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दिल्ली हिंसाः वकीलों के पैनल पर केजरीवाल कैबिनेट ने खारिज किए एलजी के सुझाव

केजरीवाल कैबिनेट ने हिंसा से जुड़े मामलों की कोर्ट में पैरवी करने के लिए वकीलों के उसी पैनल पर मुहर लगाई है, जिसे उपराज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी थी.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल (फाइल फोटो) दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल (फाइल फोटो)
पंकज जैन
  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 8:56 AM IST

  • केजरीवाल कैबिनेट ने खारिज किए उपराज्यपाल के सुझाव
  • कैबिनेट ने एलजी के बार-बार हस्तक्षेप को बताया दुर्भाग्यपूर्ण

दिल्ली में हुई हिंसा के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में वकीलों का पैनल नियुक्त किया जाना है. इस मुद्दे पर एक बार फिर दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल आमने-सामने नजर आ रहे हैं. केजरीवाल कैबिनेट ने उपराज्यपाल के सुझाव को खारिज करते हुए दिल्ली पुलिस की ओर से बनाए गए वकीलों के पैनल को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है.

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केजरीवाल कैबिनेट ने हिंसा से जुड़े मामलों की कोर्ट में पैरवी करने के लिए वकीलों के उसी पैनल पर मुहर लगाई है, जिसे उपराज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी थी. उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर इसे कैबिनेट में रखने के लिए कहा था. मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में दिल्ली पुलिस की ओर से बनाए गए वकीलों के पैनल को खारिज कर दिया गया. दिल्ली कैबिनेट ने कहा कि दिल्ली हिंसा के संबंध में पुलिस की जांच को कोर्ट ने निष्पक्ष नहीं माना है. ऐसे में दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी देने से केस की निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है.

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केजरीवाल कैबिनेट ने उपराज्यपाल की इस बात से सहमति जताई कि यह केस बेहद महत्वपूर्ण है. इस कारण दिल्ली सरकार ने गृह विभाग को निर्देश दिया है कि इसके लिए अच्छे वकीलों का पैनल बनाया जाए. साथ ही यह भी कहा गया है कि पैनल निष्पक्ष भी होना चाहिए. केजरीवाल कैबिनेट की बैठक में इस बात पर भी एक राय रही कि दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के लिए जो भी दोषी हैं, उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए. साथ ही यह भी तय हुआ कि निर्दोष को परेशान या दंडित नहीं किया जाना चाहिए.

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कैबिनेट ने यह भी कहा कि वकील तय करने की अनुमति जांच एजेंसी को नहीं दी जा सकती. वकीलों के पैनल का फैसला करने के मामले में उपराज्यपाल का बार-बार हस्तक्षेप करना दुर्भाग्यपूर्ण है. जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने 04.07.2018 के अपने आदेश में स्पष्ट उल्लेख किया है कि उपराज्यपाल अपने अधिकार का इस्तेमाल सिर्फ दुर्लभ मामलों में कर सकते हैं. उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की तरफ से गठित पैनल पर असहमति जताते हुए, कैबिनेट में निर्णय लेने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया था.

एलजी ने मुख्यमंत्री को लिखा था पत्र

बता दें कि दिल्ली पुलिस ने तुषार मेहता और अमन लेखी सहित छह वरिष्ठ वकीलों को नॉर्थ ईस्ट दंगों और एंटी सीएए प्रोटेस्ट से जुड़े 85 मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल वकील नियुक्त किए जाने का प्रस्ताव दिल्ली सरकार को भेजा था. दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस का यह प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा और उनकी टीम इन मामलों में इंसाफ दिलाने के लिए सक्षम है.

इसके बाद उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली के गृह मंत्री की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर असहमति जताई और अपने स्पेशल पावर का इस्तेमाल करते हुए इस फाइल को समन किया. इसी फाइल के आधार पर दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन और उप राज्यपाल की बैठक हुई. इस बैठक में भी कोई निर्णय नहीं हो सका था. इसके बाद उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि दिल्ली सरकार की कैबिनेट बैठक कर इस मामले में निर्णय करे.

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क्या हैं सुझाव अस्वीकार करने के पीछे वजह?

दिल्ली कैबिनेट ने दिल्ली पुलिस के वकील पैनल को मंजूरी देने के उपराज्यपाल के सुझाव को अस्वीकार कर दिया. इसके पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि दिल्ली पुलिस की जांच पर न्यायालय की ओर से पिछले दिनों उंगली उठाई गई थी. दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीश सुरेश कुमार ने दिल्ली हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस पर टिप्पणी की थी, "दिल्ली पुलिस न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल कर रही है."

सेशन कोर्ट ने भी दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए थे. इसके अलावा कुछ मीडिया रिपोर्ट में भी दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए गए थे. इस स्थिति में दिल्ली पुलिस के वकीलों के पैनल को मंजूरी देने से दिल्ली हिंसा की जांच को लेकर सवाल उठते.

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