
बागुईहाटी से कोलकाता हवाई अड्डे तक वीआइपी रोड के सहारे महज छह किमी. के दायरे में कोई चाहे तो करीब 70 डांस बार में से किसी में अपनी शामें रंगीन कर सकता है. दिन भर के भारी तनाव और थकान को उतारने के लिए इन छोटी-छोटी रंगीन महफिलों में शराब, चटखारेदार व्यंजन और भड़कीले लिबास में मटकती-खनकती लड़कियां होती हैं, जो एक-दो नोट की चाह में ग्राहकों को लुभाने की कोशिश करती हैं. किसी कोने में कुछ मर्द उघड़े बदन और टांगों पर, नथूनों पर नोट लहराते दिखते हैं या फिर लबों से नोट उठाने की पेशकश करते दिखते हैं. फिर, कोई चाहे तो नाच-गाना तो उस अगले सफर का शुरुआती मंजर भर होता है जो छोटे-छोटे घरौंदों या कमरों में गुजरता है.
नर्तकियां पोल डांस करती हैं, वेटर बख्शीश पाने की खातिर रेजगारी लिए कमरों के चक्कर काटते रहते हैं. मोबाइल नंबर और पते पेपर नैपकिन पर लिए-दिए जाते हैं. हर घंटे कार और एसयूवी का तांता लगा रहता है. शहर के दक्षिणी और उत्तरी इलाकों में अब ऐसे दर्जनों बार उग आए हैं. यहां तक कि शहर के बेहद व्यस्त बीच के इलाकों में, पुलिस मुख्यालय से कुछ गज की दूरी पर भी ये आंखमिचैली करते दिखते हैं. शहर के बीचोबीच धरमतल्ला में दलाल सड़क पर आने-जाने वालों के पास आकर फुसफुसाते हैं, ''लागबे ना कि? लागबे ना कि?'' (चाहिए क्या? चाहिए क्या?) फिर कुछ और धीरे से कहते हैं, ''नूरजहां, अनारकली, पटाकागुड्डी.'' किसी में थोड़ी-सी दिलचस्पी दिखी नहीं कि वह एक कोने में ले जाकर भड़कीले लिबास में लड़कियों के फोटो का एल्बम दिखाने लगता है. कोई थोड़ा-सा झिझका तो उसे किसी बार में लगभग ठेल दिया जाता है, जहां एसी और संगीत ''ओ बेबी मेरी चिट्टियां कलाइयां वे'' पूरे जोर से चल रहा होता है. एसप्लानेड के एक बार नाइट्स क्वीन का तो रिव्यू वेबसाइट जोमाटो में आता है जिनमें हर बार 'संदिग्ध्य' गतिविधियों से इनकार किया जाता है.
इसमें दो राय नहीं कि ये बार घटिया और अश्लील हरकतों के अड्डे हैं. लेकिन, क्या ये गैर-कानूनी भी हैं? महाराष्ट्र सरकार ने डांस बार पर पाबंदी लगाने की कोशिश की और नाकाम रही. इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार को उसकी जिम्मेदारियों की याद दिलाई. न्यायमूर्ति दीपक मिश्र ने कहा, ''राज्य होने के नाते आपकी जिम्मेदारी इन औरतों की उनके कार्यस्थलों पर गरिमा की रक्षा करना है. आपको देखरेख करनी है तो आपका रवैया पाबंदी की हद तक नहीं होना चाहिए...जब प्रदर्शन अश्लील होने लगे तो उसे
कानूनी इजाजत के साथ बिलाशक रोका जाना चाहिए और बाकी मामला भारतीय दंड संहिता देखेगा.'' कोलकाता में कुछ ही लोग यह कहते मिलेंगे कि ये डांस बार गैर-कानूनी हैं. हालांकि कानून कुछ अजीबोगरीब किस्म का है. पश्चिम बंगाल आबकारी कानून की धारा-239 के मुताबिक, किसी लाइसेंसशुदा खुदरा दुकानदार को जिला मजिस्ट्रेट या कोलकाता के मामले में आबकारी कलेक्टर और पुलिस कमिशनर से विशेष इजाजत के बिना कोई पेशेवर मनोरंजन या गाने-बजाने के मंचीय प्रदर्शन की इजाजत नहीं है.
लेकिन इसका एक तोड़ है. कथित रूप से 'गुनगुनाने' का लाइसेंस दिया जा सकता है, जो पूरी तरह पुलिस विभाग की मर्जी पर निर्भर है. ऐसे कई डांस बार पर छापा मार चुके बारूईपुर के एसडीपीओ अरका बनर्जी बताते हैं, ''नगर निगमों के लाइसेंस में 'डांसिंग लाइसेंस' का कोई जिक्र नहीं है.'' पिछले साल मई में उनकी अगुआई में एक दल ने वीआइपी रोड के पास से 25 लड़कियों को मुक्त कराया. ये लड़कियां मानव तस्करी के जरिए हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से लाई गई थीं. यह एक मायने में उलटा मामला है क्योंकि अमूमन बंगाल से लड़कियों की तस्करी उत्तरी राज्यों में हुआ करती है. बनर्जी कहते हैं, ''समस्या यह है कि बार के मालिकों को अश्लीलता के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए तो पकड़ा जा सकता है लेकिन यह जमानती अपराध है. मानव तस्करी की गैर-जमानती धाराएं भी हैं मगर उसके लिए डिप्टी सुपरिंटेंडेंट या उसके ऊपर के पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारियों, जब्ती और जांच-पड़ताल के आधार पर मुकदमा चलाना पड़ता है. लेकिन, उत्तरी उपनगरों में 100 से अधिक बार हैं और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के पास काम का इतना बोझ है कि इन बार में क्या चल रहा है, इसकी तहकीकात करना संभव नहीं हो पाता.''
