
अब समाजवादी पार्टी के पारिवारिक विवाद में लगे दोनों गुट चुनाव आयोग के दरवाजे पर पहुंच चुके हैं. दोनों दावा कर रहे हैं कि पार्टी पर उनका दावा ही सही है, दूसरा गुट जबरदस्ती कर रहा है. मुलायम गुट ने संविधान की दुहाई दी है तो अखिलेश गुट ने संख्या बल और पार्टी में लोकतंत्र की दुहाई दी.
समाजवादी पार्टी में बने दूसरे गुट के चाणक्य रामगोपाल यादव अपने तीन साथियों नरेश अग्रवाल, किरनमय नंदा और अभिषेक मिश्रा के साथ चुनाव आयोग पहुंचे. वहां करीब आधा घंटा आयोग के साथ उनकी बैठक हुई. बैठक से बाहर निकल कर रामगोपाल यादव ने बताया कि आयोग के सामने हमने अपना पक्ष रखा कि हमारे साथ पार्टी के 90 फीसदी जनप्रतिनिधि और 80 से 90 फीसदी डेलीगेट्स हैं. इसलिए असली समाजवादी पार्टी वो है जिसके अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं. अखिलेश यादव की अध्यक्षता वाली पार्टी को ही समाजवादी पार्टी माना जाए.
इन लोगों ने ये भी दलील दी कि अखिलेश के नेतृत्व में अधिवेशन बुलाना पार्टी के संविधान के बिल्कुल खिलाफ नहीं है. संविधान में साफ कहा गया है कि अध्यक्ष ना हो तो उपाध्यक्ष भी डेलीगेट्स के आवेदन पर पार्टी का अधिवेशन बुला सकता है. उन्होंने अखिलेश और रामगोपाल के पार्टी से निलंबन रद्द किए जाने की बात भी की. इस बावत संविधान के समुचित प्रावधानों की कॉपी भी नत्थी की गई है.
अब आयोग को फैसला करना है कि पार्टी पर किसका कब्जा होगा और साइकिल पर कौन चढ़ेगा. लेकिन इसके पहले आयोग दोनों पक्षों की सुनेगा. इतनी जल्दी प्रक्रिया पूरी नहीं होगी लेकिन चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. ऐसे में बहस जारी रही तो मुमकिन है कि पार्टी और चुनाव चिह्न दोनों ही फ्रिज हो जाएं. यानी समाजवादी पार्टी का नाम ठंडे बस्ते में साइकिल मालखाने में जमा हो जाए.
दूसरी ओर लखनऊ में मुलायम और अखिलेश के बीच बातचीत कराने और संकट को टालने के लिए एक होकर चुनाव लड़ने की शर्तें और कायदे तय करने के लिए मानने और मनाने का दौर जारी है. हो सकता है मामला सुलह की राह पर आगे बढ़ जाए.