उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्तियों का बंटवारा दोनों प्रदेशों के लिए जी का जंजाल बन गया है. पिछले दिनों उत्तराखंड की नेपाल सीमा से सटे खटीमा में लोहियाहेड जल विद्युत परियोजना को पानी सप्लाई करने वाली शारदा नहर की सुरक्षा दीवार ओवरफ्लो के कारण दो जगह से टूट गई. यह नहर यूपी सिंचाई विभाग के अधीन है. दीवार टूटने की वजह से लोहियाहेड आवासीय कॉलोनी समेत नजदीक के चौड़ापानी गांव में पानी भर गया और तबाही हुई. इस तबाही में एक जल विद्युत कर्मचारी की मौत हो गई, 17 मकान बह गए और 58 क्षतिग्रस्त हो गए. सैकड़ों पशु पानी में बह गए और फसल बर्बाद हो गई.
जल विद्युत परियोजना के अधिकारियों के मुताबिक मशीन ट्रिप होने के कारण नहर में पानी का दबाव बन गया था. लोहियाहेड जल विद्युत परियोजना के डीजीएम ए.के. सिंह कहते हैं, ''इस घटना की सूचना बनबसा स्थित उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के इंजीनियरों को दे दी गई थी. उनसे पानी सप्लाई कम करने के लिए भी कहा गया था. '' लेकिन उन लोगों की अनदेखी के कारण यह तबाही हुई. लेकिन उत्तर प्रदेश ङ्क्षसचाई विभाग के प्रमुख अभियंता अवध नरेश गुप्ता कहते हैं, ''उत्तराखंड बिजली परियोजना की मशीन ट्रिप होने से यह नौबत आई, लेकिन उत्तराखंड ने सुरक्षा उपाय नहीं किए. उन्हें तुरंत बिजली परियोजना के गेट बंद कर देने चाहिए थे. ''
इस तरह दोनों प्रदेशों के अधिकारी इस दुर्घटना के लिए एक-दूसरे को दोषी बताकर अपनी जान छुड़ाने में लगे हैं, लेकिन असली प्रश्न अपनी जगह कायम है कि उत्तराखंड की ये परिसंपत्तियां उसके अधिकार में आखिर कब आएंगी?
उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री यशपाल आर्य स्वीकारते हैं कि उत्तराखंड की 13,813 हेक्टेयर भूमि, जो सिंचाई विभाग की है, पर उत्तर प्रदेश का कब्जा है. इस भूमि की लागत 4,200 करोड़ रु. आंकी गई है. इसके अलावा नानकसागर, बैगुल, धौरा, बौर समेत छह बांध ऐसे हैं, जो उत्तर प्रदेश के अधीन हैं. इन बांधों की कीमत 4,000 करोड़ रु. से अधिक है. इन सबसे होने वाली कमाई भी उत्तर प्रदेश को ही जा रही है. तबाही के कारण सुर्खियों में आई लोहियाहेड जल विद्युत परियोजना का स्वामित्व उत्तराखंड सरकार के पास है, लेकिन इसे चलाने के लिए प्रदेश को उत्तर प्रदेश द्वारा शासित शारदा नहर का मुंह देखना पड़ता है. पानी बंद करना या छोडऩा राज्य के हाथ में नहीं है.
यशपाल आर्य कहते हैं, ''सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के हस्तांतरण के लिए भारत सरकार को आदेश दिया है. लेकिन केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के इस संबंध में दोनों राज्यों के बीच बैठक बुलाने पर भी तय निर्णय लागू नहीं हो पाए हैं. '' केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की दोनों राज्यों के बीच बुलाई गई बैठक में प्रथम चरण में हरिद्वार की 28 और ऊधमसिंह नगर की 13 नहरों को उत्तराखंड को और उत्तराखंड की 8 नहरों को उत्तर प्रदेश को हस्तांतरित करने पर सहमति बन चुकी थी. फिर भी उत्तर प्रदेश के रवैए के चलते यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई.
