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कोरोना वायरस के बदलते तेवर से हैरान डॉक्टर

कोरोना संक्रमण के तीसरे फेज में वायरस के लगातार बदल रहे तेवरों ने चिकित्सकों को हैरान कर दिया है. मरीजों में कोरोना जांच बार-बार निगेटिव से पॉजिटिव और पॉजिटिव से निगेटिव हो रही है.

कोरोना वायरस की माइक्रोस्कोप से ली गई तस्वीर (फोटोः एपी) कोरोना वायरस की माइक्रोस्कोप से ली गई तस्वीर (फोटोः एपी)
आशीष मिश्र
  • लखनऊ,
  • 11 जून 2020,
  • अपडेटेड 11:37 AM IST

दिल्ली से आए एक बुजुर्ग की तबियत खराब होने पर 27 मई को कानपुर के हैलट अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया था. उनकी कोरोना जांच निगेटिव आई. दो दिन बाद वे डिस्चार्ज हो गए. एक जून को फिर बुजुर्ग की हालत बिगड़ी तो उन्हें लखनऊ के पीजीआइ में भर्ती कराया गया, वहां जांच कोरोना पॉजिटिव निकली और उनकी मौत हो गई. इसी तरह 23 मई को एक गर्भवती महिला कानपुर के डफरिन अस्पताल में भर्ती हुई थीं. 24 मई को ऑपरेशन के जरिए उसका प्रसव कराया गया. 25 मई को उस महिला की कोरोना जांच निगेटिव आई. 27 मई को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया. 1 जून को दोबारा उनकी हालत बिगड़ी, तो परिजन उसे लेकर डफरिन अस्पताल पहुंचे. फिर 5 जून को उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई. महिला को कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

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कोरोना संक्रमण के तीसरे फेज में वायरस के लगातार बदल रहे तेवरों ने चिकित्सकों को हैरान कर दिया है. मरीजों में कोरोना जांच बार-बार निगेटिव से पॉजिटिव और पॉजिटिव से निगेटिव हो रही है. इससे इलाज के मैनेजमेंट को लेकर भ्रम की स्थिति बन रही है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कोरोना संक्रमण के नए ट्रेंड या पैटर्न को लेकर खासे हलकान हैं. अधिकारियों को कई ऐसे मरीज मिले हैं जो भ्रम की स्थिति में गंभीर हो गए. कानपुर के डफरिन के निदेशक डॉ. वीबी सिंह कहते हैं कि एक प्रसूता की जांच रिपोर्ट से खुद वह हैरत में हैं. भर्ती होने के 14वें दिन रिपोर्ट पॉजिटिव मिली जबकि पहले रिपोर्ट निगेटिव थी.

कानपुर मंडल के अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉ. आरपी यादव कहते हैं, “कुछ जटिल केसों का अध्ययन किया जा रहा है जिसमें यह बात सामने आई है कि संक्रमण का पता लगाना काफी मुश्किल हो रहा है. यह मानकर चला जाता है कि सभी रिपोर्ट सही है मगर विरोधाभासी रिपोर्ट से कुछ शंका पैदा हुई है.” संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के मॉलीक्यूलर मेडिसिन ऐंड बायोटेक्नोलाजी विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. मदन मोहन गोडबोले का अनुमान है कि कोरोना वायरस अपनी कमजोर स्थिति में पहुंच रहा है भले ही इसका प्रकोप और मरीजों की संख्या बढ़ेगी लेकिन इससे मौतें उतनी नहीं होंगी. डॉ. गोडबोले के मुताबिक, अगर हम इवोल्यूशन थ्योरी या वायरस के उत्क्रांति सिद्धांत पर गौर करेंगे तो कम परेशान होंगे.

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दरअसल, वायरस को दो तरह से देखा जा सकता है. एक वह वायरस जो ज्यादा खतरनाक और जानलेवा है और दूसरा वह जो कम खतरनाक है. खतरनाक वायरस का प्रसार कम लोगों तक होता है और उसकी प्रतिस्पर्धा कम खतरनाक वायरस से होती है. डॉ. गोडबोले के मुताबिक, कम खतरनाक वायरस अपना अस्तित्व बचाने के लिए खतरनाक वायरस पर हावी हो जाते हैं. इसके बाद केवल कम खतरनाक वायरस ही बचता है भले ही उसके संक्रमण के प्रसार की तादाद ज्यादा मरीजों में दिखे लेकिन वह ज्यादा नुक्सान नहीं करता है. एक बार शरीर में दाखिल होने के बाद वह लोगों में इम्युनिटी भी पैदा करता है. इससे भविष्य में वायरस निष्प्रभावी हो जाते हैं.

इवोल्यूशन थ्योरी कहती है कि इस प्रतिस्पर्धा में कम खतरनाक वायरस इसलिए जीत जाता है कि वह ज्यादा दिनों तक अपना भोजन बचाना चाहता है. उसका भोजन मनुष्य और पशुओं पर ही निर्भर है और वह नहीं चाहता कि भोजन समाप्त हो जाए. इस वजह से कम खतरनाक वायरस ज्यादा प्रसार होने के बावजूद लोगों को मारता नहीं है.

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