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EXCLUSIVE: 400 करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट दबा कर बैठे हैं दिल्ली के कानून मंत्री?

दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद छह महीने में ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादों की पोल खुलती नजर आ रही है.

दिल्ली के कानून मंत्री कपिल मिश्रा (फाइल) दिल्ली के कानून मंत्री कपिल मिश्रा (फाइल)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST

दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद छह महीने में ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादों की पोल खुलती नजर आ रही है. शीला दीक्षित सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार के मामलों में जरा सी भी नरमी न बरतने वादा करने वाले केजरीवाल शायद सत्ता सुख भोगने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें वादों का ख्याल ही नहीं रहा.

भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों के केजरीवाल के वादों पर एक नया खुलासा हुआ है. कांग्रेस सरकार के दौरान वाटर टैंकर से जुड़े 400 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच के लिए केजरीवाल सरकार ने करीब एक महीने पहले कमेटी गठित की थी और उसे 10 दिन में रिपोर्ट पेश करने को कहा था. सूत्रों के मुताबिक, इस मामले में कमेटी ने निर्धारित समय के अंदर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप भी दी लेकिन यह किसी को नहीं मालूम की रिपोर्ट अब किसके पास है और सरकार ने उस पर क्या एक्शन लिया है. 

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कानून मंत्री को अभी भी है इंतजार
इस मामले में जब 'आजतक' ने दिल्ली के कानून मंत्री और दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष कपिल मिश्रा से संपर्क किया तो उनका बयान कुछ अलग ही कहानी कहता नजर आया. मिश्रा ने कहा कि वह अब भी रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने का इंतजार कर रहे हैं.

पांच बार रद्द किया गया टेंडर
सरकार ने दिल्ली जल बोर्ड के लिए स्टील वाटर टैंकर उपलब्ध कराने की योजना से जुड़े टेंडर की प्रक्रिया की जांच के लिए कमेटी बनाई थी. जो टेंडर लगातार पांच पर रद्द किया गया और आखिरकार 2012 में पास हुआ. उसी साल जल बोर्ड ने 400 वाटर टैंकर हासिल किए जिन्हें एक निजी कंपनी के ठेकेदार ने सप्लाई किए थे. लेकिन वाटर सप्लाई में कई इलाकों से शिकायतें आनी शुरू हो गईं.

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घाटे के साथ पास किया गया था टेंडर
सूत्रों के मुताबिक, 'जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जल बोर्ड के अधिकारियों और कुछ चुने हुए सदस्यों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के अलावा जल बोर्ड के सदस्यों में मतीन अहमद, जल बोर्ड के सीईओ, वित्त सदस्य, प्रोजेक्ट इंजीनियर, एनआईएसजी (हैदराबाद) का भी नाम सामने आया है.' रिपोर्ट के मुताबिक, पांच बार रद्द किए जाने के बाद 360.55 करोड़ के नुकसान पर टेंडर पास किया गया. जबकि बेहतर प्लानिंग के जरिए सरकार को नुकसान से बचाया जा सकता था.

आखिर क्या है मजबूरी?
आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल ने सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि वह इस घोटाले का पर्दाफाश करेंगे. मार्च महीने में दिल्ली जलबोर्ड ने कई अधिकारियों के रिश्वत लेने के आरोप में सस्पेंड कर दिया, जबकि तीन अधिकारियों के गलत बिल भेजने के आरोप में सस्पेंड किया गया. अब सवाल ये है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जिसके चलते दिल्ली के कानून मंत्री 400 करोड़ के इस घोटाले में एक्शन लेने से कतरा रहे हैं.

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