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हाथियों के उत्पात से फसल चौपट, कर्ज में डूबे किसान ने की खुदकुशी

छत्तीसगढ़ के कोरबा में हाथियों के हमले से परेशान होकर एक किसान ने आत्महत्या कर ली. इस किसान के खेतों पर आए दिन हाथियों का हमला होता रहता था. हाथि‍यों का झुंड खेत-खलिहानों में लगी लहलहाती फसलों को चट कर जाता था. 

खुदकुशी को मजबूर हुआ किसान खुदकुशी को मजबूर हुआ किसान
aajtak.in
  • कोरबा,
  • 01 अगस्त 2015,
  • अपडेटेड 10:12 PM IST

छत्तीसगढ़ के कोरबा में हाथियों के आतंक से परेशान होकर एक किसान ने आत्महत्या कर ली. इस किसान के खेतों पर आए दिन हाथियों का हमला होता रहता था. हाथि‍यों का झुंड खेत-खलिहानों में लगी लहलहाती फसलों को चट कर जाता था.  

हाथियों के लगातार हमले के चलते पीड़ित किसान पर बैंक का कर्ज ढाई लाख तक पहुंच गया था. उधर नष्ट फसल के मुआवजे की रकम मात्र तीन हजार दो सौ चालीस रुपये अदायगी के लिए वन विभाग उसे तीन माह से इंतजार करा रहा था, जबकि यह रकम किसान को मात्र 10 दिनों के भीतर अदा की जानी थी. आखि‍रकार आर्थिक तंगी के चलते किसान ने आत्महत्या कर ली.

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कोरबा के बुंदेली गांव में मातम पसरा है, क्योंकि इस घर में रहने वाले 32 साल के नौजवान जोगेश्वर सिंह कंवर ने हाथियों के हमले से परेशान होकर आत्महत्या कर ली. जोगेश्वर अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए खेती पर निर्भर था. उसने बैंक से कर्ज लेकर नौ एकड़ की जमीन पर धान की फसल लगाई थी. जोगेश्वर और उसके परिवार को काफी उम्मीद थी कि इस बार फसल अच्छी आएगी, लेकिन उसके खेत पर हाथियों ने हमला कर दिया. हाथी फसल खा गए और बची-खुची फसलों को रौंद डाला.

फसल के नुकसान की शिकायत जोगेश्वर ने वन विभाग से की. नष्ट फसल का मुआवजा नियमानुसार दस दिन के भीतर अदा किया जाना था. लेकिन अफसरशाही और लालफीताशाही के चलते यह रकम जोगेश्वर को तीन माह बाद भी नहीं मिल पाई. वन विभाग ने पीड़ित किसान को नौ एकड़ की फसलों के नुकसान की बजाए मात्र तीन एकड़ में फसलों के नुकसान का ब्योरा तैयार किया.

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नुकसान की रकम बतौर मुआवजा मात्र 3240 रुपये दिया जाना तय हुआ. यह रकम भी उसे समय पर नहीं मिल पाई. वन विभाग के चक्कर काटते-काटते तीन माह से ज्यादा वक्त गुजर गया. लेकिन मुआवजे की रकम मिलने का कोई आसार नजर नहीं आया. आखि‍रकार जोगेश्वर ने बैंक के कर्ज की अदायगी से परेशान होकर जहर खा लिया. उसे गंभीर हालत में अस्पताल में दाखिल कराया गया, लेकिन उसकी मौत हो गई.

मौत को गले लगाने से पहले उसने वन विभाग और कलेक्टर के दफ्तर का भी रुख किया था. लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. उसकी मौत की खबर जब वन विभाग के अफसरों को लगी, तो वे जांच का भरोसा देकर मामले की लीपापोती में जुट गए. वन विभाग के मुताबिक, मुआवजे की रकम की अदायगी गांव के सरपंच, रेंजर और SDO की मुहर लगने के बाद होती है. अब वन विभाग पीड़ित परिवार को न्याय का भरोसा दिला रहा है.

उधर, इस किसान की आत्महत्या को लेकर रमन सिंह सरकार ने कोरबा कलेक्टर से रिपोर्ट मांगी है. छत्तीसगढ़ के आधा दर्जन जिलों में हाथियों का जबरदस्त आतंक है. झारखण्ड और ओडिशा की सीमा से लगे इन जिलों में एलिफैंट कॉरिडोर बनाने की योजना को सन 2007 में मंजूरी मिली थी. लेकिन आठ साल बाद भी यह योजना पूरी नहीं हो पाई. हर माह सैंकड़ों किसान हाथियों के हमले का शिकार होते हैं. ज्यादातर किसानों को फसल चौपट होने का नुकसान उठाना पड़ता है. कई किसान ऐसे भी होते हैं, जो खेत-खलिहानों में हाथियों के हमले के दौरान भाग नहीं पाते, नतीजतन उन्हें हाथी मौत के घाट उतार देते हैं.

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