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रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच क्यों बिगड़ी बात, IIM में पढ़ाया जाएगा

देश के बहुप्रतिष्ठित बिजनेस स्कूल हालिया टाटा सन्स विवाद को एक केस स्टडी के रूप देख रहे हैं. इस मुद्दे पर लेक्चर रखे जा रहे है और भव‍िष्य के लिए नीतियों पर बात हो रही है...

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विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 03 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 2:41 PM IST

एकतरफ जहां टाटा ग्रुप के बोर्डरूम में घमासान मचा हुआ है वहीं दूसरी तरफ देश के बहुप्रतिष्ठित बिजनेस स्कूल इससे सबक लेने की कोशिश में लग गए हैं. बिजनेस स्कूल्स की अलग-अलग फैकल्टी का मानना है कि टाटा सन्स के चेयरमैन पद पर चल रहा हालिया गतिरोध तमाम बिजनेस स्कूलों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस, आपदा प्रबंधन और उत्तराधिकार जैसे मामलों पर काफी कुछ सिखाने की क्षमता रखता है.

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आईआईएम-बंगलुरु में कॉरपोरेट स्ट्रैटजी और पॉलिसी पढ़ाने वाले रामाचंद्रन कहते हैं कि सायरस मिस्त्री को बाहर किए जाने के मसले को वे मालिकाना हक और प्रबंधन के अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं. किसी भी लिस्टेड फर्म में ऐसा कम ही होता है कि पिछला स्वत: ही अगले को सारे अधिकार सौंप दे.

बिजनेस ग्रुप और समूह के फर्क को समझने में होगी मदद...
उनका कहना है कि यह मामला उन्हें पूरी क्लास को बिजनेस ग्रुप और समूह के फर्क को समझाने में मदद करेगा. जैसे कि टाटा सन्स के ग्रुप चेयरमैन का काम वह नहीं है जो जनरल इलेक्ट्रिक के चेयरमैन का है. ऐसा इसलिए क्योंकि जनरल इलेक्ट्रिक एक सिंगल लीगल एंटिटी है जिसमें एयरोस्पेस, मेडिकल और लाइटिंग जैसे अलग-अलग पोर्टफोलियो का बिजनेस होता है. वहीं टाटा ग्रुप कई लीगल एंटटी का समूह है जैसे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और टाटा केमिकल्स. इसमें हर किसी के लिए अलग-अलग पोर्टफोलियो हैं. आईआईएम-बंगलुरु में होने वाला केस स्टडी इस मामले पर भी जोर देगा कि किसी को सिर्फ चेयरमैन पद से हटाया जाएगा न कि बोर्ड से.

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आईआईएम-कोलकाता के असोशिएट प्रोफेसर अपनी क्लासेस में इस मसले पर लेक्चर देंगे कि क्या एक चेयरमैन को सिर्फ स्ट्रैटजी डायमेंशन पर काम करना चाहिए या फिर स्ट्रैटजी के साथ-साथ ग्रुप की पहचान स्थापित करने पर काम करना चाहिए. इसके अलावा वे इस बात पर भी फोकस करेंगे कि टॉप पोज‍िशन्स पर बैठे लोग अपने लिए सही कैंडिडेट कैसे चुनते हैं.

इस पूरे मामले पर रामाचंद्रन कहते हैं कि अभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबादी होगी लेकिन वे अपने क्लासेस की बातचीत में कॉरपोरेट गवर्नेंस, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का काम, फैमिली के इतर किन्हीं सीईओ को लाना, उत्तराधिकार के प्रबंधन और काम न करने वाले मालिकों पर भी फोकस करेंगे.

पारिवारिक उत्तराधिकार पर होगी बातचीत...
इस पूरी बातचीत और बहस में वे परिवार द्वारा किए गए बिजनेस और उत्तराधिकार के अधिकारों को मुख्य मुद्दा पाते हैं. इसके अलावा फैमिली के बाहर से आने वाले सीईओ की भूमिका पर भी वे स्टूडेंट्स से बात कर रहे हैं.

इस मसले पर आईआईएम-लखनऊ के डायरेक्टर अजित प्रसाद कहते हैं कि क्लासरूम में सिखाई गई ऐसी बातें किसी भी प्रोफेसर या स्टूडेंट के लिए केस स्टडी हो सकती हैं. जब कभी भी इस पर केस लिखा जाएगा, तो सरकार की दिक्कतों, उत्तराधिकार की प्लानिंग, इकोनॉमिक वैल्यू, नैतिकता बनाम कौशल और किसी संस्था में संस्कृति के रोल पर भी बातें होंगी.

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इस केस पर टिप्पणी में एमडीआई-गुड़गांव के चेयरपर्सन वीरेश शर्मा कहते हैं कि वे इस केस में लीडरशिप, कॉरपोरेट गवर्नेंस, ऑर्गनाइजेशनल कल्चर, विजन और मिशन के साथ-साथ बोर्ड की भूमिका भी देखते हैं. यह आगे की रणनीति के लिए बड़े सबक हो सकते हैं.

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