
नोटबंदी पर बीते एक साल से जारी बहस में एक भ्रम हावी है कि इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था में मौजूद ब्लैकमनी पर पड़ेगा. इसके चलते अर्थव्यवस्था से कालेधन को निकालकर बाहर फेंकने, समानांतर अर्थव्यवस्था को कुचलने और मनीलॉन्डरिंग के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं. एक साल से इन दावों को आधार बनाकर अगर केन्द्र सरकार अपने फैसले को जायज ठहराने की कवायद कर रही है तो उसके उलट विपक्ष के विरोधी सुर के साथ-साथ एक साल से आ रहे आर्थिक आंकड़े इन दावों को झुठलाने का काम कर रहे हैं.
क्या कह रही है सरकार?
नोटबंदी का 8 नवंबर 2016 को ऐलान करने के बाद नवंबर महीने में ही लगभग 5 अलग-अलग मौकों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का मकसद गिनाते हुए अपनी बात कही है. 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार देश से भ्रष्टाचार और कालेधन को जड़ से खत्म करने के लिए 500 और 1000 रुपये की करेंसी को बंद कर रही है. सरकार की दलील थी कि इस करेंसी का एंटी-नैशनल और एंटी सोशल तत्व इस्तेमाल करने लगे थे.
नोटबंदी पर अपने पहले बयान के एक हफ्ते बाद 13 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने फिर नोटबंदी पर कहा- मुझे कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए चुना गया और मैं वही कर रहा हूं. एक हफ्ता और नहीं बीता कि प्रधानमंत्री ने 22 नवंबर, 2016 को कहा कि नोटबंदी भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ अंतिम नहीं पहली लड़ाई है. फिर 25 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने गरीब और मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा करने के लिए नोटबंदी का फैसला लिया. पीएम मोदी के मुताबिक लोग स्कूल, अस्पताल और जमीन खरीदते वक्त घूस देने पर मजबूर थे और उनके इस फैसले के बाद गरीब आदमी के सामने यह विवशता नहीं रहेगी क्योंकि कोई भी उनसे घूस लेने के लिए तैयार नहीं होगा. फिर इसी महीने के अंत में 27 नवंबर को प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले कालाधन जमा कर रखने वाले लोग नोटबंदी के बाद उसे व्यवस्था में वापस लाने के लिए गरीब आदमी का इस्तेमाल कर रहे हैं.
क्या कह रहा अर्थव्यवस्था का सिद्धांत?
नोटबंदी ने देश की तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था की टांग में गोली मार दी. जाने माने अर्थशास्त्री और यूपीए कार्यकाल में नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य रहे ज़्यां द्रेज़ ने नोटबंदी की तुलना करते हुए कहा था कि यह काम ठीक उसी तरह है जैसे एक तेज रफ्तार से भागती रेसिंग कार के पहिए पर किसी ने गोली मार दी हो. ज़्यां द्रेज़ ने दावा किया था कि सरकार का यह फैसला सिर्फ विरोधी राजनीतिक दलों के पास मौजूद कालेधन को खत्म करने के लिए लिया गया है.
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ज़्यां द्रेज़ ने दलील दी कि कालाधन रखने वाला धूर्त व्यक्ति अपनी काली कमाई के कैश को सूटकेस में भरकर रखने से बेहतर तरीके जानता है. वह अपनी काली कमाई को खर्च करता है, निवेश करता है और कैश को किसी अन्य रूप में बदल लेता है. वह संपत्ति खरीद लेता है, महंगी शादियों पर उड़ा देता है, दुबई में शॉपिंग करता है या नेताओं को खुश करने के लिए खर्च कर देता है. हालांकि यह भी सत्य है कि किसी दिए समय में कुछ कालाधन उसके पास रसोई के डिब्बे या तकिया की खोल में भी पड़ा हो. लेकिन इस बचे-खुचे कालेधन को बाहर निकालने की कवायद कुछ उसी तरह है कि आप कमरे में शावर चलाकर पोछा लगाएं. लिहाजा इस कदम को कालेधन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की संज्ञा देना महज एक भ्रम है.
वहीं ज़्यां द्रेज़ ने कहा था कि कालेधन का संचय करने का काम संभवत: राजनीतिक दल करते हैं. उनके लिए यह तार्किक है कि बड़ी मात्रा में कैश एकत्रित करें जिससे चुनाव प्रचार के काम को सहज किया जा सके. लिहाजा, विपक्षी दल नोटबंदी के प्रमुख टार्गेट थे.
आर्थिक आंकड़ों में नोटबंदी
नोटबंदी की महीनों तक चली कवायद के बाद हाल में रिजर्व बैंक ने जब खुलासा किया कि लगभग पूरी की पूरी प्रतिबंधित करेंसी उसके पास जमा हो चुकी है. इस खुलासे से ज़्यां द्रेज़ का आर्थिक सिद्धांत एक बार फिर सुर्खियों में आ गया. वहीं जिस तरह से समय-समय पर प्रधानमंत्री समेत केन्द्रीय मंत्रियों ने नोटबंदी के मकसद का विस्तार किया उससे साफ है कि नोटबंदी से 8 नवंबर को दी गई पहली दलील गलत साबित हुई है. इसीलिए नोटबंदी के एक महीने के अंदर 22 नवंबर को कहना पड़ा कि कालेधन के खिलाफ लड़ाई में यह सिर्फ पहला कदम है. लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि नोटबंदी और उसके मकसद पर हावी भ्रम जब टूट चुका है तो क्यों सरकार इस बात को मान नहीं लेती कि इसका यह फैसला गलत था.