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दीपा करमाकर
22 वर्ष , जिमनास्टिक्स
महिलाओं की कलात्मक जिमनास्टिक्स
कैसे क्वालीफाइ कियाः जिमनास्टिक्स टेस्ट इवेंट, रियो
उपलब्धियां: 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में कांस्य; 2015 की एशियाई जिमनास्टिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक
सुबह के 8 बजे हैं और दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम कॉम्प्लेक्स के जिमनास्टिक्स एरेना में सुबह का सत्र चल रहा है. सभी एथलीट कड़ी मशक्कत में जुटे हैं लेकिन सभी नजरें 22 साल की एक लड़की पर टिकी हैं. वहां मौजूद तीनों कोच भी एक नन्हीं-सी, दुबली-पतली लड़की की कलाबाजियों पर ध्यान गड़ाए जान पड़ते हैं. दीपा करमाकर अकेली भारतीय जिमनास्ट हैं जिन्होंने रियो के लिए क्वालीफाइ किया है. वे देश की पहली महिला जिमनास्ट भी हैं जिन्होंने दुनिया के इस सबसे बड़े खेल आयोजन के लिए क्वालीफाइ किया है. लेकिन केवल यही बात नहीं है जो उन्हें खास बनाती है.
करमाकर इसलिए भी ध्यान खींच रही हैं क्योंकि उनके पोडियम पर पहुंचने की थोड़ी ज्यादा संभावना है, और क्योंकि वे अभी तक जहां भी गई हैं, बेहद मुश्किल और खतरनाक प्रोदुनोवा वॉल्ट में उनकी निपुणता ने लोगों को पलटकर देखने के लिए मजबूर कर दिया है. इस वॉल्ट या छलांग का नाम दिग्गज रूसी जिमनास्ट एलेना प्रोदुनोवा के नाम पर रखा गया था. इसमें जिमनास्ट अपने हाथों के बल पर बहुत ही ताकत के साथ छलांग लगाकर ढाई कलाबाजियां खाता है और फिर सामने की ओर जमीन पर आकर सीधा खड़ा होता है. पिछले साल नवंबर में विश्व चैंपियनशिप में दीपा के प्रोदुनोवा वॉल्ट से जज और दर्शक इतने प्रभावित हुए कि जिमनास्टिक्स की मातृ संस्था फेडरेशन इंटरनेशनल द जिमनास्टिक्स ने उनके ''विश्व स्तरीय जिमनास्ट" होने की तस्दीक करते हुए प्रशंसापत्र दिया था. संयोग से प्रोदुनोवा वॉल्ट में दुनिया में करमाकर का सबसे ऊंचा स्कोर हैः 15.300, जिसमें डिफिकल्टी के लिए 7.000 और एग्जीक्यूशन के लिए 8.300 हैं. यह इतनी दुर्लभ और जोखिम भरी छलांग है कि बहुत ही कम जिमनास्ट इसे करने की हिम्मत करते हैं और केवल पांच अब तक इसे कामयाबी के साथ कर सके हैं.
दीपा कहती हैं, ''मैं जानती हूं कि प्रोदुनोवा वॉल्ट खतरनाक है. लेकिन मैं यह पिछले दो साल से करती आ रही हूं. कुछ पाने के लिए आपको थोड़ा जोखिम तो लेना ही होता है." वे यह भी कहती हैं, ''मैं ओलंपिक के लिए 2015 से ट्रेनिंग ले रही हूं. रियो में मेरा पहला लक्ष्य फाइनल मुकाबलों में पहुंचना होगा और उसके बाद जैसा होगा वैसा किया जाएगा."
यही वह छलांग है जिसमें करमाकर को महारत हासिल है और यही वह करतब है जिसके दम पर वे रियो में कामयाबी हासिल करने की कोशिश करेंगी. बोर्ड पर तेज दौड़, सफाई से उछाल भरना, हवा में कलाबाजियां खाना, कुशन को हल्के-से छूना और फिर मजबूती से जमीन पर उतरना—यही वे चीजें हैं जो उन्हें जिमनास्टिक्स के अपने इस पूरे सफर में दूसरों से अलग और खास बनाती हैं. उन्होंने 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों में वॉल्ट में कांस्य पदक जीता. यह अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में किसी भी भारतीय महिला का पहला पदक था. उसके बाद उसी साल वह इंचियॉन एशियाई खेलों में चौथे स्थान पर रहीं. इसके बाद 2015 की एशियाई चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता और विश्व चैंपियनशिप में पांचवें स्थान पर रहीं, जहां उनसे पहले किसी भारतीय महिला ने कभी भाग तक नहीं लिया था.
अब जब केवल दो हफ्ते रह गए हैं, करमाकर जानती हैं कि वे अपनी तैयारी के बिल्कुल आखिरी दौर में हैं. इंटरव्यू के लिए उनके पास वक्त नहीं है, यहां तक कि फोटो शूट के लिए भी नहीं. अपना हर पल वे रियो के लिए अपनी तैयारी के आखिरी चरण पर ध्यान देने में बिताती हैं. जी-तोड़ मेहनत से भरे 8 घंटे के प्रशिक्षण सत्रों का मतलब है कि उनके पास किसी भी और चीज के लिए वक्त नहीं है. कॉम्प्लेक्स में भारतीय खेल प्राधिकरण की प्रशासक मंजुश्री रॉय कहती हैं, ''मैं पूरा और पक्का ख्याल रखती हूं कि उन्हें किसी भी दूसरी बात की फिक्र न करनी पड़े—उनके खानपान से लेकर मालिश और मनोवैज्ञानिक सलाह तक."
अगरतला में 1993 में जन्मी दीपा का उनके पिता दुलाल करमाकर ने छह साल की छोटी उम्र से ही खेलों से तआरुफ करवा दिया था. उनके पिता खुद भारोत्तोलन के कोच हैं. वे 2001 से ही अपने मौजूदा कोच बिशेश्वर नंदी के साथ हैं. नंदी कहते हैं, ''दीपा के साथ ओलंपिक मेडल का सपना देखना कभी आसान नहीं था. वे जब पहली बार मेरे पास आईं थी तब उसके पंजे सपाट थे...जिमनास्ट बनने का सपना देखने वाले के लिए यह बड़ी खामी है क्योंकि इससे छलांग लगाने में मुश्किल आती है. लेकिन मैं जानता था कि वे खास हैं और वक्त के साथ लगातार अभ्यास से हमने उसके पंजों को मोड़ लिया."
ओलंपिक के लिए क्वालीफाइ करने के कुछ ही घंटों के भीतर करमाकर ने ओलंपिक टेस्ट इवेंट में वॉल्ट के फाइनल मुकाबले में सोने पर कब्जा जमाया. यह पहला मौका था जब एक भारतीय महिला ने वैश्विक जिमनास्टिक मुकाबले में स्वर्ण पदक जीता था. अरबों हिंदुस्तानी उम्मीद कर रहे होंगे कि वे अगले महीने रियो में भी अपना यह कमाल दोहराएं.