा सकेगा. इनका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर देश के दूसरे हिस्से में भी किया जा सकेगा. देश के कई दूसरे इलाकों में भी सीआरपीएफ को उग्र भीड़ को नियंत्रित करना पड़ता है. साथ ही झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिसा जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

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साउंड कैनन की विशेषता होगी कि एक मीटर की दूरी पर 153 डेसीबेल साउंड प्रेशर रहेगा जबकि 100 फीट की दूरी पर 121 डेसीबेल तक प्रेशर रहेगा. आपको बता दें कि अगर 90 डेसीबेल तीव्रता वाली आवाज रोज सुनी जाय तो सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंच सकता है. 110 डेसीबेल तीव्रता वाली आवाज से परेशानी होती है जबकि 130 डेसीबेल तीव्रता वाली आवाज कानों में दर्द पैदा करती है.

30 जून को देना होगा प्रेजेंटेशन

सीआरपीएफ ने साउंड कैनन के निर्माताओं को रिक्वेस्ट ऑफ इंफॉर्मेशन (RFI) का जवाब मांगा है और 30 जून को उन्हें प्रजेंटेशन देने को कहा है. साथ ही उन्हें साउंड कैनन के इस्तेमाल के बाद लोगों पर  होने वाले इसके असर को भी ध्यान में रखने को कहा गया है.

निर्माताओं से कहा गया है कि साउंड कैनन के असर को लेकर भारत सरकार से मान्यता प्राप्त किसी मेडिकल संस्थान से सर्टिफिकेट भी लेना पड़ेगा. हालांकि, सीआरपीएफ ने अभी साउंड कैनन के निर्माताओं को यह नहीं बताया है कि उन्हें कितनी मात्रा में साउंड कैनन चाहिए. यह उन्हें बाद में बताया जाएगा.

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