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जरूरी नहीं चुनावी बजट, खुद ब खुद खत्म हो जाएंगी मोदी सरकार की आर्थिक चुनौतियां

भारतीय अर्थव्यवस्था के आंकड़ों से मिल रहे संकेतों को देखें तो कहा जा सकता है कि यह बजट इसलिए भी खास रहेगा क्योंकि आने वाले दिनों के केन्द्र सरकार के सामने खड़ी ज्यादातर चुनौतियां खुद ब खुद आसान हो जाएंगी.

चुनाव से पहले खत्म हो जाएंगी आर्थिक चुनौतियां चुनाव से पहले खत्म हो जाएंगी आर्थिक चुनौतियां
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 6:01 PM IST

वित्त मंत्री अरुण जेटली अपना पांचवां और मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश कर रहे हैं. इस बजट पर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या केन्द्र सरकार आर्थिक सुधारों को जारी रखने का काम करेगी या फिर 2019 में होने वाले आम चुनावों की मजबूरी के चलते सरकारी खजाने का रुख लोक लुभावन घोषणाओं की तरफ मोड़ देगी.

भारतीय अर्थव्यवस्था के आंकड़ों से मिल रहे संकेतों को देखें तो कहा जा सकता है कि यह बजट इसलिए भी खास रहेगा क्योंकि आने वाले दिनों के केन्द्र सरकार के सामने खड़ी ज्यादातर चुनौतियां खुद ब खुद आसान हो जाएंगी.

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मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी राहत यह है कि आने वाला साल विकास दर के मुताबिक अच्छा रहने की उम्मीद है. आर्थिक सर्वे के मुताबिक इस साल जहां विकास दर 6 से 6.5 फीसदी के बीच रहेगा वहीं अगले साल यह 7 से 7.5 फीसदी तक रह सकता है.

वैश्विक अर्थव्यवस्था में लौट रही मजबूती अच्छे विकास दर की उम्मीद को और बेहतर करते हुए केन्द्र सरकार को राहत दे रही है. आने वाले दिनों में देश में आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी और नई नौकरियां भी पैदा होंगी. देश में रोजगार बढ़ने से केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी चुनौती का हल निकल सकेगा और आम चुनावों में सरकार के लिए जीत की राह आसान हो जाएगी.

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आर्थिक मामलों के ज्यादातर जानकारों का मानना है कि अगले 6 से 12 महीनों के दौरान जीएसटी में जारी सभी दिक्कतें दूर हो जाएंगी. यह एक और बड़ी वजह है जिससे केन्द्र सरकार को राहत मिलेगी. मौजूदा समय में जिस तरह जीएसटी से सरकार की कमाई पर असर पड़ा है वहीं जीएसटी दुरुस्त हो जाने के बाद उसके राजस्व में बड़ा इजाफा हो सकेगा.

इसके अलावा कारोबारी संगठनो का दावा है कि केन्द्र सरकार का बीमार बैंकों के स्वास्थ को सुधारने के लिए उठाया जा रहा कदम भी एक साल के अंदर अपना असर दिखाने लगेगा और चुनाव से पहले ज्यादातर सरकारी बैंक न सिर्फ अपनी बैलेंसशीट को सही कर लेंगे बल्कि देश में नए कारोबारी कर्ज देकर अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार देने में अहम भूमिका अदा करेंगे.

इन सबके बीच केन्द्र सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती बचती है कि किसानों की समस्या से निपटने के लिए वह क्या कदम उठाती है. एक तरफ जहां किसान कर्जमाफी की मांग पूरे देश में उठ रही है. वहीं आने वाले दिनों में क्लाइमेट चेंज के असर और कमजोर मानसून से किसानों की आमदनी कम होने का नया खतरा खड़ा है. हालांकि केन्द्र सरकार ने 2022 तक देश में किसानों की आमदनी को दोगुना करने का वादा किया है.

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इस स्थिति में मौजूदा बजट सरकार सरकार के लिए बेहद अहम है. कुछ जानकारों का दावा है कि चुनाव को देखते हुए और मजबूत होती अर्थव्यवस्था के सहारे केन्द्र सरकार कोई बड़ी कल्याणकारी योजना का ऐलान कर दे जिसके आधार पर 2019 का चुनावी सफर उसके लिए आसान हो सके.

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मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में इंपोर्ट और एक्सपोर्ट में मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान सुधार देखने को मिला है. वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान एक्सपोर्ट ग्रोथ 13.6 फीसदी पर रहा जबकि इंपोर्ट सुस्त होकर 13.1 फीसदी रहा. यह आंकड़ें ग्लोबल ट्रेंड पर हैं और साफ संकेत दे रहे हैं कि नोटबंदी और जीएसटी का का असर कम हो रहा है.

गौरतलब है कि FDI के क्षेत्र में भी केन्द्र सरकार के लिए बड़ी राहत की उम्मीद है. वित्त वर्ष 2014-15 में सरकार को 45 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश मिला था. वहीं 2013-14 में यह महज 36 बिलियन डॉलर था. फिर 2015-16 में सरकार को कुल 55.46 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश मिला. वित्त वर्ष 2016-17 एफडीआई के मामले में बेहद खास रहा और कुल एफडीआई 60 बिलियन डॉलर से पार निकल गया.

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इस साल केन्द्र सरकार ने कई क्षेत्रों में एफडीआई को ध्यान में रखते हुए अहम फेरबदल किए हैं जिसके बाद उम्मीद की जा रही है कि अगला वित्त वर्ष एफडीआई के नाम हो सकता है. बड़ा एफडीआई आने की स्थिति में जहां केन्द्र सरकार को राजस्व में राहत मिलेगी वहीं देश में कारोबार की रफ्तार भी तेज होगी.

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