
दिल्ली की सत्ता से 21 साल से बाहर बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने अपना सीएम चेहरा उतारेगी या नहीं इसपर सबकी निगाहें हैं. हालांकि, चुनाव के ऐलान के साथ किए अपने ट्वीट में जब अमित शाह ने पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का संकेत दिया तो अटकलें लगने लगीं कि क्या बीजेपी पिछली बार की तरह इस बार सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं करेगी. दरअसल, बीजेपी दिल्ली में पूर्वांचली-पंजाबी और जाट वोटों को एक साथ साधकर रखना चाहती है. यही वजह है कि बीजेपी ने दिल्ली की सियासी जंग फतह करने के लिए सीएम फेस के बजाय केंद्रीय और सामूहिक नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में दिख रही है.
दिल्ली की सियासत में पूर्वांचली-पंजाबी और जाट समुदाय एक समय में बीजेपी का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है. दिल्ली की बदली हुई राजनीति में ये तीनों समुदाय बीजेपी से छिटक कर केजरीवाल की पार्टी के साथ चला गया था, जिसे पार्टी वापस लाने के लिए पिछले पांच साल से मेहनत कर रही है. ऐसे में बीजेपी किसी एक समुदाय के किसी नेता को सीएम पद का फेस घोषित कर दूसरे समुदाय को नाराज करने का जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती है.
दिल्ली में पूर्वांचल का समीकरण
दिल्ली में करीब 25 फीसदी से ज्यादा मतदाता पूर्वांचली हैं. दिल्ली की किराड़ी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, बादली, गोकलपुर, जनकपुरी, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, करावल नगर, विकासपुरी, सीमापुरी जैसी विधानसभा सीटों पर पूर्वांचली मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. दिल्ली में पूर्वांचली मतदाताओं को बीजेपी ने अपने साथ जोड़े रखने के लिए मनोज तिवारी को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है. तिवारी बीजेपी में पूर्वांचली चेहरा माने जाते हैं.
पंजाबी मतदाता दिल्ली में किंगमेकर
वहीं, दिल्ली में करीब 35 फीसदी आबादी पंजाबी समुदाय की है. इनमें 10 फीसदी से ज्यादा पंजाबी खत्री और 8 फीसदी आबादी जाटों और 12 फीसदी वैश्य समुदाय हैं. दिल्ली की विकासपुरी, राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर,राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, गांधी नगर, मॉडल टाऊन, लक्ष्मी नगर और रोहिणी विधानसभा सीट पर पंजाबी समुदाय जीत हार तय करते हैं.
दिल्ली में एक दौर में पंजाबी वोटर बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माने जाते थे. मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी की तिकड़ी को बीजेपी का पंजाबी चेहरा माना जाता था. पंजाबी वोटरों के सहारे ही बीजेपी 1993 में सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने में कामयाब भी रही थी. फिलहाल बीजेपी के पास पंजाबी समुदाय से कोई बड़ा चेहरा नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी को दिल्ली का सहप्रभारी की जिम्मेदारी देकर उसकी भरपाई करने की कोशिश की है.
बाहरी दिल्ली की सीटों जाट वोटर्स निर्णायक
दिल्ली के 364 में से 225 गांव जाट बहुल हैं और विधानसभा चुनावों में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी जाट मतदाताओं की रहती है. बाहरी दिल्ली के तहत आने वाली विधानसभा सीट पर जीत हार का फैसला जाट समुदाय के मतदाता करते हैं. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. साहेब सिंह वर्मा एक दौर में बीजेपी का जाट चेहरा हुआ करते थे. मौजूदा समय में साहेब सिंह वर्मा के बेटे और प्रवेश सिंह वर्मा दिल्ली से सांसद हैं और पार्टी के जाट चेहरा माने जाते हैं.
बीजेपी जोखिम लेने के मूड में नहीं
बीजेपी ऐसे में दिल्ली की सियासी समीकरण और क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखना चाहती है. ऐसे में वो किसी एक चेहरे को आगे कर दूसरे समुदाय को नाराज नहीं करती चाहती है. इसीलिए बीजेपी दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ सीएम फेस को लेकर कशमकश में है. ऐसे में बीजेपी किसी चेहरे की बजाय सामूहिक नेतृत्व में चुनावी किस्मत आजमाना चाहती है.
बीजेपी दिल्ली में अपने पिछले अनुभवों को देखते हुए पार्टी की ओर से सीएम कैंडिडेट कौन होगा इस सवाल से बचने की कोशिश कर रही है. बीजेपी यही संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह केंद्रीय और सामूहिक नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरेगी. दरअसल बीजेपी में किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा लेकिन दिल्ली के इतिहास में पार्टी की अब तक की सबसे करारी हार हुआ है. ऐसे में बीजेपी अब दोबारा से ऐसी गलती नहीं करना चाहती.