
उस दौर में खेल के नाम पर हमारे पास सिर्फ एक गेंद हुआ करती थी और हम उसे कभी जेब तो कभी रजाई में लेकर सोया करते थे. सूरज अभी तांडव ही मचाता रहता था कि हम बाहर निकलने के लिए मचलने लगते थे. कभी अगले दरवाजे से तो कभी पिछले दरवाजे से. मौका मिला नहीं कि हम ऐसे छूमंतर हो जाते थे जैसे जंगल में कोई खरहा. तब जेब में इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि हम एक बल्ले के मालिक हो जाएं और बल्ले का मालिक ही कप्तान भी हुआ करता था. वही तय करता था कि सबसे पहले बल्लेबाजी कौन करेगा और कौन गेंदबाजी. उन दिनों बैटिंग टॉस के बजाय किसी साथी के पीछे नंबर बुलवाकर या फिर बल्ले के पीछे नंबरिंग करके मिलती थी.
किसी को सिर्फ नाली से गेंद निकालने के लिए टीम में रखा जाता था तो वहीं बल्ले के मालिक के भाई को आउट होने के बाद भी आउट करार नहीं दिया जाता था. अंपायर खुल कर धांधली करता था और किसकी मजाल कि उसे आंखें दिखा दे? सारे खिलाड़ी बल्ले के मालिक की टीम में ही शामिल होना चाहते और अच्छा से अच्छा गेंदबाज भी उसे पूरी क्षमता से गेंदबाजी नहीं करता. हम सभी भी इसी बात को लेकर खुश रहते कि चलो खेलने को तो मिल रहा है. अब जिसका बल्ला होगा वो इतनी गुंडागर्दी तो कर ही सकता है. साथ ही हम अपनी जेबखर्च के पैसे बचा कर इस जुगत में लगे रहते कि एक दिन हम भी अपनी पसंद का बल्ला खरीद लेंगे. रोज जा कर चौक वाली स्पोर्ट्स दुकान पर बल्लों को एक नजर देख आया करते और यह भी देख आया करते कि कहीं हमारा पसंदीदा बल्ला बिक तो नहीं गया.
दिन भर हवा में ही गेंद को बाउंड्री पार पहुंचाने के लिए प्रतीकात्मक हवाई शॉट्स लगाना और सचिन-धोनी जैसे खिलाड़ियों के सपने देखना ही पसंदीदा शगल हो गया था. क्रिकेट सम्राट मैगजीन खरीद के एक बार में ही उसकी सारी कहानियां पढ़ जाना और टीवी से दूर होने पर भी रेडियो को कान से लगाए रखना कोई मामूली शौक तो नहीं ही था. किसी के डांटने पर उसे ऐसी नजरों से देखना जैसे उससे पीढ़ियों की खुन्नस हो और अगला आपकी तरक्की से मन ही मन जलता है. सपने में सोचना कि भैया एक दिन तो जरूर आएगा जब तुम हमारा ऑटोग्राफ लेने के लिए कतार में खड़े रहोगे और हम तुमको पहचानने से भी मना कर देंगे.
धीरे-धीरे हम बड़े होते चले गए और बड़े होन के साथ-साथ एक बल्ले के मालिक भी हो गए. मगर इस बड़प्पन ने हमसे हमारी सरल-सहज ठसक को भी छीन लिया. हमारा लोगों पर धौंस दिखाने का सपना बस सपना ही रह गया...