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क्या आप जानते हैं कि थल, जल और नभ सेना क्यों अलग-अलग सैल्यूट करती हैं...

क्या आप सेना की अलग-अलग सेवाओं, जैसे थल, जल और नभ द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले डिफरेंट सैल्यूट स्टाइल के बारे में जानते हैं? जी हां, इनका सैल्यूट करने का तरीका अलग होता है...

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विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 5:21 PM IST

सैल्यूट वैसे तो किसी भी शख्स द्वारा दूसरे शख्स को सलाम करना, अभिनन्दन करना और अभिवादन करना है लेकिन सेना के अलग-अलग पेशेवर सेवाओं जैसे थल, जल और नभ में इसके अलग-अलग मायने और संदर्भ हैं. हो सकता है कि आपको सेना के अलग-अलग सेवाओं में किए जाने वाले सैल्यूट आपको एक ही लगते हों लेकिन उनमें काफी फर्क होता है.

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आप हमारी सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सैल्यूट के तौरतरीकों को जान कर समान रूप से अचंभित और गर्वान्वित होंगे.

1. इंडियन आर्मी - खुले पंजों से सामने वाले को सैल्यूट करना
हम सभी ने आर्मी के अफसरों और जवानों को कहीं न कहीं सैल्यूट करते देखा होगा. वे खुले पंजों से और दाहिने हाथ से सैल्यूट करते हैं. सारी उंगलियां सामने की ओर खुली और अंगूठा साथ में लगा हुआ. यह अपने से सीनियर और मातहत के प्रति सम्मान प्रकट करने का जरिया है. साथ ही यह भी बताता है कि अगले के हाथ में किसी तरह का कोई हथियार नहीं है.


2. इंडियन नेवी - खुली हथेली जो जमीन की ओर इंगित होती है
इंडियन नेवी में सैल्यूट के लिए हथेली को सिर के हिस्से से कुछ इस तरह टिका रखा जाता है कि हथेली और जमीन के बीच 90 डिग्री का कोण बने. इस सैल्यूट के पीछे एक बड़ी वजह नेवी में कार्यरत नाविकों और सैनिकों के जहाज पर काम करने की वजह से गंदी हो गई हथेलियों को छिपाना है. जहाज पर काम करने की वजह से कई बार उनके हाथ ग्रीस और तेल से गंदे हो जाते हैं.

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3. इंडियन एयर फोर्स - खुली हथेली जो जमीन से 45 डिग्री को कोण बनाती है
साल 2006 के मार्च माह में इंडियन एयर फोर्स ने अपने कर्मियों के लिए सैल्यूट के नए फॉर्म तय किए. वे अब कुछ इस तरह सैल्यूट करते हैं कि हथेली जमीन से 45 डिग्री का कोण बनाती है. यह आर्मी और नेवी के बीच का सैल्यूट कहा जा सकता है. इससे पहले एयर फोर्स के सैल्यूट का तौर-तरीका भी आर्मी की ही तरह था.


इसके अलावा हम आपको यह भी बताते चलें कि सेना के किसी भी पदाधिकारी के लिए सैल्यूट करने के दौरान बैरेट या कैप पहनना न्यूनतम शिष्टाचार माना जाता है, और हम-आप इसे अब तक एक प्रतीकात्मक जेस्चर मानते रहे हैं.

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