Advertisement

गहरे दोस्त बन चुके हैं साइबर क्रिमिनल और साइबर आतंकवादी

साइबर क्राइम की बाकायदा ट्रेनिंग दी जा रही है. अब ये छिपे हुए अपराधी नहीं रह गए हैं. कुछ यूरोपीय देशों में खुलेआम साइबर अपराधी घूम रहे हैं.

फोटो साभारः इंडिया टुडे फोटो साभारः इंडिया टुडे
मनीष दीक्षित
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 7:59 PM IST

साइबर क्रिमिनल और साइबर आतंकवादी अच्छे दोस्त हो गए हैं और साइबर क्राइम पूरी तरह एक सर्विस इंडस्ट्री का रूप ले चुका है. ये बात कॉरपोरेट भ्रष्टाचार और फ्रॉड के क्षेत्र में काम कर रही ग्लोबल फर्म क्रोल के सीनियर मैनेजिंग डायरेक्टर एलन ब्रिल ने कही है. ब्रिल का कहना है कि साइबर क्राइम की बाकायदा ट्रेनिंग दी जा रही है. अब ये छिपे हुए अपराधी नहीं रह गए हैं. कुछ यूरोपीय देशों में खुलेआम साइबर अपराधी घूम रहे हैं. साइबर अपराध करने वाले समूह रूस में सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं.  

Advertisement

यह बात विशेषज्ञों ने साइबर लॉ, साइबर सिक्योरिटी और साइबर क्राइम पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में 'साइबर टेररिज्म ऐंड साइबर रेडिकलाइजेशन' विषय पर कही. क्रोल ने साइबर खतरों की बात को एक लाइन में समेटते हुए कहा, कनेक्टिविटि है तो खतरा है. सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल राजन मैथ्यूज ने कहा कि हमें जब किसी वेबसाइट से गलत कंटेंट या खतरे की बात कही जाती है तो हम वेबसाइट नेटवर्क से डाउन कर देते हैं लेकिन इसके लिए सरकार को ऑपरेटर को और जिम्मेदार बनाना चाहिए.

देश में एक अरब से ज्यादा मोबाइल कनेक्शन हैं और खतरा ज्यादा है. रेडिकलाइजेशन या कट्टरता फैलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है. इस मुद्दे पर दक्षिण अफ्रीका से आए डॉ. माएंद्र सदानंद मूडले ने बेहतरीन उदाहरण देकर समझाया कि अगर कोई कम पढ़ा लिखा भारतीय ब्रिटेन जाएगा तो वह वहां छोटा-मोटा काम करेगा और अंग्रेजी बोलने में उसे भारी दिक्कत होगी. लेकिन वो चाहेगा कि उसके बच्चे बढ़िया अंग्रेजी बोलें. बच्चे बड़े होंगे और अंग्रेजी बोलेंगे और ब्रिटिश समाज में घुलने-मिलने का प्रयास करेंगे तो उन्हें माइग्रेंट्स (प्रवासी) का बच्चा ही कहकर उपहास उड़ाया जाएगा.

Advertisement

जब वह इंटरनेट या सोशल मीडिया पर पहुंचेगा तो अतिवादी लोग उसे समझाएंगे कि तुम्हारे साथ ये घटना घटी है तो तुम अकेले नहीं हो. यहां तुम्हारे जैसे बहुत सारे लोग हैं और इस तरह एक समूह बन जाता है. इसी तरह के वाकये रेडिकलाइजेशन की ओर युवाओं को ले जाती हैं. समावेशी समाज ही इसका इलाज है. मूडले ने कहा, आप सड़क पर या पड़ोस में बैठे आतंकवादी को नहीं पहचान सकते लेकिन आइपी एड्रेस से इंटरनेट पर इनकी पहचान की जा सकती है.

विशेषज्ञों का कहना था कि औद्योगिक जासूसी की घटनाएं आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली है. स्पैक्ट्रम ग्रुप के सदस्य माइकल जे. पेंडर्स का कहना है कि डार्कनेट पर बहुत हुनरमंद हैकर बैठे हुए हैं वे डाटा में सेंध लगाने में माहिर हैं. चीनी हैकरों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी लोगों के हेल्थ डाटा में है क्योंकि मेडिकल रिसर्च में इसकी बहुत जरूरत होती है.

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement