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काले धन से निबटने के लिए लौट आया इंस्पेक्टर राज

विदेश में जमा काले धन को लाने के लिए सरकार की कोशिशों से उदारीकरण के पहले के डरावने इंस्पेक्टर राज का वापसी की आशंका.

अंशुमान तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 20 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 6:03 PM IST

नरेंद्र मोदी का लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक बड़ा वादा कथित तौर पर विदेश में जमा काले धन को लौटा लाने का था. प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद भी मोदी कई बार कहते रहे कि इस छुपे धन से देश में विकास की तस्वीर बदल सकती है और आर्थिक वृद्धि की गति तेज हो सकती है. उन्हें संसद में तीखे हमले भी झेलने पड़े, जब शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने उन्हें अपना वादा न निभाने के लिए आड़े हाथों लिया. सो, सत्ता संभालने के दस महीने बाद केंद्रीय कैबिनेट ने 20 मार्च को देश के खोए धन को वापस लाने के मकसद से एक नए विधेयक को मंजूरी दी. लेकिन अघोषित विदेशी आय और संपत्ति (कराधान) विधेयक, 2015 (यूएफआइएआइटी) जैसे ही संसद में पेश किया गया, उसकी तीखी आलोचनाएं ही ज्यादा हुईं.

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उद्योग जगत से लेकर तमाम लोगों को इस विधेयक में जो बात सबसे अधिक खटक रही है, वह है इसमें आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्षकर बोर्ड (सीबीडीटी) और अन्य विभागों को दिए गए निरंकुश अधिकार. आकलन करने वाले अधिकारियों को अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत कुछ न्यायिक अधिकार भी दे दिए गए हैं. यही नहीं, कुछ नियम और प्रक्रियाओं में व्याख्या की गुंजाइश भी छोड़ दी गई है. इसके अलावा इसमें एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए कई तरह के मामले चलाने के रास्ते भी खोल दिए गए हैं.

कर योग्य आमदनी को छुपाना आम तौर पर दीवानी मामला माना जाता है लेकिन कालेधन के इस विधेयक ने विदेशों में जमा अघोषित धन को अपराध की श्रेणी में डालकर फौजदारी मामला बना दिया है. वित्त मंत्रालय की श्वेत-पत्र मजमून समिति के सदस्य तथा सीबीडीटी के पूर्व चेयरमैन एम.सी. जोशी के मुताबिक इसे फौजदारी अपराध बनाने का सुझाव काले धन के मामलों की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मोदी सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआइटी) की ओर से आया था. विधेयक में एक प्रावधान काले धन को प्रीवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत सूचीबद्ध अपराध की श्रेणी में रखने का है. इसका मतलब यह हुआ कि जैसे ही अधिकारियों को किसी करदाता की विदेश में जमा अघोषित संपत्ति या कमाई के स्रोत का पता चलेगा, पीएमएलए कानून के तहत कार्रवाई शुरू हो जाएगी. यह काफी कड़ा कानून है और इसे अमूमन मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी जैसे संगीन अपराधों के मामलों में अमल में लाया जाता है.

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वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक विदेश में जमा काले धन को पीएमएलए कानून के तहत लाने और उसे अपराध की श्रेणी में रखने का एक मकसद विदेश से सूचनाएं हासिल करने की कोशिश है. अगर अपराधिकता न जुड़ी हो तो अमूमन बैंक और सरकारी अधिकारी दोहरा कराधान निषेध संधियों के प्रावधानों के तहत सूचनाएं साझा करने को तैयार नहीं होते. हालांकि, सीबीडीटी के पूर्व सदस्य एस.एस. खान कहते हैं, ''नए प्रस्तावित कानून से (विदेश में जमा काले धन के बारे में) सूचना या सबूत पाने के नए दरवाजे नहीं खुलेंगे. इसके लिए अधिकारियों को दोहरा कराधान निषेध संधियों और कर सूचना विनिमय समझौतों पर ही आश्रित रहना होगा.''

