आम आदमी पार्टी (आप) के संस्थापकों में एक कुमार विश्वास ने जब अरविंद केजरीवाल की आलोचना की तो उनका बाहर जाना तय लग रहा था लेकिन वे बने हुए हैं. हाजिरजवाब और हमेशा चर्चा में रहने की वजहें खोज लेने वाले विश्वास ने चुनावों में हार के बाद जारी किए गए अपने एक वीडियो में आंतरिक भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था.
'आप' के एक वर्ग में विश्वास को कुछ समय तक बीजेपी-आरएसएस का समर्थक बताया जाता रहा था. इस बार 'आप' के एक विधायक अमानतुल्ला खान ने सार्वजनिक रूप से विश्वास पर पार्टी तोडऩे का आरोप लगाया. उसके बाद से खान 'आप' की पॉलिटिकल ऐक्शन कमेटी से इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन वे अपने बयान पर कायम हैं.
तब से उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया है क्योंकि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पार्टी को एकजुट रखने की कोशिश में विश्वास को बनाए रखना चाहते हैं. विश्वास को राजस्थान का प्रभार भी दिया गया.
इससे ऐसा संकेत दिया गया कि पार्टी 2018 के चुनावों की तैयारी में जुटी है क्योंकि पार्टी में कलह से मनोबल गिरा हुआ है. उसकी हालत उस डूबते जहाज जैसी हो गई है, जिसमें पुराने छेदों को भरने की कोशिश में नए छेद होते जा रहे हैं.
अब उसे डूबने में ज्यादा समय नहीं रह गया है. विपक्ष तो कम से कम आपको ऐसा ही विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा है. लगातार तीन पराजयों के बाद खुद पार्टी के भीतर से ही विरोध की आवाज उठने लगी है. पार्टी में गुटबाजी शुरू हो गई है और बगावती स्वर सिर उठाने लगे हैं.
इस अंदरूनी कलह में फोन पर बात करते हुए आशुतोष काफी परेशान लग रहे थे. वे गलतियों को स्वीकार करते हुए एक विवेकशील पार्टी प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन वे पार्टी के बिखरने की बात को पूरी तरह खारिज करते हैं. वे कहते हैं, ''हमें यह समझने की जरूरत है कि कैसे और कब हमने दिल्ली सरकार, कार्यकर्ताओं और लोगों के बीच अपने संपर्क को गंवा दिया.''
चुनाव से पहले दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दावा किया था कि 'आप' के कार्यकर्ता पंजाब और गोवा के चुनाव प्रचार के कारण विचलित नहीं हुए हैं और हार के कारण उनके मनोबल पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है. लेकिन पंजाब में चुनाव प्रचार के अगुआ संजय सिंह और दुर्गेश पाठक ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है.
पार्टी के भीतरी सूत्रों का कहना है वे पार्टी के साधारण नेता थे, जिन्हें अपनी काबिलियत के कारण नहीं, बल्कि केजरीवाल के प्रति वफादारी के कारण तरक्की दे दी गई थी.
नाराज कार्यकर्ताओं का लंबे समय से आरोप था कि वे धूर्त और यहां तक कि भ्रष्ट भी हैं. उनका चुनावी गणित बिल्कुल मूर्खतापूर्ण थाः जितना पैसा, उतना वोट. विश्वास के निशाने पर भी शुरू में वे ही बताए गए.
पार्टी की भीतरी कलह ने भाजपा को मुंहमांगी मुराद दे दी है. उसने नगर निगम के चुनावों में भारी जीत के बाद दिल्ली सरकार को गिराने की अपनी मंशा लगभग साफ कर दी है. भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु मित्तल ने कहा, ''दिल्ली की जनता ने केजरीवाल और 'आप' को खारिज कर दिया है.''
आशुतोष कहते हैं, ''केजरीवाल निजी तौर पर 'आप' के विधायकों, पार्टी के सदस्यों से चर्चा करेंगे और लोगों के साथ जुडऩे का प्रयास करेंगे.'' लेकिन लगता है कि बहुत से लोग उन्हें माफ करने के मूड में नहीं हैं.