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शिव’राज’ में दम तोड़ रही गरीबों को खाना देने वाली ‘दीनदयाल रसोई योजना’

शिवराज सरकार ने इस योजना के लिए अभी तक एक पैसा भी रिलीज नहीं किया. ऐसी स्थिति में जिन्हें इस योजना को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी वो अब हाथ पीछे खींचने की बात करने लगे हैं.  

शिवराज सिंह चौहान (फाइल) शिवराज सिंह चौहान (फाइल)
हेमेंद्र शर्मा/खुशदीप सहगल/रणविजय सिंह
  • भोपाल,
  • 30 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:23 PM IST

शिवराज सिंह चौहान सरकार ने इस साल अप्रैल में ‘दीनदयाल रसोई योजना’ की शुरुआत बड़े जोर-शोर से की थी. पंडित दीन दयाल उपाध्याय के जन्मशती समारोहों के तहत शुरू की गई इस योजना में गरीबों को 5 रुपए में भोजन उपलब्ध कराने की बात कही गई थी. पंडित दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों के मुताबिक इस योजना का लक्ष्य समाज में आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति तक राहत पहुंचाना था. लेकिन अब करीब 8 महीने बाद इस योजना की जमीनी हकीकत भी जान लीजिए. शिवराज सरकार ने इस योजना के लिए अभी तक एक पैसा भी रिलीज नहीं किया. ऐसी स्थिति में जिन्हें इस योजना को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी वो अब हाथ पीछे खींचने की बात करने लगे हैं.   

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आइए पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस बयान पर गौर करें जो उन्होंने 7 अप्रैल 2017 को ग्वालियर में ‘दीनदयाल रसोई योजना’ के उद्घाटन के वक्त दिया था. मुख्यमंत्री ने कहा था, “एक विचार मेरे मन में आया. मैंने गरीब लोगों  के बारे में सोचा. वो जो मजदूर हैं, पुरुष और महिलाएं जो गुजारे के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते हैं. वो जो रोजी रोटी की तलाश में शहरों में आते हैं. मैंने सोचा कि उन्हें भूखा नहीं रहना चाहिए. इसी विचार से ‘दीनदयाल रसोई योजना’ ने जन्म लिया. गरीबों के मसीहा दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर योजना जिसमें गरीब लोगों को मात्र 5 रुपए में पौष्टिक और स्वादिष्ट खाना उपलब्ध कराया जाए. मेरा सपना है कि कोई भी भूखा नहीं रहना चाहिए.”        

मुख्यमंत्री चौहान ने इस योजना को पंडित दीन दयाल उपाध्याय के जन्मशती वर्ष में उन्हें याद करने का सबसे अच्छा तरीका भी बताया था. तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की ‘अम्मा कैन्टीन’ की तर्ज पर मध्य प्रदेश में शुरू की गई दीनदयाल रसोई योजना का ‘आज तक/इंडिया टुडे’  ने रियलिटी चेक किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

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मुख्यमंत्री चौहान के गृह जिले सीहोर में दीनदयाल रसोई योजना चलाने की जिम्मेदारी प्रदीप शर्मा पर है. इस साल 7 अप्रैल से ही शर्मा 500 लोगों को हर दिन 5 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से भोजन उपलब्ध करा रहे हैं. उन्हें गेहूं और चावल एक रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिलता है. लेकिन शर्मा का दावा है कि अप्रैल में योजना शुरू होने के बाद से अब तक वो अपनी जेब से 8 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं. योजना की शुरुआत के वक्त सरकार ने वादा किया था कि होने वाले खर्च और 5 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से प्राप्त होने वाली रकम में जो भी अंतर होगा, उसकी भरपाई सरकार की ओर से की जाएगी. शर्मा का दावा है कि अभी तक एक पैसा भी उन्हें सरकार से नहीं मिला है. शर्मा के मुताबिक वो इस सिलसिले में कई बार सरकार से गुजारिश कर चुके हैं  लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. शर्मा ने साथ ही कहा कि ऐसी स्थिति में उन्हें ‘दीनदयाल रसोई’ को बंद करना पड़ेगा.      

दीनदयाल रसोई में योजना के जो बैनर टंगे हैं उनमें मुख्यमंत्री चौहान की तस्वीर प्रमुखता से नजर आती है. दीवारों और टोकन बुक पर योजना के बारे में जो लिखा गया है, उसमें साफ कहा गया है कि ये सरकारी योजना है. जो लोग रसोई में खाना खाने आते हैं, उन्हें ये देखकर यही लगता है कि सस्ता खाना मुहैया कराने के लिए सरकार मदद देती है. रसोई में खाना खाने वाले एक शख्स ने कहा, “ये सरकारी योजना है और अगर ये बंद होती है तो बहुत दुखद होगा.”

