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कहते हैं इस व्रत के बारे में कृष्ण ने द्रौपदी को बताया था तथा शिव ने पार्वती को. करवा चौथ का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है.
मिट्टी के टोटीनुमा पात्र जिससे जल अर्पित करते हैं, उसको करवा कहा जाता है और चतुर्थी तिथि को चौथ कहते हैं. इस दिन मूलतः भगवान गणेश, गौरी तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है.
चंद्रमा को सामान्यतः आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है. इसलिए चंद्रमा की पूजा करके महिलाएं वैवाहिक जीवन में सुख शांति तथा पति की लम्बी आयु की कामना करती हैं.
यह पर्व सौंदर्य प्राप्ति का पर्व भी है. इसको मनाने से रूप और सौंदर्य भी मिलता है.
इस दिन सौभाग्य प्राप्ति के लिए रात्रि को प्रयोग भी किये जाते हैं, जो निष्फल नहीं होते. लेकिन करवा चौथ का सिर्फ व्रत करना ही महत्वपूर्ण नहीं है. इसके कुछ नियमों का यदि पालन न किया गया तो असर विपरीत भी हो सकता है...
करवा चौथ का व्रत - नियम और सावधानियां
- केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया है, ऐसी महिलाएं ही ये व्रत रख सकती हैं.
- यह व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाएगा, निर्जल या केवल जल पर ही व्रत रखें.
- व्रत रखने वाली कोई भी महिला काला या सफेद वस्त्र न पहने.
- लाल वस्त्र सबसे अच्छा है, पीला भी पहना जा सकता है.
- आज के दिन पूर्ण श्रृंगार और पूर्ण भोजन जरूर करना चाहिए.
- अगर कोई महिला अस्वस्थ है तो उसके स्थान पर उसके पति यह व्रत कर सकते हैं.