कर विशेषज्ञ तथा टैक्सइंडिया ऑनलाइन डॉटकॉम के संपादक शैलेंद्र कुमार कहते हैं कि विधेयक के प्रावधानों की भाषा और भावनाओं पर गौर किया जाए तो पहली बार भारत में काले धन को पीएमएलए जैसे सख्त कानून के तहत लाकर सरकारी गंभीरता दिखाई गई है.
हालांकि जानकारों को आशंका है कि इस कानून के आकार लेने के बाद कर व्यवस्था में इंस्पेक्टर राज की वापसी हो जाएगी. इसकी मुख्य वजह यह है कि विधेयक में कर आकलन, जांच-पड़ताल और अपील (आयुक्त, पंचाट, हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट) के लिए व्यापक कानूनी मशीनरी खड़ा करने का प्रस्ताव है. यही मशीनरी जुर्माना ठोकने, अदालतों में मुकदमा चलाने और कर उगाहने का काम करेगी. यह कुल मिलाकर उसी व्यवस्था का नया रूप है जिसका उत्पीडऩ आर्थिक उदारीकरण के पहले के दौर में अनेक लोग झेलते रहे हैं.

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यही नहीं, इस विधेयक के मुताबिक कर वंचना के आरोप में उलझी किसी कंपनी के कारोबार के हर जिक्वमेदार और प्रभारी को दोषी माना जाएगा. इसका व्यावहारिक अर्थ यह हुआ कि सिर्फ कंपनी का मालिक ही नहीं, बल्कि कंपनी के सभी आला अधिकारी कानूनी कार्रवाई और सजा के हकदार होंगे. 
जानकारों का कहना है कि प्रस्तावित कानून के तहत एक ही वर्ष में किसी व्यक्ति के खिलाफ अनेक तरह की कानूनी प्रक्रियाएं चल सकती हैं. अगर किसी मामले में दो भिन्न-भिन्न कानूनों के प्रावधानों को मिला दिया जाए तो उसे दो तरह के कर आकलनों के अलावा दो तरह की अपील प्रक्रिया, दंड प्रक्रिया और मुकदमा तक झेलना पड़ सकता है. इसके साथ ही उस पर ईडी पीएमएलए कानून के तहत अलग से कार्रवाई कर सकता है.

कर विशेषज्ञ तथा कंसलटेंट फर्म एमिकस रारस के मुखिया सोमेश अरोड़ा कहते हैं, ''इस विधेयक (काला धन विधेयक) को पीएमएलए से जोडऩे की कोई तुक समझ में नहीं आती  क्योंकि विधेयक में कर उगाहने के कड़े प्रावधान मौजूद हैं. इसके अलावा एक खास स्तर के बाद कर आकलन की रकम जमा करने के बाद ही कोई अपील में जा सकता है.'' अरोड़ा कहते हैं कि हजारों ऐसे मामले हैं जिनके लिए ईडी के पास जांच-पड़ताल और कार्रवाई करने का तरीका नहीं है. वे कहते हैं, ''अपराध की वित्तीय सीमा स्पष्ट किए बिना पीएमएलए कानून को और कानूनों के साथ क्यों जोड़ा जाए? यह तो वैसा ही हुआ कि फांसी के फंदे के आकार के हिसाब से किसी  का गला ढूंढ़ लिया जाए.''

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लेकिन वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता डी.एस. मलिक कहते हैं कि विधेयक काफी सख्त नहीं हैं क्योंकि इसमें दुरुपयोग रोकने की खातिर कई तरह के उपाय किए गए हैं. उन्होंने इंडिया टुडे के ई-मेल के जवाब में कहा, ''प्राकृतिक न्याय और कानूनी प्रक्रिया के अनुपालन का ख्याल रखकर विधेयक में आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के पहले नोटिस देने के प्रावधान को अनिवार्य बनाया गया है.'' उनके मुताबिक प्रस्तावित कानून में यह व्यवस्था है कि हर संदिग्ध को सुनवाई और सबूत पेश करने का मौका दिया जाएगा. दुरुपयोग को रोकने के लिए हर वजह की रिकार्डिंग, लिखित में आदेश देने और समय सीमा के भीतर कार्रवाई करने जैसे प्रावधान किए गए हैं.

महत्वपूर्ण यह भी है कि विधेयक में विदेश में अघोषित आमदनी या संपत्ति रखने वाले निवासी भारतीयों को अपनी संपत्ति घोषित करने, कर चुकाने और जुर्माना भरने का एक बार एकमुश्त अवसर देने का प्रस्ताव है. इसके बदले उन्हें इन संपत्ति पर संपत्ति कर नहीं देना होगा और उन्हें आयकर कानून, संपत्ति कर कानून, सीमा शुल्क कानून, विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन कानून और कंपनी कानून के तहत कार्रवाई और मुकदमा नहीं झेलना होगा. 

