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इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2017: यह परिवर्तन नहीं, कायाकल्प है

पहले जो नीतियां होती थीं, वे चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं या इस तरह कि नौकरशाही के ठस ढांचे के भीतर समा सकें. अब वक्त बदल गया है. पिछले 200 साल में प्रौद्योगिकी उतना नहीं बदली, जितना बीते 20 साल में बदली है. आज के युवाओं की आकांक्षाएं 30 साल पहले के मुकाबले बिल्कुल भिन्न हैं.

इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
सरोज कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

दशकों से भारत गलत नीतियों के सहारे गलत दिशा में चल रहा था. हम मानते आए थे कि सरकार सब कुछ कर सकती है. दशकों बाद हमारा ध्यान इन गलतियों की ओर गया और इन्हें दुरुस्त करने के प्रयास किए गए. दो दशक पहले भी हमने ऐसी कुछ कोशिशें की थीं लेकिन हमारी सोच इतनी सीमित है कि हमने इन गलतियों को दुरुस्त करने के लिए किए गए प्रयासों को ही सुधार समझ लिया. भारत की आजादी के बाद अधिकतर समय देश में एक किस्म की सरकार या मिली-जुली सरकार रही है. यही वजह थी कि हमें केवल एक किस्म की सोच देखने को मिली.

पहले जो नीतियां होती थीं, वे चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं या इस तरह कि नौकरशाही के ठस ढांचे के भीतर समा सकें. अब वक्त बदल गया है. पिछले 200 साल में प्रौद्योगिकी उतना नहीं बदली, जितना बीते 20 साल में बदली है. आज के युवाओं की आकांक्षाएं 30 साल पहले के मुकाबले बिल्कुल भिन्न हैं. वैश्विक माहौल को देखें तो दोध्रुवीय दुनिया और परस्पर निर्भर दुनिया के सारे समीकरण बदल चुके हैं.

आजादी के संघर्ष के दौरान राष्ट्रीय आकांक्षा ने निजी आकांक्षाओं की जगह ले ली थी और उसकी ताकत ऐसी रही कि उसने सैकड़ों साल की गुलामी से देश को आजाद करा लिया. आज आजादी के आंदोलन की ही तरह हमें विकास के लिए एक आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है और निजी आकांक्षाओं को विस्तार देकर सामूहिक आकांक्षाओं तक ले जाने की आवश्यकता है. यही सामूहिक आकांक्षा देश के समग्र विकास का रास्ता प्रशस्त करेगी.

यह सरकार ''एक भारत, श्रेष्ठ भारत" के सपने को साथ लेकर चल रही है. मैं अपनी इस सरकार के नए नजरिए को समझाना चाहूंगा. बरसों तक हमने अंग्रेजी और हिंदी के बीच टकराव देखे हैं लेकिन हमने इस क्रम में भारतीय भाषाओं की समृद्ध विरासत की अनदेखी की है. आइए, अपनी भाषाओं को हम जोड़ें और सभी का सर्वश्रेष्ठ लेकर इस विशाल खजाने को और समृद्ध बनाएं. इस काम के लिए हमने एक राज्य को दूसरे के साथ युग्म के रूप में जोड़ दिया है. मसलन, हमने हरियाणा और तेलंगाना की जोड़ी बनाई है. अब हरियाणा के बच्चे तेलुगु के 100 वाक्य सीखेंगे और तेलुगु में पांच गाने. हरियाणा में तेलुगु फिल्म महोत्सव हुआ करेंगे. तेलंगाना के लोग बदले में हरियाणवी सीखेंगे.  

विविधता और गौरव
देश को सशक्त बनाने के लिए जरूरी है कि नई पीढ़ी देश की विविधता को समझे और उस पर गर्व करे. पहले जो चीजें टकराव को जन्म देती थीं, आज वे हमारी ताकत बनती जा रही हैं. चीजें बदल रही हैं लेकिन इन्हें परिभाषित करने के लिए डिसरप्शन (परिवर्तन) काफी छोटा शब्द है जिसमें सब कुछ नहीं समा पाएगा. हमारा नजरिया इस तंत्र का विध्वंस करना नहीं है. हम इसका कायाकल्प करना चाहते हैं, जहां हम देश की आत्मा को सुदृढ़ रखते हुए बदलते हुए वक्त के मुताबिक व्यवस्थाओं को विकसित और परिमार्जित कर सकें. जाहिर है, समूचा राष्ट्र ही इस व्यवस्था का अंग है.

कुछ लोगों को लगता है कि बदलाव केवल सत्ता के गलियारे से ही आ सकता है. यह गलत सोच है. हमने अपनी कार्य-संस्कृति में समयबद्ध क्रियान्वयन और समेकित चिंतन को आपस में जोड़ा है. हमने एक ऐसी व्यवस्था बनाई है जो पारदर्शी हो, नागरिक केंद्रित हो और विकास हितैषी हो. इसमें कुशलता लाने के लिए प्रक्रियाओं को दुरुस्त किया गया है. भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है. विश्व निवेश रिर्पोट के अनुसार भारत आज श्रेष्ठ तीन संभावित मेजबान अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है. 2015-16 में भारत में 55 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश हुआ.पिछले दो साल में भारत का स्थान विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में 32 पायदान ऊपर गया है. ''मेक इन इंडिया" देश का सबसे बड़ा इनिशिएटिव बनकर उभरा है. भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग देश है.

