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आम तौर पर खामोश रहने वाले पूर्व अमेठी रियासत के राजा और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य 63 वर्षीय संजय सिंह के महल ‘भूपति भवन’ का नजारा आज कुछ बदला-सा है. अवध स्थापत में ढले, गेरुए और पीले रंग में रंगे इस महल पर पुलिस का पहरा है. तारीख है 28 जुलाई और हजारों की तादाद में गांव की जनता अपना काम छोड़कर महल के बाहर 18 बरस बाद अपनी ‘रानी’ और उनकी पहली पत्नी 58 वर्षीया गरिमा सिंह को देखने के लिए इकटठा हुई है. नारों से आसमान गूंज उठता है, “रानी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं.” रानी महल की मुंडेर पर प्रकट होती हैं और हाथ हिलाकर जनता का अभिवादन करती हैं.
25 जुलाई को अमेठी राजपरिवार में पिछले कई वर्ष से सुलग रही कलह अचानक सतह पर आ गई. पिछले 18 साल से लखनऊ में रह रहीं गरिमा अचानक सुबह-सुबह अपने पुत्र और पूर्व अमेठी रियासत के वारिस अनंत विक्रम सिंह, पुत्रवधू और छत्तीसगढ़ के अकलतारा राजघराने की बेटी शांभवी, पौत्र अधिराज सिंह, बड़ी बेटी और झाबुआ राजघराने की बहू महिमा सिंह, छोटी बेटी और डूंगरपुर राजघराने की बहू शैव्या सिंह को लेकर रामनगर इलाके में मौजूद अमेठी रियासत के महल भूपति भवन पहुंच गईं.
संजय सिंह की दूसरी पत्नी और अमेठी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक अमीता सिंह के प्रतिनिधि और महल की देखरेख करने वाले कर्मचारियों को जब गरिमा के जबरन महल में दाखिल होने की सूचना मिली तो ये लोग भी हथियार लेकर वहां पहुंच गए. अनंत से उनकी झड़प भी हुई. इसी बीच गरिमा के महल में आने की सूचना मिलते ही अगल-बगल के लोग उनके समर्थन में आ गए. अचानक उनके बचाव में भीड़ को आता देख अमीता के आदमी हवाई फायरिंग करते हुए भाग निकले. इसके बाद अनंत ने अमेठी थाने में अमीता के 12 समर्थकों को नामजद करते हुए मारपीट, महिलाओं के साथ अभद्रता और उन्हें बंधक बनाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. अगले दिन अमीता के समर्थकों ने भी अनंत समेत नौ लोगों पर लूटपाट और महल पर अवैध कब्जे का मुकदमा दर्ज कराया. दोनों तरफ से मुकदमा दर्ज होने के साथ ही अमेठी रियासत के इतिहास में यह पहला मौका था, जब विरासत से जुड़ा विवाद चारदीवारी से निकलकर बाहर सड़क पर आ गया. महल के रसूख के आगे पुलिस भी पूरी तरह से तमाशबीन बनी खड़ी हुई थी. दूसरी ओर गरिमा के समर्थक चाक-चौबंद होकर उनकी सुरक्षा के लिए महल के बाहर दिन-रात डेरा डाले हुए हैं.
(संजय सिंह और अमीता सिंह)
अकूत संपत्ति पर वर्चस्व की लड़ाई
संजय सिंह इस रियासत को हजार साल से भी ज्यादा पुरानी बताते हैं. लेकिन रणंजय सिंह अमेठी के सातवें राजा और विधायक थे. उनकी शादी सुषमा देवी से हुई थी. राजा रणंजय सिंह की कोई औलाद नहीं थी. 1962 में उन्होंने भेटुआ ब्लॉक के अमेयमाफी निवासी गया बक्श सिंह के पुत्र संजय सिंह को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था. उस समय वे पांचवीं क्लास में पढ़ रहे थे.
आज अमेठी रियासत के पास अकूत संपत्ति है. प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के कई संस्थान इस पूर्व रियासत के झ्ंडे तले संचालित हो रहे हैं. अमेठी के अलावा वाराणसी, सुल्तानपुर, मिर्जापुर, लखनऊ, दिल्ली, सीतापुर समेत कई महानगरों में इस पूर्व रियासत की संपत्ति है, जिनकी कीमत 500 करोड़ रु. से कहीं ज्यादा है. इस रियासत की ‘महारानी’ गरिमा तकरीबन 100 कमरों वाले भूपति भवन की पहली मंजिल पर बने दो छोटे-से कमरों में अपने बच्चों के साथ रह रही हैं. सुरक्षा के लिहाज से महल के दरवाजे भीतर से बंद कर दिए गए हैं. किसी बाहरी आदमी को महल के अंदर आने-जाने की मनाही है.
इस पूर्व रियासत के वारिसों गरिमा और उनके बच्चों की भूख-प्यास का ख्याल बाहर जुटी जनता कर रही है. उनके समर्थक अपने घरों से भोजन लाकर बाल्टी बंधी रस्सी के जरिए महल के भीतर पहुंचा रहे हैं. संजय सिंह के इकलौते पुत्र अनंत कहते हैं, “अमीता मोदी (अमीता सिंह) ने महाराज (संजय सिंह) से शादी करने के बाद रियासत की सारी संपत्ति अपने कब्जे में कर ली है. मेरी मां आज भी महाराज की ब्याहता पत्नी और रियासत की महारानी हैं. मां के हक के लिए अब इस महल में अमीता मोदी को किसी कीमत पर प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा.”
