
उत्तर प्रदेश के दादरी में गौमाता के नाम पर अखलाक की हत्या को 10 महीने बीत चुके हैं. यह हत्याकांड लंबे समय तक मीडिया में छाया रहा. हत्याकांड पर राजनीति भी खूब हुई, लेकिन राजनीति से कहीं ज्यादा घातक एक चीज और हुई. और वह चीज थी देश में गोरक्षा के नाम पर सरेआम गुंडागर्दी का बढ़ जाना. यूट्यूब पर रह-रहकर ऐसे वीडियो आने लगे जिनमें हथियारबंद गुंडे सरेआम कुछ लोगों को गोहत्या या गोतस्करी के नाम पर बर्बर तरीके से पीटते हैं. इनमें से कई वीडियो में यह भी दिखा कि गुंडागर्दी पुलिस की मौजूदगी में चल रही है. शुरुआती मामलों में बर्बरता का शिकार मुसलमान हो रहे थे, लेकिन जल्दी ही दलितों की पिटाई की घटनाएं भी दिखने लगीं. इस तरह के वीडियो राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और उत्तर प्रदेश से आ चुके हैं. गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के उना में 11 जुलाई को मरी गाय का चमड़ा उतार रहे दलितों को एसयूवी से बांधकर बुरी तरह डंडों से पीटने के वीडियो के सार्वजनिक होने से ठीक पहले, हरियाणा से एक वीडियो आया, जिसमें गोतस्करी के नाम पर कुछ लोगों को मार-मारकर गाय का गोबर खिलाया गया. पूरी दुनिया में भारत की छवि एक मध्ययुगीन देश की तरह पेश करने वाली इन घटनाओं में से किसी घटना पर केंद्र सरकार कुछ नहीं बोली. लेकिन जब उना की घटना के हफ्तेभर बाद दलितों के गुस्से ने संगठित रूप ले लिया और कई शहर हिंसा की चपेट में आ गए तो राज्य के साथ केंद्र सरकार ने इतना माना कि कहीं कुछ गड़बड़ है.
दल का कहना है कि गुजरात में दलितों की एक जाति मरे हुए पशु का चमड़ा उतारने का काम पारंपरिक रूप से करती है. यही लोग अब स्वयंभू गोरक्षकों का आसान शिकार बन गए हैं. इसीलिए गुजरात में दलित आंदोलन में एक खास चीज देखने को मिल रही है कि दलितों ने गाय का कंकाल सरकारी दफ्तरों के बाहर फेंककर भी विरोध जताया.
गुजरात में जब यह विरोध चल ही रहा था, दुर्योग से तभी 20 जुलाई को उत्तर प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को भद्दी गाली दे दी. इसे लेकर मायावती राज्यसभा में बीजेपी सरकार पर टूट पड़ीं. सदन में अरुण जेटली ने बयान के लिए तुरंत माफी मांगी. घंटे भर के भीतर दयाशंकर को पहले उनके पद से हटाया गया और फिर पार्टी से निकाल दिया गया. लेकिन उनकी जुबान अपना काम कर चुकी थी. मायावती पर हुए इस हमले को दलित स्वाभिमान से जुडऩे में देर नहीं लगी. और अगले दिन लखनऊ में बीएसपी ने मायावती के अपमान के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया. इस बीच मायावती ने कहा, ''मैं चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हूं. लोग मुझे देवी की तरह पूजते हैं.'' मायावती ने राज्यसभा में कहा कि पहले गाय के नाम पर मुसलमानों को निशाना बनाया गया और अब दलितों को निशाना बनाया जा रहा है. जब लखनऊ के हजरगंज इलाके में नीले झंडों के साथ बीजेपी के खिलाफ नारे लग रहे थे, ठीक उसी समय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी उना में पीड़ित बालू सरवैया के परिवार का हाल-चाल ले रहे थे. इसी परिवार के लोगों को 11 जुलाई को सरेबजार गोहत्या के नाम पर पीटा गया था. राहुल राजकोट के अस्पताल भी गए जहां, विरोध प्रदर्शन के लिए आत्महत्या की कोशिश करने वाले दलित भर्ती हैं. गुजरात में 11 लोग उत्पीडऩ के खिलाफ आत्महत्या की कोशिश कर चुके हैं. राहुल ने कहा, ''कुछ दिन पहले जो वीडियो पूरे हिंदुस्तान ने देखा, वो मैंने भी देखा. आज मैं उन बच्चों के परिवार से मिला, जिन्हें 40 लोगों ने मिलकर मारा.'' इसी समय राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल भी दलितों से मिल रहे थे. उधर, गुजरात में पैर जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी गुजरात जाकर दलित परिवार से मिलने का कार्यक्रम तय कर चुके हैं.
यह पहला मौका नहीं है, जब मोदी के राज में दलित उत्पीडऩ के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ हो. इससे पहले संसद के शीतकालीन सत्र में भी सरकार को ऐसे ही आंदोलन से दो-चार होना पड़ा था. उस समय हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में देश भर की यूनिवर्सिटियों में दलित आंदोलन तेज हो गया था. उस समय भी सरकार ने दलितों की समस्याएं सुनने के बजाए बहसबाजी और सरकारी ताकत से मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की थी. तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के बयानों ने विश्वविद्यालय के माहौल को और गरमाने में खासा योगदान दिया. संसद में मायावती और ईरानी की तीखी बहस तब सुर्खियों में रही थी. सरकार की इस रणनीति का नतीजा यह हुआ कि न चाहते हुए भी सारा विपक्ष कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ लामबंद हो गया था. हालात यहां तक पहुंचे कि जब प्रधानमंत्री मोदी लखनऊ में अंबेडकर यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में शिरकत करने गए तो छात्रों ने 'मोदी गो बैक' के नारे लगाए और काले झंडे दिखाए.
इस बार का दलित आंदोलन यूनिवर्सिटियों के रास्ते न आकर, सीधे सड़क से आ रहा है. बीजेपी ने निश्चित तौर पर दयाशंकर सिंह को फटाफट चलता कर, बेहतर पहल की है. लेकिन पिछले साल भर से गाय के नाम पर हिंदुत्व से जुड़े संगठन जिस तरह छुट्टा छोड़ दिए गए थे, उससे सरकार की छवि को पर्याप्त नुक्सान पहुंच चुका है. एक बार फिर दलित मुद्दे पर सारा विपक्ष कांग्रेस के साथ लामबंद होता नजर आ रहा है. ऐसे में मोदी सरकार को सोचना होगा कि उज्जैन के सिंहस्थ में दलित स्नान और मध्य प्रदेश में दलितों को पुजारी बनाने जैसी स्कीमों पर विरोध की यह नई आंधी पानी न फेर दे.