
कड़वाहट भरी टूट के बाद नए सिरे से हाथ मिलाने के मौके पर दिवंगत नेता जे. जयललिता की तस्वीरों के साथ अपनी कलाइयों पर आस्था के धागे (एक लाल और दूसरा हरा) बांधकर मुख्यमंत्री ईडापद्दी के. पलानीस्वामी और उनके पूर्ववर्ती ओ. पनीरसेल्वम चेन्नै के अन्नाद्रमुक मुख्यालय में जोर-जोर से हाथ मिला रहे थे. यह पलानीस्वामी के अन्नाद्रमुक (अक्वमा) और पनीरसेल्वम के अन्नाद्रमुक (पुराचि तलैवी अक्वमा) के धड़ों के बीच नए संगम का मौका था. दोनों को लगा कि इसके बिना कोई राह नहीं है.
दोनों धड़ों की राहें अलग होने के करीब साढ़े छह महीने बाद 21 अगस्त को दोनों नेताओं ने हाथ मिलाकर तीसरे धड़े को बाहर रखा, जो अंतरिम महासचिव वी.के. शशिकला और उनके 'मन्नारगुडी कुनबे' के साथ है. इस धड़े की डोर शशिकला के भतीजे टी.टी.वी. दिनकरन के हाथ में है, जिन्हें आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल जाने के समय शशिकला ने कार्यवाहक महासचिव नियुक्त किया था.
ऊपरी तौर पर तो दोनों धड़ों का मिलन पलानीस्वामी के पनीरसेल्वम की शर्त मान लेने के बाद हुआ कि जयललिता की बीमारी और इलाज पर न्यायिक जांच बैठाई जाएगी और आधिकारिक कार्रवाई के जरिए पार्टी से शशिकला और मन्नारगुडी कुनबे को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा.
पार्टी मुख्यालय में भारी तमाशे के बाद वही कुछ मरीना बीच पर जयललिता की समाधि पर भी दोहराया गया. लेकिन मेल-मिलाप की असली वजह 234 सदस्यीय विधानसभा में अन्नाद्रमुक के टिकट पर जीते 135 विधायकों का यह दबाव था कि बाकी चार साल सरकार बनी रहे. इनमें अधिकांश चुनाव जीतने के लिए काफी पैसा खर्च कर चुके हैं.
फिलहाल नए निजाम के तहत पलानीस्वामी मुख्यमंत्री और पनीरसेल्वम उप-मुख्यमंत्री होंगे लेकिन पनीरसेल्वम पार्टी समन्वय समिति के चेयरमैन होंगे जिसके डिप्टी चेयरमैन पलानीस्वामी के साथ 13 सदस्य होंगे. जानकारों के मुताबिक यह संबंध पैबंद जोडऩे की तरह है जो शशिकला के बाहर आते ही फिर उधड़ सकता है. मद्रास विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन विभाग के अध्यक्ष प्रो. रामू मनिवन्नान कहते हैं, ''यह मेल-मिलाप इस एहसास से हुआ है कि सत्ता बनाए रखने के लिए जरूरी है. इससे बढ़कर यह है कि उन पर भाजपा की ओर से दबाव पड़ा, जो राज्य में अपने भविष्य के लिए फिलहाल अन्नाद्रमुक का बने रहना जरूरी मानती है.''
अगर शुरुआती दौर में तब के सूचना-प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडु और बाद में एक जमाने में प्रतिष्ठित पत्रिका तुगलक के मौजूदा संपादक, आरएसएस के विचारक एस. गुरुमूर्ति ने कुछ समझाने-धमकाने की जोड़तोड़ नहीं शुरू की होती तो शायद पलानीस्वामी-पनीरसेल्वम के बीच मेल-मिलाप सपना ही बना रहता. हालांकि राज्य में भाजपा का कोई विधायक नहीं है और सिर्फ एक सांसद है (जो केंद्रीय मंत्री भी है) लेकिन उसे उम्मीद है कि आगे चलकर राज्य की सियासी जमीन उसके लिए उर्वर है. भाजपा यह भी चाहती है कि अन्नाद्रमुक एक रहे, ताकि लोकसभा और राज्यसभा में उसके संख्याबल का उसे लाभ मिल सके. अन्नाद्रमुक के 37 लोकसभा सदस्यों और 13 राज्यसभा सदस्यों का समर्थन एनडीए सरकार के लिए बहुत काम का होगा.
अन्नाद्रमुक के दोनों धड़ों के मिलने से भाजपा की खुशी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ट्वीट करके बधाई दी. यही नहीं, राज्यपाल सी. विद्यासागर राव ने शपथ-ग्रहण के दौरान राजभवन में पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम के हाथ मिलाने की रस्मअदायगी फिर करवाई.
इसके अलावा अन्नाद्रमुक नेताओं को भी एहसास है कि चुनाव जितवाने वाले नेता के अभाव में वे सरकार ढंग से नहीं चला पाए तो राजनैतिक भविष्य संकट में होगा. राज्य में वरदा तूफान के दौरान सतर्कता और उसके बाद राहत कार्य की पनीरसेल्वम सरकार के प्रयासों की काफी सराहना हुई थी. उनकी उम्मीद यह भी है कि उन्हें चुनाव आयोग से दो पत्तियों वाला चुनाव चिन्ह वापस मिल जाए, ताकि उनकी पहचान एमजीआर के दौर की पार्टी के तौर पर हो.
दूसरा खतरा शशिकला धड़े की ओर से है, जो अभी कमजोर तो दिख रहा है लेकिन अभी खेल से बाहर नहीं है. शशिकला की गैर-मौजूदगी में दिनकरण की अगुआई वाले इस धड़े को 18 विधायकों का समर्थन है. इसका मतलब है कि पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम के हाथ मिलाने के बावजूद सरकार अल्पमत में है.
उधर, द्रमुक विपक्ष के 98 विधायकों के साथ 'जनविरोधी सरकार' को गिराने का अभियान शुरू कर चुकी है. हालांकि विपक्ष शायद अविश्वास प्रस्ताव न ले आए क्योंकि इससे अन्नाद्रमुक में एकता कायम हो सकती है. असली परीक्षा जयललिता की मौत से खाली हुई चेन्नै की आर.के. नगर सीट पर उपचुनाव में हो सकती है.
बहरहाल, द्रमुक के अलावा भाजपा का गणित भी यही हो सकता है कि राज्य में अगला चुनाव राष्ट्रपति शासन में कराया जाए. इसलिए अन्नाद्रमुक के लिए यह मिलन अंतिम नहीं है.