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दीपिका कुमारी, 18 वर्ष
इंडिविजुअल और टीम रिकर्व
रांची, झारखंड
उनकी कहानी रांची से 15 किमी दूर झारखंड के छोटे से गांव रातू चाती की उस छोटी-सी लड़की से शुरू होती है जो आम के बगीचे में जाकर आम तोड़ने के लिए पत्थर मारा करती. खेल में आगे बढ़ने का फैसला उन्होंने छोटी उम्र में ही ले लिया था. उनके पिता शिवनारायण महतो ऑटोरिक्शा चालक हैं.
दीपिका को उनके पिता ने अपनी सीमित आय के बावजूद भरपूर प्रोत्साहन दिया. 2005 में उन्होंने एक मोटरसाइकिल उधार ली और उस पर बिठाकर दीपिका को खरसावा के अर्जुन आर्चरी एकेडमी में अभ्यास के लिए ले जाया करते थे. उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि दिल्ली में 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में दीपिका ने गोल्ड मेडल जीता और सबकी जुबान पर उनका नाम छा गया.
दीपिका ने इस वर्ष तुर्की के अंताल्या में हुए वर्ल्ड कप फाइनल में 2004 की एथेंस ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता ली सुंग जिन को हराया. उन्होंने जमशेदपुर की टाटा आर्चरी एकेडमी में पूर्णिमा महतो के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण पाया है. वे रोज आठ घंटे का शारीरिक अभ्यास करती हैं और इसी के साथ मानसिक व्यायाम भी. खाली समय में उन्हें अपने पसंदीदा गायक शान के गाने सुनना पसंद है.
खास है दीपिका कभी भी स्कोरबोर्ड पर नजर नहीं डालतीं, इसलिए शुरुआती चरणों में उन पर कोई दबाव हावी नहीं होता.
चुनौतियां हाल ही में वे बीमार पड़ी थीं जिसके कारण वे कमजोर हो गईं हैं और हवा के विरुद्ध तीर चलाने में उन्हें थोड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है.
मिशन ओलंपिक 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में दीपिका ने इंडिविजुअल और रिकर्व टीम प्रतिस्पर्धा में दो गोल्ड मेडल जीते थे. उसी साल उन्होंने रिमिल बरियूली और डोला बनर्जी के साथ एशियन गेम्स में मेडल जीता था. 2012 की वर्ल्ड कप विजय ने उन्हें विश्व में पहले स्थान पर पहुंचा दिया है.