
दिल्ली के शेरपुर चौक पर भड़की हिंसा में मुन्ना मियां की कपड़े की दुकान जलकर खाक हो चुकी है. वह सुरक्षा कारणों की वजह से दुकान को देखने भी नहीं आए, लेकिन इसकी आशंका है कि उनका काफी नुकसान हुआ है. उन्होंने दुकान के लिए लाखों रुपये का लोन लिया था, लेकिन अब सब कुछ खत्म हो चुका है.
खजूरी खास में मुन्ना मियां की बेटी साहना ने रोते हुए बताया, 'मेरे वालिद बहुत ही अच्छे आदमी हैं. फिर भी आगजनी करने वालों ने उनकी दुकान को जला दिया. मैंने दो महीने पहले अपनी मां को खो दिया था, परिवार पहले से ही दु: ख में था. अब मेरे पिता की आजीविका भी छीन ली गई है. हम कैसे जीएंगे? मेरे पिता को क्यों निशाना बनाया गया?'
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मुन्ना मियां की तरह ही दो दिनों तक चली हिंसा में सैकड़ों परिवारों को इस तरह के दुखों का सामना करना पड़ा है. खजूरी खास की सड़कों पर भीड़ अराजक हो चुकी थी. अपनी बालकनी में खड़ी में 14 की एक लड़की की बांह में गोली लगी है.
मोहम्मद अफजल बताते हैं, 'मैं नमाज के बाद घर लौटा तो देखा कि बेटी बॉलकनी में लहूलूहान पड़ी है. उसकी बांह में गोली लगी थी. हमने एम्बुलेंस बुलाया लेकिन वह नहीं पहुंची. घंटों बाद हम स्कूटर से किसी तरह अस्पताल पहुंचे. बेटी का अभी इलाज चल रहा है.'
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भजनपुरा में सड़क पार, दंगाइयों ने मोहन नर्सिंग होम को भी नहीं बख्शा, जहां मरीजों का इलाज किया जा रहा था. डॉक्टर की मेज और मरीजों के लिए बने बेड पर टूटे हुए कांच और बिखरे पड़े पत्थर 24 फरवरी की डरावनी तस्वीर पेश करते हैं.
एक चश्मदीद ने बताया, 'मरीजों को पीछे के रास्ते से बाहर निकाला गया. हमने पूरी तबाही देखी, उन्होंने सभी खिड़कियों के शीशे तोड़ दिए. चांदबाग की तरफ से पथराव हो रहे थे.'
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
भय के इस माहौल में दोस्ती और भाईचारे की मिसाल भी देखने को मिली. दो दिनों के बाद गुरुवार दोपहर को सोनू गोयल ने अपनी दुकान खोली. मुस्लिम बहुल इलाके में वह उन कुछ हिंदू परिवारों में से एक हैं जिनका परिवार हिंसा की चपेट में आने से बचा रहा.
शमीम खान ने बताया, 'सोनू मेरे भाई की तरह है. हम उसके बचाव में खड़े रहे. हमने अपने इलाके में यह सुनिश्चित किया कि किसी भी व्यक्ति को नुकसान न पहुंचने पाए. हम लोगों से शांति की अपील करते रहे.' सिख समुदाय के लोग हिंसा प्रभावित इलाके में खाने के पैकेट बांटते हुए दिखे क्योंकि दो दिनों से जारी हिंसा की वजह से सभी दुकानें बंद रही हैं.
ब्रह्मपुरी के हालात
ब्रह्मपुरी के रहने वाले इकबाल अहमद दंगों में अपने इकलौते बेटे अमन को खो चुके हैं. अपने बेटे के अंतिम संस्कार की तैयारी में जुटे अहमद ने इंडिया टुडे को बताया, "अमन केवल 15 साल का था. उसे गोली मार दी गई थी, जब वह 25 फरवरी को जाफराबाद में अपने ट्यूशन क्लास से वापस आ रहा था. उसे बचाया जा सकता था, लेकिन 2 घंटे तक हमें कोई मेडिकल हेल्प या एम्बुलेंस नहीं मिली. ”
हिंसा में न केवल जान गई है, बल्कि छात्रों का भविष्य़ भी अधर में लटक गया है. इंडिया टुडे ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बृज पुरी में अरुण मॉडर्न पब्लिक स्कूल का दौरा किया, जो सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. प्रिंसिपल ज्योति रानी ने इंडिया टुडे को बताया, "सभी समुदायों के बच्चे यहां पढ़ने के लिए आते हैं. दंगाइयों ने शिक्षा के मंदिर को भी नहीं छोड़ा. बच्चों ने 24 फरवरी को परीक्षा दिया था लेकिन अब सब कुछ खाक हो चुका है. किताबों से लेकर कंप्यूटर तक हमारे पास अब कुछ नहीं बचा है.