
दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप के दोषी विनय शर्मा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास दया याचिका लगाई है. इस मामले में दिल्ली सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भेज चुकी है. अब गृह मंत्रालय निर्भया के दरिंदों की दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजेगा. इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस पर फैसला लेंगे.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को किसी अपराधी को क्षमादान देने या उसकी सजा को कम करने या फिर सजा को बदलने की शक्ति दी गई है. इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास निर्भया के दोषियों को माफ करने, उनकी सजा कम करने या फिर सजा को बदलने की शक्ति है.
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट शर्मा ने यह भी बताया कि निर्भया गैंगरेप के दोषियों को फांसी की सजा देने के लिए बेहद जरूरी है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद निर्भया के दोषियों की दया याचिका को जल्द से जल्द खारिज कर दें. अगर राष्ट्रपति दया याचिका पर फैसला लेने में देरी करते हैं, तो निर्भया के दोषी फांसी के फंदे से बच सकते हैं. अगर राष्ट्रपति देरी करने के बाद निर्भया के दोषियों की दया याचिका को खारिज भी कर देते हैं, तो भी इसका कोई असर नहीं होगा और इन दोषियों के फांसी से बचने का रास्ता बन सकता है.
एक सवाल के जवाब में सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि अगर फांसी की सजा देने में देरी होती है, तो निर्भया के दोषियों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा. लिहाजा राष्ट्रपति के दया याचिका में फैसला लेने को मौलिक अधिकारों का हनन बताकर निर्भया के दोषी अनुच्छेद 32 के तहत फिर से सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं और अपनी फांसी की सजा रद्द करने की मांग कर सकते हैं.
दया याचिका में देरी से पहले भी फांसी से बच चुके हैं अपराधी
सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा और एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी 2014 को वी. श्रीहरन और मुरुगन बनाम भारत सरकार के मामले में फैसला सुनाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था.
राजीव गांधी के हत्यारों ने फांसी देने में देरी को अनुच्छेद 21 के तहत अपने मौलिक अधिकारों का हनन बताया था और अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी सदाशिवम, रंजन गोगोई और शिव कीर्ति सिंह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील किया था.