तलाक पर उठ रहे सवाल
इलाहाबाद के डैया राजघराने के राजा और पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के छोटे भाई हरि बक्श सिंह की पुत्री गरिमा का विवाह संजय के साथ 1974 में हुआ था. लखनऊ कैंट के सरदार पटेल मार्ग पर एक आलीशान बंगले में अमीता के साथ रह रहे संजय कहते हैं, “शादी के बाद मुझे कभी सुख-शांति नहीं मिली. गरिमा की निगाह शुरू से मेरी संपत्ति पर थी. आखिरकार मैंने तलाक लेने का निर्णय किया. 1995 में मैंने अपने बच्चों की सहमति से अमिता से दूसरी शादी करने का फैसला किया.” असल में अमीता मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की पत्नी थीं, जिनकी 1988 में लखनऊ में दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी. इस सनसनीखेज हत्याकांड में संजय के साथ अमीता का भी नाम आया था, लेकिन 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया. इसके बाद संजय ने सीतापुर की एक कोर्ट में गरिमा से तलाक का मुकदमा दायर किया और कुछ ही दिनों में वह उन्हें मिल गया.
इस पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाते हुए गरिमा कहती हैं, “संजय सिंह ने मेरी जगह दूसरी औरत को कोर्ट में पेश कर तलाक हासिल किया था. यह एक बड़ी धोखाधड़ी थी. मैंने तलाक के किसी भी कागज पर हस्ताक्षर नहीं किए थे. उस वक्त मैं लखनऊ में थी और मुझे तो अखबार से पता चला कि मेरा और उनका तलाक हो गया है.” गरिमा के मुताबिक, हाइकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट भी इस तलाक को अवैध घोषित कर चुका है.
संजय की अमीता के साथ शादी के बाद 28 जनवरी, 1996 को जब गरिमा भूपति भवन पहुंचीं तो उनके बेटे अनंत और बेटी महिमा ने ही उन्हें महल के भीतर जाने से रोक दिया. बच्चों के विरोध से सकते में आई गरिमा लखनऊ वापस आ गईं और उसके बाद दोबारा महल की ओर नहीं देखा. अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को शहर में अपने पति के साथ रहीं महिमा भी भूपति महल में मौजूद हैं. मां के विरोध करने का जिक्र छिड़ते ही उनकी आंखें आंसुओं से डबडबा जाती हैं. आंसू पोंछते हुए महिमा कहती हैं, “महाराज और अमीता मोदी ने शुरू से हमें यही समझाया कि मेरी मां और नाना अमेठी रियासत पर कब्जा कर रहे हैं. हम उनकी बातों में आकर मां को ही गलत मान बैठे थे.”
(संजय सिंह की छोटी बेटी शैव्या सिंह, पहली पत्नी गरिमा सिंह, बेटा अनंत विक्रम सिंह और बड़ी बेटी महिमा)
उपेक्षा से पैदा हुए बगावती तेवर
भूपति महल के एक छोटे-से कमरे में रियासत के पूर्वजों की तस्वीरों के ढेर को साफ करते हुए महिमा अचानक गुस्से से तिलमिला जाती हैं. बुढ़ऊ महाराज (संजय के पिता राजा रणंजय सिंह) की एक तस्वीर से धूल हटाते हुए वे कहती हैं, “अमीता ने रियासत के पूर्वजों का अपमान करने के साथ-साथ महल की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई है.” असल में अमीता से शादी के पहले रियासत की सारी संपत्ति की देखरेख संजय स्वयं करते थे, लेकिन शादी के बाद यह जिम्मेदारी अमीता ने संभाल ली थी. बच्चों का आरोप है कि अमीता के प्रभाव में आकर ही संजय ने उनकी उपेक्षा की. मर्चेंट नेवी में काम कर रहे अनंत इन्हीं पारिवारिक वजहों से 2011 में नौकरी छोड़कर लखनऊ में मां के साथ रहने लगे. पिछली 18 जून को वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ लखनऊ से आकर अमेठी के महल में रहने लगे. जुलाई के दूसरे हफ्ते में ददिया सास का देहांत होने पर जब वे परिवार समेत छत्तीसगढ़ गए तो महल से उनका सामान ट्रक से लखनऊ भेज दिया गया.
इसके बाद गरिमा ने पुत्र को उसका हक दिलाने के लिए 18 वर्ष बाद अमेठी आने का फैसला किया. गरिमा कहती हैं, “यह हक की लड़ाई है. मैं महाराज की पत्नी हूं. उन पर कोई आंच न आए, इसलिए अब तक चुप थी. लेकिन अब बच्चों का दुख मुझसे सहा नहीं जाता. बच्चों को उनका हक देना ही होगा.”
गरिमा और अनंत के सारे आरोपों से बेफिक्र संजय कहते हैं, “अनंत ही मेरा उत्तराधिकारी है. गरिमा ने संपत्ति के लालच में बेटे को गुमराह किया है.” फिलहाल रियासत की विरासत की यह जंग आरोपों-प्रत्यारोपों के तीर से ही लड़ी जा रही है, लेकिन इसने दोनों पक्षों की प्रतिष्ठा को जमकर चोट पहुंचाई है. किसी बॉलीवुड फिल्म की कहानी की तरह इस हाइवोल्टेज फैमिली ड्रामे ने अमेठी राजघराने को जनता के बीच उपहास का पात्र बना दिया है.