
टी20 क्रिकेट से परवान चढ़ती क्रिकेट की लोकप्रियता के मद्देनजर भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की ने हॉकी में भी ‘सिक्स अ साइड’ वर्ल्ड कप के आयोजन का सुझाव दिया है और वह अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ और एशियाई हॉकी महासंघ को लिखित प्रस्ताव भेजेंगे.
महान डिफेंडरों में शुमार टिर्की ने कहा, ‘क्रिकेट में पहले सिर्फ 50 ओवरों का वर्ल्ड कप होता था लेकिन अब टी20 वर्ल्ड कप भी हो रहा है और इससे खेल की लोकप्रियता कई गुना बढ़ी है. हॉकी में सिर्फ एक वर्ल्ड कप होता है जो चार साल में एक बार आता है. मेरा मानना है कि हॉकी में भी फटाफट क्रिकेट की तर्ज पर ‘सिक्स अ साइड’ वर्ल्ड कप होना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘यूरोपीय देशों में यह प्रारूप काफी लोकप्रिय है और बेहद रोमांचक भी होता है. मैं इस सप्ताह एफआईएच और एएचएफ को पत्र लिखकर यह प्रस्ताव रखने वाला हूं.’ भुवनेश्वर में चार साल पहले ‘इंटर होस्टल सिक्स अ साइड’ टूर्नामेंट कराने वाले ओडिशा के इस धुरंधर ने कहा कि भारत इसके आयोजन में अहम भूमिका निभा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘हमने जब भुवनेश्वर में इसका आयोजन किया था तब यह काफी सफल रहा था. लोगों में इसे लेकर जबर्दस्त क्रेज था और अब तो हॉकी इंडिया लीग के आने के बाद भारत में हॉकी की लोकप्रियता बढ़ी है. प्रायोजक भी आए है लिहाजा भारत ‘सिक्स अ साइड’ हॉकी को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा सकता है.’
टिर्की ने कहा कि वर्ल्ड कप का अपना क्रेज होता है और इससे नए देशों में भी हॉकी लोकप्रिय होगी. उन्होंने कहा, ‘निशानेबाजी और तीरंदाजी में भी कई वर्ल्ड कप होते हैं और दुनिया के अनगिनत देशों में ये खेल फैल गए हैं. हॉकी का भी प्रचार नए देशों में करने के लिए इस मिनी हॉकी वर्ल्ड कप की शुरुआत जरूरी है. इसका आयोजन ओलंपिक और वर्ल्ड कप के बीच में किया जा सकता है और 16 से 18 टीमों की इसमें भागीदारी होनी चाहिए.’ उन्होंने हॉकी को और आकर्षक बनाने के लिए नए नियमों के प्रयोग का भी समर्थन किया. उन्होंने कहा कि एक मैदानी गोल को दो गिनने के हॉकी इंडिया लीग के नए नियम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आजमाया जा सकता है.
टिर्की ने कहा, ‘नए बदलाव करके हॉकी को और रोमांचक बनाया जा सकता है. एक मैदानी गोल को दो गिनने का प्रयोग अच्छा है चूंकि इससे पेनल्टी कार्नर विशेषज्ञों पर निर्भरता कम होगी और अच्छे क्लासी गोल देखने को मिलेंगे. इसके अलावा तकनीकी रूप से मजबूत खिलाड़ी सामने आएंगे.’ उन्होंने कहा, ‘भारत समेत एशियाई टीमों को तो यह नियम और भी रास आयेगा क्योंकि हमारा जोर हमेशा कलात्मक हॉकी पर रहा है जबकि यूरोपीय टीमों ने पेनल्टी कार्नर विशेषज्ञों के दम पर दबदबा बना लिया है. इससे डिफेंडरों और स्ट्राइकरों की भी अहमियत बढ़ेगी.’