लेकिन इस योजना के कारगर होने पर सिर्फ सैद्धांतिक ही नहीं, बल्कि प्रक्रियागत सवाल भी उठाए जा रहे हैं. शैलेंद्र कुमार कहते हैं, ''विधेयक की भाषा में यह स्पष्ट नहीं है कि अघोषित संपत्ति की घोषणा करने वाले को आय के स्रोत या संपत्ति के बारे में पूछा जाएगा या नहीं. और अगर कोई गैर-कानूनी स्रोत से आमदनी की बात कबूल करता है तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह मामला पीएमएलए कानून के तहत कार्रवाई करने के लिए ईडी की ओर नहीं भेजा जाएगा.'' वे चेताते हैं, ''कोई याद कर सकता है कि वीडीआइएस (स्वैच्छिक आय उद्घोषणा योजना) योजना के खत्म होने के बाद कुछ राज्यों के बिक्रीकर अधिकारियों ने कुछ व्यापारियों और फर्मों को घोषित अतिरिक्त बिक्री से प्राप्त रकम पर कर भुगतान का नोटिस भेज दिया.''

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लेकिन वित्त मंत्रालय के मलिक जोर देकर  कहते हैं कि यह कोई आम माफी योजना नहीं है क्योंकि इसमें दंड से छूट की पेशकश नहीं है. वे कहते हैं, ''नए कानून के सख्त प्रावधानों के लागू होने के पहले यह लोगों को अपना दामन पाक-साफ करने और कर अदा करने का महज एक अवसर है.'' हालांकि कर वंचना का खुलासा करने वाली  योजनाएं अब तक 12 बार- 1991 में आय उद्घोषणा से लेकर 1997 में वीडीआइएस तक-जारी की जा चुकी हैं और बहुत सफल नहीं रही हैं. इसकी मूल वजह यह आम धारणा है कि सरकार कर वंचना पर अंकुश लगाने के मामले में गंभीरता नहीं दिखा पाती. भारत में बड़े रसूखदार और ऊंची पहुंच वाले लोग अमूमन बिना किसी दंड या जुर्माने के छूट जाते हैं. इसके विपरीत, रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिका अपने ऑफसोर वालेंटरी डिसक्लोजर प्रोग्राम के जरिए 5 अरब डॉलर का कर राजस्व जुटा चुका है. इसी तरह इटली में 56 अरब यूरो की रकम वापस लाने के अलावा 1.4 अरब यूरो का कर राजस्व जुटाया जा चुका है. सो, आश्चर्य नहीं कि इन दोनों देशों के अलावा यूरोप के कई देशों ने अपने इरादे की गंभीरता दिखाने के लिए कई बड़े रसूखदार लोगों पर कार्रवाई की.

विधेयक विदेशी खातों में जमा काले धन को अपराध की श्रेणी में तो रखता है पर सरकार अभी भी देश में पैदा होने वाले काले धन पर मौन है. वित्त मंत्रालय के पास देश और विदेश में काले धन के बारे में कोई ठोस सूचना नहीं है. उसने तीन सरकारी थींक टैंक को भारत और विदेश में जमा काले धन की कुल रकम का आकलन करने और उसके पैदा होने की वजहें पता लगाने का जिम्मा दिया था लेकिन इनकी कोई रिपोर्ट आज तक जारी नहीं हुई है.

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बहरहाल, भ्रष्टाचार और काले धन के मामले में जनता की संवेदनशीलता को देखते हुए किसी राजनैतिक दल से इस विधेयक का पूरी तरह विरोध करने की उम्मीद तो नहीं की जा सकती, फिर भी सरकार को इसके कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर जवाब देना मुश्किल हो सकता है. संयोग से, यह वित्त विधेयक है इसलिए इस पर राज्यसभा में बहस जरूरी नहीं होगी. इसे निचले सदन लोकसभा में सीमित बहस में पारित किया जा सकता है. कुछ आलोचकों के मुताबिक सरकार की यह किसी तरह के विरोध से बचने की भी जुगत है.

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