उत्तराखंड की सीमा में सिंचाई विभाग की 13,813.433 हेक्टेयर भूमि थी, जिसमें से हरिद्वार में पडऩे वाली 696.576 हेक्टेयर भूमि कुंभ में आने के कारण उत्तराखंड को मिल गई. लेकिन हरिद्वार की 3,321.495 हेक्टेयर भूमि, पौड़ी में पडऩे वाली ऋषिकेश मुनि की रेती, कालागढ़ समेत अन्य जगहों की 119.030 हेक्टेयर भूमि और ऊधमसिंह नगर की 687.420 हेक्टेयर भूमि अब भी उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के कब्जे में है. उत्तराखंड की भौगोलिक सीमा पर पडऩे वाले 2,035 आवासीय भवन और 173 शासकीय भवन, जो हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और पौड़ी की सीमा में हैं, भी उत्तर प्रदेश के अधीन हैं.
इस मामले में पहले राज्य के एक अधिवक्ïता एस.एन. बाबुलकर ने उत्तराखंड हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. बाबुलकर के अनुसार हाइकोर्ट ने इस संबंध में उत्तराखंड के हित में एक शानदार फैसला दिया था, लेकिन इस फैसले को लागू करने से पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर स्थगनादेश ले लिया. बाबुलकर मानते हैं कि सरकारी सुस्ती के चलते परिसंपत्तियां अब तक अधर में लटकी हुई हैं.
सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार हरिद्वार के मायापुर में गंगनहर के चौड़ीकरण का काम करवा रही है. इस चौड़ीकरण के जरिए 3,000 क्यूसेक अतिरिक्त पानी उत्तर प्रदेश के लिए ले जाया जा सकेगा, जबकि हरिद्वार की तीन सिंचाई योजनाएं पानी के अभाव में लटकी हैं. राज्य के अधिकारियों को आईना दिखाने के लिए यह काफी है.
ऐसा नहीं है कि परिसंपत्तियों को वापस लेने की कोशिश नहीं हुई. 2010 में उत्तराखंड ने रुड़की स्थित उत्तर प्रदेश के नियंत्रण वाली सिंचाई की संपत्तियों को वापस लेने का प्रयास किया. लेकिन तत्कालीन मायावती सरकार के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट चले गए. अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश के साथ ही गंगा मैनेजमेंट बोर्ड को मामले का निस्तारण करने के लिए कहा था. लेकिन चार साल बीतने और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अपने-अपने प्रदेश संबंधी ड्राफ्ट पेश करने के बावजूद अब तक निस्तारण नहीं हो पाया है.
(यूपी सिंचाई विभाग के अधीन है हरिद्वार स्थित भीमगोड़ा बैराज)
राज्य के नानकसागर बांध, धौरा जलाशय, बनबसा डैम, भीमगोड़ा, कालागढ़ स्थित रामगंगा बांध, जो मिट्टी का बना एशिया का सबसे बड़ा बांध है, पर भी उत्तर प्रदेश का कब्जा है. यही नहीं, उत्तर प्रदेश हरिपुर जलाशय, बौर जलाशय और तुमडिय़ा डैम का आनंद भी उठा रहा है. दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का अब तक बंटवारा न हो पाने को सरकारी तंत्र की विफलता बताते हुए खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी कहते हैं, ''यह मामला मैंने विधानसभा में भी उठाया था, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. '' राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और ऊधमसिंह नगर से बीजेपी सांसद भगत सिंह कोश्यारी कहते हैं, ''राज्य बनने के 14 साल बाद भी इस तरह का विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है. '' कोश्यारी इस मामले को जल्दी सुलझने की बात करते हुए कहते हैं, ''उत्तर प्रदेश को पानी चाहिए, जो उसे मिलेगा, लेकिन जमीन उनकी नहीं हो सकती. जमीन और भवन समेत इन्फ्रास्ट्रक्चर उत्तराखंड को मिलने चाहिए. ''
क्षेत्रीय राजनैतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) ने चेतावनी दी है कि यदि परिसंपत्तियों का विवाद जल्द नहीं सुलझ तो पार्टी कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश के कब्जे वाली उत्तराखंड की परिसंपत्तियों पर जबरन कब्जा कर लेंगे. यूकेडी नेता काशी सिंह ऐरी कहते हैं, ''सरकारों की हीलाहवाली से उत्तराखंड की जनता को नुकसान हो रहा है. ''
इस बार की दुर्घटना सरकार के लिए एक चेतावनी है. लेकिन उत्तर प्रदेश के अडिय़ल रुख के चलते राज्य के लिए अब भी अपनी ही जमीन पर वाजिब हक हासिल करने की यह राह आसान नहीं लगती.