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मैरिटल रेप पर बहस को तैयार हाई कोर्ट, अगली सुनवाई 4 सितंबर को

दिल्ली हाई कोर्ट में कई अर्जी दाखिल कर उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ रेप को अपराध नहीं माना जाएगा. इस प्रावधान को कई NGO ने गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने की गुहार लगाई थी.

दिल्‍ली हाई कोर्ट दिल्‍ली हाई कोर्ट
पूनम शर्मा
  • नई दिल्‍ली,
  • 30 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 11:30 PM IST

 

मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को लगातार दूसरे दिन भी सुनवाई जारी रही. इस मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील कोलिन गोंजाल्विस ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि शादी का यह मतलब नहीं है कि औरतों को दास बना दिया जाए.

 

नेपाल जैसे देश में भी सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में यह साफ कर दिया था कि अगर शादी के बाद कोई व्यक्ति अपनी बीवी का बलात्कार करता है तो यह उस महिला की स्वतंत्रता का हनन है. इस मामले में याचिकाकर्ता ने कोर्ट को कई यूरोपियन देशों के सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी मेरिटल रेप पर पढ कर सुनाए जिसमें यूएस कोर्ट से लेकर नेपाल की सुप्रीम कोर्ट तक शामिल थी.

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याचिकाकर्ता के इन तर्कों के बाद कोर्ट ने टिप्पणी की कि फिलिपींस जैसे देशों मे भी वहां के सुप्रीम कोर्ट ने भी शादी के बाद जबरन सैक्स को अपराध की श्रेणी में बरकरार रखा है. दिल्ली हाई कोर्ट मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने को लेकर लगाई गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है. इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट अब 4 सितंबर को दोबारा सुनवाई करेगा. इस बीच हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप के मामले में सभी पक्षों को नोटिस भी किया है. इसमें हस्तक्षेप याचिका लगाने वाले पक्षियों से लेकर पक्षियों से लेकर सरकार और तमाम एनजीओ भी शामिल हैं.

 

दूसरी तरफ केंद्र सरकार मैरिटल रेप को अपराध घोषित किए जाने का विरोध कर रही है. दिल्ली हाई कोर्ट में कई अर्जी दाखिल कर उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ रेप को अपराध नहीं माना जाएगा. इस प्रावधान को कई NGO ने गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने की गुहार लगाई थी.

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एक दिन पहले ही केंद्र सरकार की ओर से एक हलफनामा दाखिल करके कोर्ट को बताया गया है कि धारा 498 के तहत पुरूषों का उत्पीड़न बढ़ सकता है. याचिका में एनजीओ की ओर से कहा गया है कि कई कानून हैं, जिसमें महिलाओं को प्रोटेक्शन मिला हुआ है और नए कानून की जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा है कि देश में अशिक्षा, आर्थिक रूप से महिलाओं की कमजोर स्थिति, समाज की मानसिकता और गरीबी अहम कारण हैं. 

 

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