
कहने को तो हम 21वीं सदी में प्रवेश कर गए हैं लेकिन भक्तों की जाति से जुड़ी शुद्धता और अपवित्रता की पुरातन पंथी सोच अभी भी देश के कुछ प्रमुख मंदिरों में अंदर तक घर की हुई है, जहां देवी-देवताओं की पवित्रता को बचाए रखने के लिए दलितों का प्रवेश वर्जित है. इंडिया टुडे ने देश के ऐसे ही कुछ प्रमुख मंदिरों की तहकीकात की है जहां अभी भी प्राचीन मान्यताओं के अनुसार दलितों के प्रवेश पर रोक है.
काल भैरव मंदिर, वाराणसी
मंदिरों और आस्था की नगरी वाराणसी के काल भैरव मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां दलितों के भगवान के छूने पर रोक है. पुजारी कहा, ' देखिए मैं ऐसा कुछ नहीं करुंगा जो धर्म के खिलाफ हो. यह अलग बात है कि मेरी जानकारी के बगैर कोई (निम्न जाति) आ जाता है. लेकिन यदि हमें पता हो और हम उन्हें पूजा करने की इजाजत देते हैं तो मुझे डर है.' उन्होंने आगे कहा, 'एक प्रार्थना है जिसमें भगवान के पैर छुए जाते हैं. मैं उन्हें (निम्न जाति) छूने की इजाजत नहीं देता. मैं ऐसा होने नहीं दूंगा. दूसरी जाति के भक्तों को ऐसा करने की इजाजत है, लेकिन वे (दलित) जो खाते हैं वो अपवित्र है. यह सबसे बड़ी मुश्किल है कि वे जो खाते हैं हम उसे देखना भी पसंद नहीं करते.'
लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर
संविधान द्वारा धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के बावजूद हमारे धर्म में प्रचलित प्रथा की भेदभावपूर्ण व्याख्या अभी भी जारी है. ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में 11वीं सदी के प्रतिष्ठित लिंगराज मंदिर में भी दलित भक्त ऐसी ही पाबंदियों का सामना कर रहे हैं. साल 2012 में शिवरात्रि के दिन भगवान शिव में आस्था रखने वाले 2 लाख भक्त इस मंदिर दर्शन के लिए आए थे. पारम्परिक तौर पर इस मंदिर में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक है, लेकिन इंडिया टुडे की टीम ने पाया कि इस मंदिर के गर्भगृह में दलितों के प्रवेश को साल में एक बार सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही इजाजत है. लिंगराज मंदिर में दो दशक से पुजारी मानस ने खुलासा किया कि शिवरात्रि में दलितों के प्रवेश के बाद प्रवित्र वेदी को स्नान कराके पवित्र किया जाता है.
मानस ने इस विशेष स्नान की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि सर्वप्रथम भगवान को सफेद पाउडर लगाया जाता है, जिसके बाद पवित्र गंगा जल का से स्नान कराया जाता है. मंदिर की रसोई को भी सजाया जाता है.
जागेश्वर धाम, अल्मोड़ा
उत्तराखंड की पहाड़ों पर स्थित जागेश्वर मंदिर, भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है, जहां दलितों का प्रवेश वर्जित है. यहां के वरिष्ठ पुजारी हीरा वल्लभ भट्ट और केशव दत्त भट्ट ने इंडिया टुडे टीम के कैमरे पर खुलासा किया कि निचली जाति के लोगों को प्रांगण के बाहर से प्रार्थना करने का अधिकार है. वे अंदर नहीं आ सकते. पहले तो दलित जाति के लोग इतना नजदीक भी नहीं आ सकते थे.
बैजनाथ मंदिर, बागेश्वर
उत्तराखंड के ही बागेश्वर जिले का बैजनाथ मंदिर उन कुछ मंदिरों में एक है जहां देवी पार्वती को उनके पति भगवान शिव के साथ दर्शाया गया है. हमारी पड़ताल में खुलासा हुआ कि यहां भी निचली जाति के लोगों के प्रवेश पर रोक है. हमारे अंडरकवर रिपोर्टर ने जब यहां के वरिष्ठ पुरोहित पूरन गिरी से पूछा कि क्या यहां दलितों को प्रवेश की इजाजत है तो उन्होंने कहा 'नहीं', लेकिन ब्राह्मण और क्षत्रीय प्रवेश कर करते हैं.
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने आरोप लगाया कि कथित मंदिरों में कथित जातिगत भेदभाव 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचाराधारा' में सन्निहित है. उन्होंने कहा कि इसीलिए वे बहुजन हित की बात करते हैं. मंदिरों को भी संविधान के दायरे में लाना चाहिए. सभी जाति के लोगों को मंदिर प्रशासन में हिस्सा लेने का अवसर मिलना चाहिए.
वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नरेंद्र तनेजा ने इस खुलासे को सामाजिक और धार्मिक मामला बताया. उन्होंने कहा कि मैं इस आक्रोश और निराशा को समझता हूं. सत्ता में आने पर हमने अनुसूचित जातियों के लिए सबसे ज्यादा किया. यह सामाजिक और धार्मिक मामला है. एक समाज के तौर पर हमें भेदवाव को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. इस तरह के छुआछूत की प्रथा का कोई स्थान नहीं है.
लेखक और चिंतक कांचा इलैया ने मंदिरों में पूर्वाग्रह का वर्णन किया को आधात्मिक मुद्दा बताया. उनका कहना है कि यह सवाल हिंदू धर्म और मंदिरों में आध्यात्मिक लोकतंत्र लाने का है. वहीं संघ विचारधारा से संबंध रखने वाले संगीत रागी ने कहा कि संघ जमीनी स्तर पर निचली जातियों के उत्थान के लिए काम करता है. आजाद के आरोपों को भावनात्मक बताने हुए उन्होंने खारिज किया और कहा कि यह भारत की सदियों पुरानी जाति व्यवस्था की गलत अवधारणा है.