पॉइंट ऑफ व्यू एनजीओ चलाने वाली बिशाखा दत्ता कहती हैं, ''अश्लीलता के मुद्दे पर जोर देने के बदले इन औरतों को सुरक्षित कामकाजी स्थितियां मुहैया कराने पर जोर होना चाहिए. मसलन, यह देखा जाना चाहिए कि उनका वित्तीय शोषण होता है या नहीं, उनकी घूमने-फिरने की आजादी है कि नहीं, ग्राहक उन्हें परेशान तो नहीं करते. यानी जो बाकी पेशों के मामले में होता है, वह सब किया जाना चाहिए.''
कोलकाता में इन बार के खिलाफ पहली घंटी मार्च, 2015 में बजी. 21 वर्षीया ट्विंकल और उसकी 18 बरस की बहन रोजी राजपूत ने अपने मालिक के खिलाफ बागुईहाटी थाने में एफआइआर दर्ज कराई कि उन्हें एक ग्राहक का मनोरंजन करने पर मजबूर किया गया, जिसने उनसे बलात्कार की कोशिश की. लड़कियों का आरोप था कि उन्हें मनु अग्हिोत्री नाम का एक शख्स कोलकाता लाया. उसने उनसे नौकरी का वादा किया था और उन्हें चिनार पार्क के एक फ्लैट में रखा गया. उत्तर भारत की लड़कियों की यहां खास मांग है. एसडीपीओ बनर्जी कहते हैं कि ''कई दर्ज एफआइआर के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश लड़कियां उत्तर भारत से लाई जाती हैं. उनसे किसी ऑफिस में नौकरी या होटल में हाउसकीपिंग का काम दिलाने का वादा किया जाता है. लेकिन बाद में कोई पीड़िता बमुश्किल ही शिकायत दर्ज करा पाती है क्योंकि उन्हें कड़ी निगरानी में रखा जाता है. लेकिन जब कोई लड़की या महिला शिकायत करती है तो अमूमन उसकी वजह कमाई या मुनाफे में 'वाजिब' हिस्सेदारी न मिलना होती है.'' कई बार ये औरतें किसी एनजीओ के पास भी पहुंचती हैं. पंजाब की पूजा सिंह (नाम बदला हुआ) कहती है, ''जब मामला बर्दाश्त के बाहर हो जाता है, मसलन, जब कोई बैंड लीडर हमारा शोषण करता है तो हम हत्या का जोखिम उठाकर भी मदद की गुहार लगाती हैं. मसलन, मेरी एक दोस्त को गुप्त रोग लग गया तो बार मालिक ने उसका इलाज कराने के बदले उसका रुपया-पैसा दिए बिना उसे निकाल दिया.''
मानव तस्करी के ठीक-ठीक आंकड़े का पता लगा पाना तो मुश्किल है लेकिन कोलकाता पुलिस का मानना है कि ज्यादातर लड़कियों को राज्य के बाहर से दूसरे राज्यों से नौकरी के बहाने लाया जाता है. हालांकि मिलने वाले पैसे से मामला चलता रहता है. मुनाफे में डांसर से लेकर कथित बैंड लीडर, बार मालिक और धंधे में शामिल नेता तक की हिस्सेदारी बंटी होती है. और इतना काफी होता है कि धंधा फलता-फूलता रहे. बैंड लीडर मुख्य बिचैलिया होता है. वह दलालों के जरिए आई लड़कियों के रहने की व्यवस्था करता है और बार का क्रलोर किराए पर लेता है. नाम न छापने की शर्त पर एक बैंड लीडर ने बताया, ''इन लड़कियों को आवास मुहैया कराने का खर्च भारी है. हम 'पॉश' इलाकों में फ्लैट तलाशते हैं, जहां ज्यादा पूछताछ नहीं की जाती और मिली-जुली आबादी रहती है. कई बार किराया 30,000 रु. तक देना पड़ता है.'' बार मालिक अपनी जगह बैंड लीडर को किराए पर देता है और ध्यान रखता है कि कोई राजनैतिक दखलअंदाजी न करे. अपना नाम आरिफ बताने वाले बार के एक कर्मचारी ने कहा कि ''फ्लोर का किराया 20 लाख रु. महीने तक हो सकता है लेकिन आमदनी भी वीकेंड की एक रात में 15-20 लाख रु. तक हो सकती है. मशहूर बार की महीने में आमदनी तो 80 लाख रु. से 2 करोड़ रु. तक हो सकती है और सबसे मशहूर डांसर की कमाई एक से दो लाख रु. महीने तक हो सकती है.''
