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एक महिला को पेश करने में दिल्ली पुलिस के विफल रहने की वजह से अदालत ने बलात्कार के मामले के एक आरोपी को बरी कर दिया.
अदालत ने कहा कि अगर कथित पीड़िता का पता नहीं लग रहा है तो अदालत का ‘बेशकीमती’ समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए. उस महिला ने उस व्यक्ति पर शादी के बहाने उससे बलात्कार करने का आरोप लगाया था.
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि जनता में गुस्सा है कि अदालतें बलात्कार के आरोपियों को दोषी नहीं ठहरा रही हैं, लेकिन ऐसे किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता अगर शिकायतकर्ता महिला मुकदमे के दौरान उपस्थित नहीं होती है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निवेदिता अनिल शर्मा ने कहा, 'डीसीपी, पश्चिम, मायापुरी थाने के एसएचओ और आईओ समेत पुलिस द्वारा कई बार सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए जाने के बावजूद अभियोजन पक्ष पीड़िता को पेश नहीं कर पाया, जो मुख्य गवाह है.'
उन्होंने कहा, 'अदालत का बेशकीमती समय औपचारिक या आधिकारिक गवाह का बयान दर्ज करने में बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए जब पीड़िता खुद उपलब्ध नहीं है.' अदालत ने यह भी कहा कि उसे खुद को कानून के दायरे और फाइल की सामग्री के साथ-साथ गवाहों की गवाही तक सीमित रखना है और यह भावनाओं या मीडिया में रिपोर्टिंग से प्रभावित नहीं होना चाहिए.
अदालत ने यह टिप्पणी उस मामले में की, जिसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी प्रह्लाद ने शादी के बहाने उससे बलात्कार किया और उसे धमकाया था.
इनपुट: भाषा