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दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी एक छात्रा पिछले एक साल से गोल्ड मेडल के हक की लड़ाई लड़ रही है. उसकी परेशानी ये है कि एग्जाम में अव्वल आने के बावजूद उसे मेडल नहीं दिया गया. बल्कि उसका हक छीनकर ये मेडल चौथा रैंक हासिल करने वाली छात्रा को दे दिया गया. जिसके बाद उसने कई बार सीनियर अथॉरिटीज को लिखित एप्लिकेशन भी दी पर कोई सुनवाई नहीं हुई .
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अंग्रेजी अखबार DNA के मुताबिक प्रातिचि मजूमदार ने 2014 में डीयू से सोशियोलॉजी में एमए किया था. उसने 1600 में से 999 अंक हासिल किए. यूनिवर्सिटी में उस साल के बैच में सबसे अधिक. नियम के मुताबिक उसे 'कुंडा दातर गोल्ड मेडल' मिलना चाहिए था, पर उसकी जगह डीयू ने ये मेडल किसी और को दे दिया. जिसे मेडल दिया गया उसका नाम है सोफिया जेहरा. सोफिया को 977 नंबर मिले थे और उसका रैंक चौथा था. ये मेडल सोफिया को 2015 में हुए कन्वोकेशन सेरेमनी में दिया गया. रिजल्ट घोषित होने के एक साल बाद.
इसके बाद मजूमदार ने वाइस चांसलर, डीन ऑफ एग्जामिनेशन और हेड ऑफ सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट को कई खत लिखे. अब आखिरकार उसने यूनिवर्सिटी अथॉरिटीज को लीगल नोटिस भेजा है.
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इस बारे में जब डीन ऑफ एग्जामिनेशंस विनय गुप्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'ये मेरिट लिस्ट तब तैयार की गई थी जब सभी सोशियोलॉजी छात्रों का रिजल्ट डिक्लेयर नहीं किया गया था. कुछ छात्रों का रिजल्ट कुछ समय बाद आया इसीलिए मजूमदार के रिजल्ट को हम अपनी लिस्ट में अपडेट नहीं कर सके.'
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अब यूनिवर्सिटी एक कमेटी गठित करने का विचार कर रही है जिससे इस मामले को पूरी गंभीरता से लिया जा सके. हालांकि मजूमदार अब केवल अपने मेडल की ही मांग कर रही हैं. वे कहती हैं, 'मैंने इस मेडल के लिए काफी मेहनत की थी. मुझे मेरा हक चाहिए. सर्टिफिकेट और मेडल से कम मुझे कुछ भी स्वीकार्य नहीं है.'
बता दें कि मजूमदार फिलहाल JNU से पीएचडी कर रही हैं.