
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद जामा मस्जिद में दस्तारबंदी का रास्ता तो साफ हो गया, पर विवादों से इसका पीछा नहीं छूट रहा है. जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने दस्तारबंदी में देश-दुनिया के कई खास मेहमानों को बुलाया है. खास बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी को न्योता नहीं भेजा गया, जबकि पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ बुलावे के बावजूद नहीं आ रहे हैं. जामा मस्जिद का उत्तराधिकारी नहीं चुन सकते इमाम बुखारी: HC
दस्तारबंदी की रस्म शनिवार शाम करीब पांच बजे नमाज के साथ शुरू होगी. इसमें इमाम अहमद बुखारी के बेटे शाबान बुखारी को नया उत्तराधिकारी बनाया जाएगा. अहमद बुखारी के इस निजी कार्यक्रम की कानूनी मान्यता नहीं है. लेकिन इस मौके को खास बनाने के लिए अहमद बुखारी ने काफी तैयारियां की है. दिल्ली के जामा मस्जिद को आलीशान तरीके से सजाया गया है.
जहां तक न्योते की बात है, पीएम मोदी को निमंत्रण न दिए जाने की वजह से काफी विवाद भी हो चुका है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इसमें शिरकत नहीं करने जा रही हैं.
क्या है दस्तारबंदी का मामला?
भावी इमाम बनाने के कार्यक्रम को ही दस्तारबंदी कहते हैं. मौजूदा शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी अपने 19 साल के बेटे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी करना चाहते हैं. यह दस्तारबंदी दिल्ली के जामा मस्जिद में 22 नवंबर को होने जा रही है. 15 नवंबर को शाही इमाम की पदवी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. इसी याचिका में दस्तारबंदी के कार्यक्रम पर रोक लगाने की मांग की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान 19 नवंबर को केंद्र ने जामा मस्जिद को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताया. वहीं ASI ने जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर बताया.
केंद्र सरकार पहले ही इस दस्तारबंदी को गैरकानूनी बता चुकी है. यह विवाद मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के पोते की याचिका दायर करने के बाद शुरू हुआ है. उन्होंने अपनी याचिका दायर कर विरोध जताते हुए कहा है कि मक्का-मदीना में भी ये रिवाज नहीं है.