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तिहाड़ जेलः बंदियों के हुनर को रोजगार में बदला, अब ऐसे हो रही है कमाई

Tihar Jail Skill development Education जेल महानिदेशक अजय कश्यप ने जब से तिहाड़ जेल की कमान संभाली, तभी से उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा बंदियों के हुनर को रोजगार में बदलना रहा. उनकी कोशिशों के चलते ही तिहाड़ जेल में आज 64 तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.

काम करने वाले बंदियों की कमाई सीधे उनके खाते में जाती है (फोटो साभार- तिहाड़ जेल प्रशासन) काम करने वाले बंदियों की कमाई सीधे उनके खाते में जाती है (फोटो साभार- तिहाड़ जेल प्रशासन)
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 17 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 8:42 PM IST

एशिया की सबसे बड़ी जेल यानी तिहाड़ में बंद कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने और उनके हुनर को रोजगार में बदलने के मकसद से विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है. जिसके तहत कैदियों को अलग-अलग तरह के कई काम सिखाए जा रहे हैं. यही नहीं तिहाड़ में फैशन लैब, फैब्रिक, वुड कार्विंग, आर्ट गैलरी, बेकरी, जूट से बने उत्पाद का कार्य बड़े स्तर पर किया जा रहा है. साथ ही उन्हें शिक्षित भी किया जा रहा है.

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हुनर से रोजगार

जेल महानिदेशक अजय कश्यप ने जब से तिहाड़ जेल की कमान संभाली, तभी से उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा बंदियों के हुनर को रोजगार में बदलना रहा. उनकी कोशिशों के चलते ही तिहाड़ जेल में आज इस तरह के 64 प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनसे बंदियों को उनका हुनर निखारने का मौका मिला है. साथ ही उन्हें रोजगार भी मिल रहा है. जेल प्रशासन ने बैंक में वहां काम करने वाले कैदियों के खाते खुलवाए हैं. जहां हर माह उनके काम का पैसा पहुंच जाता है.

रोजगार से कमाई

डीजी अजय कश्यप बताते हैं कि कैदियों को उनके हुनर के बदले काम मिल रहा है और काम के बदले पैसा. जेल में संचालित सभी कार्यों से होने वाली आय का आधा हिस्सा बंदी कल्याण कोष और आधा हिस्सा बंदी के खाते में जाता है. तिहाड़ जेल पूरी तरह से कैशलैस है. इसी वजह से बंदियों की मजदूरी या काम पैसा सीधे उनके खाते में जमा हो जाता है. जिसे उनका परिवार या आश्रित इस्तेमाल करते हैं.

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जेल में उद्योगशाला

तिहाड़ जेल में बाकायदा कई फैक्ट्रियां संचालित की जा रही हैं. उनकी देखरेख के लिए एक जेल उपाधीक्षक की विशेष नियुक्ति की गई है. तिहाड़ की जेल संख्या 2 में बेकरी, वुड कार्विंग, फर्नीचर, तेल उत्पादन, पॉवरलूम, हैंडलूम, टेलरिंग और मसालों का उत्पादन करने वाली यूनिट हैं. जबकि जेल नंबर 4 में तिहाड़ आर्ट स्कूल और जूट बैग फैक्ट्री चलाई जा रही है. इसी प्रकार जेल संख्या 5 में टॉयलेटरी उत्पाद, धूप एवं अगरबत्ती, हर्बल कलर और शू अपर बनाए जा रहे हैं. महिला जेल यानी जेल संख्या 6 में भी कई काम किए जाते हैं. जिनमें आचार, बेकरी, सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर, आर्टिफीशियल फलॉवर, मोमबत्ती उत्पादन और मिट्टी से बनाए जाने वाले उत्पाद शामिल हैं. जेल संख्या 7 में परफ्यूम फैक्ट्री है. जेल संख्या 8 और 9 में कंबल और एलईडी बनाने की यूनिट हैं. जेल संख्या 10 मसालों का उत्पादन कर रही है तो जेल नंबर 14 में बेकरी, सिलाई कढ़ाई, शो अपर और एलईडी बल्ब बनाने का काम किया जा रहा है.

डीजी अजय कश्यप के मुताबिक जेल नंबर 2 में तिहाड़ आर्ट स्कूल स्थापित किया गया है. जहां बंदियों को अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है. उनकी काष्ठ कला और चित्र कला देखकर हर कोई हैरान रह जाता है. उनकी बनाई हुई कई पेंटिंग्स कला प्रदर्शनियों में वाह वाही लूट चुकी हैं. कई पेंटिंग्स को ऊंचे दामों पर बेचा गया है. जेल प्रशासन के निमंत्रण पर बंदियों की कला देखने के लिए कई गणमान्य नागरिक और अतिथि समय समय पर आयोजित कार्यक्रमों में आते रहे हैं.

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शिक्षा से विकास

तिहाड़ में केवल हुनर और रोजगार ही नहीं बल्कि शिक्षा कार्यक्रम भी प्राथमिकता पर संचालित किया जा रहा है. डीजी अजय कश्यप के मुताबिक कई कैदियों को जेल में साक्षर बनाने का काम किया गया है. जो लोग प्राथमिक शिक्षा के बाद स्कूल नहीं जा पाए या फिर अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सके, उन्हें आगे की कक्षाओं की पढ़ाई पूरी करने का अवसर भी दिया जा रहा है.

इसके लिए तिहाड़ जेल परिसर में नेशनल ओपन स्कूल संगठन की सहायता से दो शिक्षा केंद्र संचालित किए जा रहे हैं. जहां हर आयु के बंदियों को पढ़ाया जाता है. अजय कश्यप बताते हैं कि शिक्षा पर फोकस करने का लाभ मिला है. नतीजा ये है कि जेल साक्षरता दर बहुत अच्छी हो गई है.

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