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सीहोर के चीफ म्युनिसिपल ऑफिसर सुधीर कुमार सिंह का इस प्रकरण पर कहना है, “ये सरकारी योजना नहीं है. इसे दान देने वालों की मदद से चलाया जाना था. सीहोर में दान देने वाले नहीं मिल रहे हैं. हम अपनी तरफ से दानकर्ता तलाश करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.”  

सीहोर अकेला जिला नहीं है जहां दीनदयाल रसोई योजना दम तोड़ती नजर आ रही है. खरगौन में दीनदयाल रसोई को प्रकाश स्मृति सेवा संस्थान चला आ रहा है. इस संस्थान के मैनेजर विक्रम सिंह चौहान का कहना है, “योजना शुरू होने के बाद से अब तक हम आठ लाख रुपए खर्च चुके हैं लेकिन बदले में कुछ भी वापस नहीं मिला. हम ज्यादा देर तक इसे नहीं चला सकते. अगर हमारा पैसा जारी नहीं किया गया तो हम मार्च में इसे बंद कर देंगे.”

दीनदयाल रसोई योजना की ऐसी ही बदहाली मुरैना, भिंड और अलीराजपुर जिलों में भी देखने को मिली. मुरैना में रसोई चलाने वाले मां वैष्णो देवी भंडार ट्रस्ट के मैनेजर घनश्याम बॉथम ने कहा, “योजना अप्रैल में शुरू की गई तो कुछ दानकर्ता सामने आए. लेकिन अब कोई कुछ नहीं दे रहा, सब कुछ अपनी जेब से ही खर्च करना पड़ रहा है. ऐसे ही चलता रहा तो रसोई को बहुत जल्दी बंद करना पड़ेगा.” भिंड में रसोई चलाने वाली सम्पूर्ण विकास सेवा समिति के मैनेजर लक्ष्मण राजावत ने भी ऐसी ही व्यथा व्यक्त की. अलीराजपुर में दीनदयाल रसोई के मैनेजर संतोष तेहपाडिया ने कहा कि गरीबों के लिए ये बड़ी अच्छी योजना है, लेकिन सरकार के फंड रिलीज नहीं करने की वजह से ये लंबा नहीं चल पाएगी.

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दीनदयाल रसोई योजना की बदहाली पर विपक्षी दल कांग्रेस को भी शिवराज सिंह चौहान सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया है. मध्य प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने कहा, “ये सब वाकई बहुत दुखद है. वो दीनदयाल उपाध्याय और कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति की बात करते हैं. और योजना का नाम दीनदयाल रसोई रखा जाता है...और अब फंड की कमी की वजह से योजना बंद होने के कगार पर आ गई है. जिस तरह योजना को चलाया जा रहा है वो सरकार के चेहरे पर धब्बा है.”

वहीं शहरी विकास मंत्री माया सिंह का कहना है कि सरकार ने कभी भी योजना के लिए पैसा देने का वादा नहीं किया था, योजना को दान की मदद से चलाया जाना था. मंत्री ने ये भी दावा किया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि कई जिलों में रसोई को चलाने वाली संस्थाओं इन्हें बंद करने की बात कह रहे हैं.

मंत्री को ये जानकारी नहीं लेकिन सरकार की नाक के ठीक नीचे भोपाल में दीनदयाल रसोई को चलाने वाली घनश्याम सेवा समिति के मैनेजर अभिजीत अस्थाना ने कहा, हमने म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को चिट्ठी लिखी है. साथ ही 30 नवंबर की डेडलाइन रखी है. अगर हमें इस तारीख तक पैसा नहीं मिला तो हम रसोई को बंद कर देंगे.

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अब देखना है कि दीनदयाल रसोई योजना की शुरुआत के वक्त प्रचार से अपने लिए खूब वाहवाही बटोरने वाली शिवराज सरकार कब जागती है? कब आखिरी सांसें ले रही इस योजना की सुध लेती है जिसके जरिए किसी को भूखा नहीं सोने देने का दावा किया गया था.  

(नावेद जाफरी, उमेश रेवालिया, चंद्र भान सिंह भदौरिया, गिरिराज राजोरिया, हेमंत शर्मा और इरशाद खान के इनपुट्स के साथ)

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