जगजीत सिंह और अजमल सिद्दीकी जैसे बार मालिक, जिनके नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हैं, करोड़पति बताए जाते हैं, जिनके बार विदेश में, थाईलैंड के शहर पटाया में, भी हैं. जगजीत टैक्सी ड्राइवर हुआ करता था. अपने पहले बार डाउन टाउन में वह हर शराब की बोतल पर एक बीयर मुफ्त देता था. 2006 में साल्ट लेक आइटी हब बना और न्यू टाउन (राजरहाट) भी चढऩे लगा था. जगजीत सिंह इन जगहों पर नए बार खोलने की हैसियत में आ गया था. विधाननगर थाने के एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि ''जगजीत सिंह का राजनैतिक रसूख ऐसा था कि बागुईहाटी थाने के इंस्पेक्टर-इन-चार्ज सुकोमल दास के उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज करने के बावजूद उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका. मानव तस्कारी के सिलसिले में पकड़े गए दो लोगों ने कबूल किया था कि उन्होंने सनसेट बार मालिक जगजीत के कहने पर औरतों की सप्लाई की थी. इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.'' पुलिस के मुताबिक, जगजीत सिंह इतना ढीठ है कि उसने डांस बार पर पाबंदी के एक आदेश के खिलाफ थाने पर प्रदर्शन की अगुआई की. विधाननगर थाने के एक और पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''हमने सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाने के आरोप में उसे पकड़ा, जो गैर-जमानती अपराध है पर उसे 15 दिन बाद जमानत मिल गई. उस दिन अदालत में छुट्टी थी और सरकारी वकील पेश नहीं हुआ.''
कांग्रेस नेता अरुणाव घोष के मुताबिक, ''नेताओं और बार मालिकों की सांठ-गांठ सब की जानकारी में है. धंधे का लाइसेंस देने वाले नगर निगमों पर सत्तारूढ़ पार्टी का कब्जा है और चुनाव प्रचार के लिए पैसे से लेकर हर तरह की सेवा मुहैया कराने के बदले राजनैतिक सरपरस्ती दी जाती है.'' राजनैतिक सरपरस्ती का मतलब है कि बार के खिलाफ आस-पड़ोस के लोगों की शिकायतों के बावजूद पुलिस हरकत में नहीं आती. पिछले साल जुलाई में एक डांस बार में झगड़े में गोली चलने और एक व्यक्ति के मारे जाने से हलचल मच गई थी. तब बार में डांस करने को उतावले कुछ लड़कों को मना कर दिया गया तो वे थोड़ी देर में बंदूक और पेट्रोल बम लेकर लौटे.
राजीव सरकार की अगुआई वाले एनजीओ इंडिया स्माइल की मुहैया कराई गई जानकारी और दस्तावेजों के आधार पर भी छापे डाले गए. पिछले साल अक्तूबर में विधाननगर के पुलिस कमिशनर जावेद शमीम ने अपने क्षेत्र में डांस बार के और परमिट तथा अनापत्ति प्रमाणपत्र देने पर रोक लगाने के लिए सख्त मेमो जारी किया. उनका जल्दी ही तबादला हो गया. पिछले साल अप्रैल में इंडिया स्माइल ने एक जनहित याचिका भी दायर की. इस साल 20 मई को कलकत्ता हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने राजीव को निर्देश दिया कि वे गैर-कानूनी गतिविधि पर नजर रखें और पुलिस को इसकी रिपोर्ट करें. न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा, ''याचिकाकर्ता उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर सकते हैं...याचिकाकर्ता अपनी सुविधा के अनुसार पुलिस को सूचित करे और पुलिस फौरन ऐसी शिकायत पर कार्रवाई करे.'' राजीव कहते हैं कि उन पर ''पहले ही जानलेवा हमला हो चुका है. गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से मुझे सुरक्षा मुहैया कराने को कहा है. लेकिन अदालत जो मुझसे करवाना चाहती है, उससे मुझे नहीं लगता कि मैं ज्यादा दिन तक जिंदा रह पाऊंगा.''
हालांकि कोलकाता के आबकारी कलेक्टर सुब्रत बिस्वास के मुताबिक, ''समस्या कोई बड़ी नहीं है. मंचीय प्रदर्शन हो रहा है लेकिन कोई कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी नहीं होती, तो न पुलिस दखल देती है और न हम.'' लेकिन क्या यही बात उन लड़कियों से कही जा सकती है जिन्हें कथित रूप से तस्करी के जरिए लाया गया या जिनके साथ बुरा व्यवहार होता है. क्या यही उन लोगों से कहा जा सकता है जो डांस बार के पड़ोस में रहते हैं और बार के आसपास मंडराने वालों से असुक्षित महसूस करते हैं. बार अगर सही देखरेख में चलें तो कोई समस्या नहीं होती लेकिन ऐसा लगता है कि शहर इस धंधे को नीम अंधेरे में चलाने का हिमायती है, जैसा डांस बार के ग्राहकों को भी पसंद है.