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दिल्ली में 12 फीसदी मुस्लिम वोटर, 4 सीटों पर किंग-4 सीटों पर किंगमेकर

दिल्ली में लगभग हर आठवां मतदाता मुस्लिम है और 2020 के विधानसभा चुनावों में उनके वोट कई सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस और AAP के बीच मुस्लिम वोटों को अपने-अपने पाले में लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं. ऐसे में देखना होगा कि मुस्लिम समुदाय का दिल किसके लिए पिघलता है?

मुस्लिम वोटर्स (फाइल फोटो) मुस्लिम वोटर्स (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 13 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST

  • दिल्ली में मुस्लिम सियासत, इस बार किसकी तरफ होगा रुख
  • केजरीवाल सहित कांग्रेस की मुस्लिमों को रिझाने की कोशिश

दिल्ली विधानसभा चुनाव का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है. केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी अपनी सत्ता को बरकरार रखने की कवायद में है तो कांग्रेस अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने के लिए जद्दोजहद कर रही है. दिल्ली में लगभग हर आठवां मतदाता मुस्लिम है और 2020 के विधानसभा चुनावों में उनके वोट कई सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस और AAP के बीच मुस्लिम वोटों को अपने-अपने पाले में लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं. ऐसे में देखना होगा कि मुस्लिम समुदाय का दिल किसके लिए पिघलता है?

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दिल्ली में मुस्लिम बहुल सीटें

दिल्ली की सियासत में मुस्लिम मतदाता 12 फीसदी के करीब हैं. दिल्ली की कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटों को मुस्लिम बहुल माना जाता है, जिनमें बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर और किराड़ी  सीटें शामिल हैं. इन विधानसभा क्षेत्रों में 35 से 60 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं. साथ ही त्रिलोकपुरी और सीमापुरी सीट पर भी मुस्लिम मतदाता काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

दिल्ली में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न

दिल्ली की राजनीति में मुस्लिम वोटर बहुत ही सुनियोजित तरीके से वोटिंग करते रहे हैं. एक दौर में मुस्लिमों को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था. मुस्लिम समुदाय ने दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट किया था. वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय की दिल्ली में पहली पसंद AAP बनी थी.

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इसका नतीजा था कि कांग्रेस 2013 में दिल्ली में आठ सीटें जीती थीं, जिनमें से चार मुस्लिम विधायक शामिल थे. 2013 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस को पांच और AAP को एक सीट मिली थी. इसके बाद कांग्रेस का वोट आम आदमी के साथ चला गया था, जिसने दोबारा से 2019 के लोकसभा चुनाव में वापसी की है. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस दिल्ली में भले ही एक सीट न जीत पाई हो लेकिन वोट फीसदी में वह AAP को पीछे छोड़ते हुए दूसरे नंबर पर रही.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली थी लीड

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मुस्लिम बहुल इलाकों में नंबर की पार्टी बनी रही है. कांग्रेस को सर्वाधिक 4,10,107 मत मिले थे जबकि बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में 30,252 वोट कम मिले थे. बीजेपी को इन सभी सीटों पर कुल वोट 3,79,855 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी को महज 1,33,737 वोटों के साथ करारा झटका लगा था.

2015 में मुस्लिम समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ जुड़े. इसका नतीजा रहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के दिग्गजों को करारी मात देकर कब्जा जमाया था. आम आदमी पार्टी ने सभी मुस्लिम बहुल इलाके में जीत का परचम फहराया था. इसका नतीजा था कि केजरीवाल ने अपनी सरकार में एक मुस्लिम मंत्री बनाया था.

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मुस्लिम इलाकों के मुद्दे

दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में बिजली सप्लाई में सुधार, सड़क और पानी और जैसे मुद्दे अहम हैं. इसके अलावा सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दे भी इस बार के चुनाव में मुस्लिम इलाकों में प्रभावित कर रहे हैं. कांग्रेस सीएए और एनआरसी के मुद्दों को लेकर तेवर सख्त किए हुए है और कांग्रेस के तमाम नेता विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी इस पर खामोशी अख्तियार किए हुए है. केजरीवाल अपने पांच साल के विकास कार्यों को लेकर मुस्लिम समुदाय का दिल जीतना चाहते हैं. ऐसे में देखना है कि मुस्लिमों की इस चुनाव में पहली पसंद कौन सी पार्टी बनती है?

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