सहकारी संघीय सोच का ढांचा
हमारी सरकार सहकारी संघीय सोच और प्रतिस्पर्धी सहकारी संघीय सोच पर जोर देती है. जीएसटी की समूची प्रक्रिया ही इस किस्म के विमर्शवादी लोकतंत्र का बेहतरीन उदाहरण है. काफी लंबे विचार-विमर्श और सहमति निर्माण के बाद जीएसटी पर फैसला किया गया है. आपकी नजर में यह विघटनकारी हो सकती है लेकिन जीएसटी ने भारतीय संघवाद के उत्कर्ष का हमें नजारा कराया है. हमें इसमें गर्व होना चाहिए.

बरसों तक हमने विकास की राह में श्रम कानूनों को रोड़ा पाया. दूसरी ओर, जो लोग श्रम कानूनों को सुधारना चाहते हैं, उन्हें मजदूर विरोधी मान लिया जाता है. हमने कभी भी एक समग्र नजरिए की तलाश करने की कोशिश नहीं की जो एक साथ नियोक्ता, मजदूर और आकांक्षी लोगों के सरोकारों का क्चयाल रख सके. हमारे एकाधिक श्रम कानूनों के चक्कर में एक नियोक्ता को 56 विभिन्न पंजीयकों के पास एक ही जैसी सूचना दर्ज करानी पड़ती है. पिछले महीने सभी मजदूर यूनियनों को हमने इस बात पर सहमत कर लिया और एक अधिसूचना जारी कर दी कि एक नियोक्ता को केवल पांच पंजीयकों के पास सूचना देनी पड़ेगी. इससे कारोबार करने की सहूलियत में इजाफा होगा.  

वैयक्तिक क्षेत्र

सरकार रोजगार बाजार के विस्तार की दिशा में भी काम कर रही है. हम निजी और सरकारी क्षेत्र से परिचित हैं. अब हमारा जोर वैयक्तिक क्षेत्र को प्रोत्साहित करने पर है. मौद्रिक योजना के तहत पुरुषों और महिलाओं को बिना गारंटी के बैंक लोन दिए जा रहे है. पिछले ढाई साल में मौद्रिक योजना के तहत 6 करोड़ से ज्यादा लोगों को कुल 3 लाख करोड़ रु. से ज्यादा के लोन दिए जा चुके हैं. अब वे अपने पैरों पर खड़े हैं. उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया है और दूसरों को रोजगार मुहैया कराने की स्थिति में आ गए हैं.

आज हमारे देश में बड़े-बड़े मॉल आधी रात तक खुले रहते हैं लेकिन छोटे दुकानदारों को कानून-व्यवस्था के चलते शाम को ही दुकानें बंद करनी पड़ती हैं. मैंने राज्यों से कहा है कि वे अपने कानूनों में संशोधन करें, ताकि कोई दुकानदार चाहे तो साल के 365 दिन अपनी दुकान खुली रख सके. अगर वह रात में दुकान खुली रखेगा तो कम से कम एक आदमी को रोजगार मुहैया करा रहा होगा.

ये बातें छोटी जान पड़ती हैं लेकिन ऐसी ही छोटी-छोटी चीजों से बड़े बदलाव आते हैं. हमारी सरकार ने कौशल विकास मंत्रालय गठित किया है. रोजगार संवर्धन योजना और आयकर रियायत के माध्यम से हम लोग औपचारिक रोजगारों को बढ़ावा दे रहे हैं. पहली बार ऐसा हुआ है कि हमने रोजगार सृजन को आयकर रियायत के साथ जोड़ दिया है. सारा जोर रोजगार सृजन पर है. हमने अप्रेंटिस कानून में भी संशोधन किया है और अप्रेंटिसों की संख्या को बढ़ाकर उनके भत्तों में वृद्धि की है.

जनता की शक्ति
सरकार की शक्ति से जनशक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है. मैं पहले भी इंडिया टुडे के मंच पर कह चुका हूं कि सवा अरब लोगों की भागीदारी के बगैर तरक्की नहीं कर सकते. जनता की ताकत के बगैर आगे बढ़ पाना संभव नहीं है. नवंबर में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ  सरकार की कार्रवाई के दौरान हम जनता का मूड देख चुके हैं. उस वक्त समूचा देश इस तरह एकजुट होकर खड़ा रहा है, जैस युद्ध या प्राकृतिक आपदाओं के समय में ही दिखाई देता है. सवाल यह है कि आज इस राष्ट्र को एकजुट रखने वाले मुद्दे क्या हैं? आज देश की जनता कमियों को दूर करने के लिए एकजुट होकर खड़ी है. आज सभी न्यू इंडिया (नए भारत) के लिए एक साथ खड़े हुए हैं.

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