
डीडीए के बुलडोजर ने जब दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी की ओर रुख किया, तो मकसद मकानों को सिर्फ तोड़ना नहीं, बल्कि उन्हें पूरी तरह से ज़मीदोज़ कर देना था. बुधवार को इस कॉलोनी का मंजर किसी भूकंप के बाद की भयावहता को दिखा रहा था और मलबे के ढेर पर बैठकर अपने दबे हुए सामानों को निकालते लोगों की आंखों में बस एक ही सवाल था कि आखिर वो जाएंगे कहां.
यूं तो कठपुतली कॉलोनी अपने नाम के मुताबिक कठपुतलियों का खेल दिखाने वाले कलाकारों के लिए जानी जाती है, यहां हर घर में कोई न कोई कलाकार बसता है. कोई कठपुतली का करतब दिखाने तो कोई ढोल बजाने के लिए मशहूर है. यहां रहनेवालों का काम लोगों को तमाशा दिखाकर उनका मनोरंजन करना है, लेकिन तीन दिन से सड़क किनारे घर गृहस्थी का सामान लेकर बैठे लोगों को देखने के लिए तमाशबीनों की भीड़ लगी हुई है.
'आजतक' की टीम जब कठपुतली कॉलोनी पहुंची, तो कॉलोनी में घुसने से पहले ही हमारी मुलाकात बाईजी से हुई. बाईजी का भरा-पूरा परिवार है और 16 लोग हैं, जिनमें बच्चे और महिलाएं शामिल हैं, लेकिन डीडीए के बुलडोजर ने सबकुछ तबाह कर दिया . घर से जुड़े कागज़ दिखाते हुए बाई जी ने बताया कि डीडीए के लोग ट्रांजिट कैंप में जाने के लिए बोलते हैं, लेकिन ट्रांजिट कैंप में कहां जाएं, कोई नहीं बताता.
शादी ब्याह और खुशी के मौके पर लोगों के घरों में ढोल बजाकर लोगों को नाचने पर मजबूर करने वाले घनश्याम दो दिन से सारे ऑर्डर कैंसिल करके सड़क पर आयी गृहस्थी को संभालने में लगे हैं, उनका ढोल खामोश है. उनका कहना है कि न मोदी न केजरीवाल किसी भी सरकार ने उनकी सुध नहीं ली, ऐसे कोई किसी का घर तोड़ता है क्या.
बस्ती का मंजर तो किसी ज़लजले के बाद की भयावह तस्वीर बयां कर रहा था. चारों तरफ मलबा ही मलबा पड़ा हुआ था और लोग उसी मलबे के ढेर के बीच से अपना बचा हुआ सामान समेट रहे थे. डीडीए इस ज़मीन को खाली कराकर यहां इन लोगों के लिए ऊंचे फ्लैट्स वाली इमारत बनाने का दावा कर रहा है. लेकिन इस बस्ती के मुखिया प्रदीप भट्ट बताते हैं कि सर्वे के मुताबिक सिर्फ 2800 लोगों को यहां मकान देने की बात कही गई है, जबकि बस्ती में चार हज़ार से ज्यादा परिवार हैं, जिनके पास यहां डेडलाइन के मुताबिक सबूत हैं. लेकिन डीडीए अपने मुताबिक किए गए सर्वे से हटने को तैयार नहीं है.
बस्ती के लोगों ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट से स्टे मिलने के बाद भी उनके घर ज़मीदोज़ कर दिए गए. ऑर्डर दिखाने के बाद भी तमाम मकान तोड़ दिए गए, वहीं ट्रांजिट कैंप में लोगों को जबरदस्ती भेजा जा रहा है, जहां न तो कोई सुविधा है और न ही अस्थायी आशियाने की कोई व्यवस्था.
डीडीए की तरफ से फिलहाल कोई अफसर प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार नहीं हुआ. लेकिन अभी कठपुतिलयों को नचाने वाले ये लोग खुद डीडीए पुलिस और सरकारी भरोसे के बीच कठपुतली बने हुए हैं.