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नोटबंदी ने किया नक्सलियों को प्रभावित, अब इन पर नकेल कसने की तैयारी में सरकार

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के करोड़ों रूपये के नोट जंगल के भीतर दबे की दबे रह गए. नक्सलियों ने भरपूर कोशिश की कि ये रकम जनधन और बचत खातों में जमा हो जाए. कहीं बन्दूक की नोक पर तो कहीं जन सभा लेकर, नक्सलियों ने ग्रामीणों को खूब बरगलाया लेकिन लोगों ने उनकी बातों को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया.

नक्सली नक्सली
सबा नाज़/सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 31 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 5:03 AM IST

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के करोड़ों रूपये के नोट जंगल के भीतर दबे की दबे रह गए. नक्सलियों ने भरपूर कोशिश की कि ये रकम जनधन और बचत खातों में जमा हो जाए. कहीं बन्दूक की नोक पर तो कहीं जन सभा लेकर, नक्सलियों ने ग्रामीणों को खूब बरगलाया लेकिन लोगों ने उनकी बातों को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया. हालांकि कई ग्रामीणों और व्यापारियों ने नक्सलियों के दबाव में आ कर कुछ रकम बैंको में जमा भी की लेकिन इस कोशिश में कई पुलिस की गिरफ्त में भी आये. पुलिस का दावा है कि नक्सलियों का करीब साढ़े बाराह सौ करोड़ मिट्टी में मिल गया. छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय को भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट में इस रकम का हवाला दिया गया है. पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में नक्सली दल में भगदड़ की स्थिति बनेगी.

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नोटबंदी का दौर खत्म होते ही छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में बैंको के कर्मचारियों और पुलिस ने राहत की सांस ली है. नोटबंदी के चलते नक्सलियों के 500 और 1000 के नोटों की एक बड़ी खेप जंगलों से निकल ही नहीं पाई. पुलिस का दावा है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का लगभग साढ़े बारह सौ करोड़ रूपया मिट्टी में मिल गया. नक्सलियों ने इस रकम को निकालने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाए. पुलिस के मुताबिक उनकी फ़ोर्स के साथ CRPF , ITBP , BSF और DRG के जवानों के बेहतर तालमेल से नक्सलवाद की कमर टूट गयी है. नक्सलियों की भारीभरकम रकम जंगलो के भीतर छिपी की छिपी रह गई. पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों ने दुर्गम जंगलो के भीतर दाखिल हो कर नक्सलियों के दांत खट्टे कर दिए. नियमित गश्त और सर्च ऑपरेशन के चलते नक्सलियों को उनकी जमा रकम निकालने का मौका ही नहीं मिल पाया. नोटबंदी के आखरी दिन पुलिस ने बैंको के अफसरों से फीडबैक लिया और उनकी इस बात के लिए पीठ थपथपाई की वो नक्सलियों के दबाव में नहीं आए.

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दुर्ग रेंज आईजी दीपांशु काबरा के मुताबिक माओवादियों पर नोटबंदी का बड़ा प्रभाव हुआ. एक तो वो अपने डम्प निकाल नहीं पाए. बहुत कम पैसों को ही वो गांववालों के माध्यम से जन धन खातों में जमा करवा पाए. ऐसे खातों को फ्रीज कराया जा चुका है और कई ग्रामीणों को संदेश भेजकर इसके परिणाम की जानकारी दी गई जिसके चलते काफी लोगों ने उनके पैसे जमा करने से मना भी कर दिया. ऐसे में ये तो साफ है कि नक्सलियों को जल्द ही आर्थिक तंगी से जूझना पड़ सकता है.

छत्तीसगढ़ से सटे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश की सरहद पर वाहनों की नियमित चेकिंग और कॉम्बिंग गश्त के चलते नोटबंदी के 8 नवम्बर से 30 दिसंबर के बीच करीब दो दर्जन लोगों से पुलिस ने ढाई करोड़ की रकम बरामद की है. इसमें सबसे ज्यादा रकम बस्तर से लगभग सवा करोड़ बरामद किये गए. जबकि राजनांदगांव, दुर्ग डिवीजन और अंबिकापुर डिवीजन से इसी अवधि में एक करोड़ दस लाख रूपये बरामद हुए. पुलिस के मुताबिक जिन लोगों से भी यह रकम बरामद की गयी है वो न तो उन्हें और ना ही आयकर विभाग को आय के स्रोत की जानकारी दे पाए. नोटबंदी का दौर खत्म होने के बाद पुलिस ने अब ऐसे लोगों को दुबारा पूछताछ के लिए बुलाया है. यही नहीं बस्तर, कांकेर, दंतेवाड़ा, सुकमा, कोंडागांव, राजनांदगांव, बालोद और नारायणपुर में जनधन के खातों की जांच के लिए पुलिस ने दो दर्जन टीम गठित की है. अभी तक आयकर विभाग ही इन खातों को खंगालने में जुटा था. पुलिस को अंदेशा है कि उसकी आंखों में धूल झोंकने के लिए नक्सलियों ने आम ग्रामीणों के अलावा कुछ सफेद पोशों को भी अपनी रकम बदलवाने की जिम्मेदारी सौपी थी. इसके लिए उन्हें बड़ा कमीशन भी दिया गया.

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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में नोटबंदी का दौर खत्म होते ही पुलिस ने उन लोगों पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है, जो नक्सलियों की मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाते हैं. पुलिस ने मानव अधिकारों की वकालत करने वालों के अलावा उन व्यापारियों का काला चिट्ठा इकठ्ठा करना शुरू कर दिया है जो आर्थिक रूप से नक्सलवाद की जड़े मजबूत करने में जुटे हुए थे. पुलिस ने ग्रामीणों को भरोसा दिलाया है कि नोटबंदी की मार से अब नक्सलवाद भी ज्यादा दिनों तक अपने पैर पसार नहीं पाएगा.

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