
दिल्ली में खतरनाक स्तर के प्रदूषण का सितम थमने का नाम नहीं ले रहा है. दिल्ली सरकार ऑड-इवन को लेकर पूरा ज़ोर लगा चुकी है, लेकिन एनजीटी ने उसे योजना के मुताबिक लागू करने की मंजूरी नहीं दी. इस पूरी कवायद में लगा जैसे सरकार का पूरा फोकस ऑड इवन पर ही रहा और ये लागू नहीं हुआ तो मानो दिल्ली से प्रदूषण कभी खत्म होगा ही नहीं. ऐसे में जानने की कोशिश की गई कि अगर दिल्ली में ऑड इवन लागू होता, तो इसका प्रदूषण पर क्या असर पड़ता.
दिल्ली में द एनवायरमेंट रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानी टेरी ने पिछले दो ऑड इवन के दौरान दिल्ली की हवा को परखा था और जानने की कोशिश की थी कि ऑड ईवन के दौरान दिल्ली की प्रदूषित हवा की गुणवत्ता में कितना सुधार हुआ था. साथ ही जो तत्व प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, उन पर ऑड इवन के दिनों क्या फर्क आया था.
टेरी के सीनियर साइंटिस्ट सुमित शर्मा बताते हैं कि ऑड इवन के ज़रिये दिल्ली की हवा का प्रदूषण महज़ चार से सात फीसदी तक कम हुआ. ये आंकड़ा चौकाने वाला इसलिए भी है क्योंकि दिल्ली सरकार पिछले पूरे एक हफ्ते से इसी एक प्लान को लेकर माथापच्ची करने में जुटी रही. इस दौरान ये बात लगातार सरकारी सूत्रों की तरफ से आती रही कि अगर ऑड इवन लागू नहीं हुआ, तो दिल्ली के खतरे को कम नहीं किया जा सकता.
टेरी की रिसर्च में जो खुलासा हुआ है, वो हैरान करने वाला तो नहीं लेकिन इस लिहाज़ से चौंका रहा है कि सरकार उन वजहों पर ध्यान देने के लिए तैयार क्यों नहीं है, जो प्रदूषण में सीधा-सीधा योगदान दे रही हैं. सुमित शर्मा बताते हैं कि ये बात सिर्फ टेरी ही नहीं बल्कि दूसरी तमाम रिसर्च में साफ हो चुकी है कि दिल्ली में जो प्रदूषण होता है, उसमें कई फेक्टर काम करते हैं. मसलन, दिल्ली के प्रदूषण में खुद दिल्ली का योगदान चालीस फीसदी का है, इसके अलावा 20 फीसदी प्रदूषण आसपास के एनसीआर शहरों जैसे नोएडा, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद, बहादुरगढ़ का होता है, जहां से इंडस्ट्रियल गैसें निकलती हैं.
दिल्ली में करीब चालीस फीसदी प्रदूषण दूर दराज़ के राज्यों से खासकर उत्तर की तरफ स्थित राज्यों से आता है, जहां बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है. अब दिल्ली का प्रदूषण में जो अपना चालीस फीसदी हिस्सा है, उसका पोस्टमार्टम करें, तो इसमें से एक चौथाई प्रदूषण के लिए दिल्ली में मौजूद वाहन ज़िम्मेदार हैं. इसमें पुराने वाहन भी शामिल हैं, इस एक चौथाई प्रदूषण में एक ब़ड़ा हिस्सा दो पहिया वाहनों से भी आता है. ज़ाहिर प्रदूषण पर सियासत खूब हुई, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जो राजनीतिक दलों की सियासत को हवा देने वाले हैं. इसीलिए दिल्ली की हवा को ज़हरीली बनाने वाले असल गुनहगारों या कारणों पर बहस कहीं पीछे छूट गई है.