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दिल्ली: सीलिंग को लेकर राजनीति, जिम्मेदार कौन MCD या AAP सरकार?

दिल्ली के जिन 7 लाख व्यापारियों-कारोबारियों की गर्दन पर जो सीलिंग नाम की तलवार लटकी हुई है, उसके ज़िम्मेदार एमसीडी, केंद्र और दिल्ली सरकार तीनों ही हैं. दिल्ली सरकार सिर्फ इन दोनों को दोषी ठहराकर पल्ला नहीं झाड़ सकती.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
अंकुर कुमार/रोहित मिश्रा
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  • 27 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 9:11 PM IST

सीलिंग को लेकर दिल्ली में कई दिनों से कारोबारी परेशान है. ऐसे में उनके विरोध में पिछले एक हफ्तों में से आम आदमी पार्टी वाली दिल्ली सरकार ने साथ देने की कोशिश की है. कारोबारियों के दिल्ली बंद के दौरान भी मंत्रियों से लेकर सैकड़ों कार्यकर्ता ये दिखाने में जुटे रहें कि दिल्ली के कारोबारियों के असली हमदर्द वही हैं. हालांकि क्या आम आदमी पार्टी का कारोबारियों के साथ ये हमदर्दी वाला कंधा किसी काम का भी है या फिर ये सिर्फ एक सियासी कंधा है? जिसका इस्तेमाल सियासी फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है.

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दिल्ली के जिन 7 लाख व्यापारियों-कारोबारियों की गर्दन पर जो सीलिंग नाम की तलवार लटकी हुई है, उसके ज़िम्मेदार एमसीडी, केंद्र और दिल्ली सरकार तीनों ही हैं. दिल्ली सरकार सिर्फ इन दोनों को दोषी ठहराकर पल्ला नहीं झाड़ सकती. दिल्ली में 351 सड़कें ऐसी हैं, जहां सीलिंग हो रही है और इन सड़कों को दिल्ली सरकार को नोटिफाई करना है. दिल्ली सरकार ने अभी तक वो प्रस्ताव ही नहीं बनाया है जिसे केंद्र सरकार के पास भेजा जा सके. हां आम आदमी पार्टी कारोबारियों के कंधे पर बंदूक रखकर विरोधियों पर निशाना खूब साध रही है.

सीलिंग पर आगे क्या हो सकता है

केंद्र सरकार चाहे तो अध्यादेश ला सकती है. सुप्रीम कोर्ट से इसी अध्यादेश के ज़रिए समय मांग सकती है. जानकारों की मानें तो ये केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं है. अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है तो सुप्रीम कोर्ट ना सिर्फ इसे मना कर सकता है, बल्कि ये भी पूछा जासकता है कि जब मास्टर प्लान 2021 बनाया गया तो इसे बाहर क्यों रखा गया था. अब क्यों छुट देने की बात की जा रही है.

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वहीं एमसीडी ही सुप्रीम कोर्ट की बनाई मॉनिटरिंग कमेटी के साथ सीलिंग ड्राइव चला रही है, लिहाजा यहां ये भी जानना जरूरी है कि एमसीडी के पास क्या क्या ऑप्शन हैं. वो इलाके हैं जिनका निर्माण 1961 से पहले हुआ था और ये स्पेशल एरिया में आते हैं. मास्टर प्लान ये कहता है कि ऐसे इलाकों में जब तक रीडेवलेपमेंट नहीं होता, सीलिंग नहीं हो सकती. हालांकि एमसीडी ने वक्त पर अपना काम नहीं किया और अब सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी के साथ मिलकर स्पेशल एरिया में भी सीलिंग नाम का हथौड़ा चला रही है. मास्टर प्लान 2021 का चैप्टर 15 ये कहता है कि अगर बेसमेंट में होने वाली प्रोफेशनल एक्टीविटी पर कंवर्जन चार्ज दिया गया है तो फिर वहां सीलिंग नहीं हो सकती. इस दायरे में सीए, डॉक्टर और वकील जैसे प्रोफेशनल आते हैं, लेकिन एमसीडी ने पहले तो बेसमेंट में तरह तरह के कारोबार को जमने दिया. अब कंवर्जन चार्ज देने के बावजूद वहां भी सीलिंग के काम को अंजाम दे रही है. असल में दिल्ली इसी सीलिंग की मार को करीब 13 साल पहले भी झेल चुकी है. 2005 में भी दिल्ली में सीलिंग ने कारोबारियों को दहला दिया था. यहां दिल्ली के 7 लाख कारोबारियों को ये बताना भी जरूरी है कि एक दशक पहले आखिर कैसे सीलिंग से उन्हें निजात मिली थी....

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आपको बताते हैं कब, क्या क्या हुआ है

-12 मई 2006 में स्पेशल प्रोविशन बिल लाया गया

-7 दिनों में बिल पास हुआ, कानून बना

-13 मई तजिंदर खन्ना कमिटी की रिपोर्ट आई, जिसमें FAR बढ़ने की सिफारिश की गई.

-मास्टर प्लान को साल 2006 में दो बार अमेंड किया गया.

-मिक्स्ड लैंड यूज़ के हिसाब से 2021 मास्टर प्लान में शामिल हुआ

-मार्च 2007 में मास्टर प्लान 2021 को नोटिफाइड किया गया

अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस मास्टर प्लान के तहत दिल्ली में सीलिंग हो रही है, अगर उसमें एक दशक पहले बदलाव किया जा सकता था तो फिर आज की सरकारें कारोबारियों के कारोबार को सीलिंग की भेंट क्यों चढ़ने दे रही हैं?

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