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क्या एनआरसी की जरूरत है?

जहां तक असम की एनआरसी की बात है, उस पर 10 साल में 1,000 करोड़ रु. बहा दिए गए और नतीजा सिफर रहा, भारत में करीब 50 लाख आप्रवासी ऐसे हैं जो विदेश में जन्मे हैं

इलस्ट्रेशनः तन्मय चक्रवर्ती इलस्ट्रेशनः तन्मय चक्रवर्ती
संध्या द्विवेदी
  • नई दिल्ली,
  • 01 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 5:29 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में भाजपा की एक रैली में जमा भीड़ से कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) कथित शहरी नक्सलियों की ओर से उड़ाई गई अफवाह है. गृह मंत्री अमित शाह बार-बार घुसपैठियों का जिक्र करते रहे हैं जो कम-से-कम थोड़े वक्त के लिए सरकार की किसी असल नीति में नहीं दिखा.

जहां तक असम की एनआरसी की बात है, उस पर 10 साल में 1,000 करोड़ रु. बहा दिए गए और नतीजा सिफर रहा. उलटे हर किसी में असंतोष रहा. उस मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का महज पालन कर रही थी. लेकिन आखिरकार भारत में कितने अवैध आप्रवासी हैं? सरकार इसका कोई आंकड़ा पेश करना नहीं चाहती. 2001 की जनगणना के मुताबिक, भारत में करीब 50 लाख आप्रवासी ऐसे हैं जो विदेश में जन्मे हैं. इनमें संभवत: वैध और अवैध दोनों तरह के लोग शामिल हैं.

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वहीं यूपीए और एनडीए के विभिन्न मंत्रियों ने अवैध आप्रवासियों की संख्या 120 लाख से 250 लाख होने का दावा किया है. ऐसा लगता है कि सही आंकड़ा पेश करने की बजाए राजनेताओं ने अवैध घुसपैठियों के नाम पर बस हौवा खड़ा किया और डर फैलाया है. विडंबना तो यह कि प्रधानमंत्री ने एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया है.

52,40,960

विदेशों में जन्मे भारतीय निवासियों की संख्या विश्व बैंक ने 2015 में बताई थी जो  कुल आबादी का 0.4' थी. वहीं ऐसे 59.2 लाख लोग 2005 में, 69.5  लाख लोग 1995 में, 81.3 लाख लोग 1985 में, 90.1 लाख लोग 1975 में, 93.5 लाख लोग 1965 में भारत में थे

23,04,435

लोग ऐसे थे जिनका अंतिम निवास 2011 की जनगणना के मुताबिक, बांग्लादेश था. यह संख्या 2001 के आंकड़े (3,084,826) से 780,391 और कम थी. 1991 के पहले से ऐसे 17.6 लाख लोग भारत में रह रहे थे

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7,09,725

लोगों ने बताया कि उनका अंतिम निवास स्थान पाकिस्तान था. यह संक्चया 2001 के आंकड़े (9,97,106) से 2,87,381 कम थी. 2011 की जनगणना के अनुसार, 6,476 अफगानी आप्रवासी भारत में थे और यह संख्या 2001 के 9,194 से कम थी

2 करोड़

बांग्लादेशी अवैध आप्रवासी भारत में रहते हैं, 2016 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने बताया था. यह आंकड़ा यूपीए सरकार के 2004 के 1.2 करोड़ के आंकड़े से अधिक था. बाद में सरकार ने आंकड़े को वापस ले लिया था

51

अवैध बांग्लादेशी आप्रवासियों को 2017 में बांग्लादेश भेजा गया और यह जानकारी मार्च, 2018 में सरकार ने दी. 2016 में 308, 2015 में 474, 2014 में 989 और 2013 में 5,234 को वापस भेजा गया

19,06,657

लोग 31 अगस्त, 2019 को आई असम की एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर थे. सरकार का आकलन है कि 50 लाख से अधिक अवैध आप्रवासी रह रहे हैं. 5 से 7 लाख बंगाली मुस्लिम और उतनी ही संख्या में बंगाली हिंदू थे. हिंदुओं को सीएए के माध्यम से नागरिकता दी जा सकती है

1,220 करोड़ रु.

अकेले असम की एनआरसी तैयार करने में खर्च हुए, ऐसा मीडिया रिपोट्र्स बताती हैं. राज्य सरकार के 52,000 अधिकारियों को इस काम में लगाया गया, गुवाहाटी के राज्य कॉर्डिनेटर के ऑफिस के मुताबिक

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5,00,000+

अकेले बिहार के हिंदीभाषी आप्रवासी बांग्लादेश में रहते और काम करते हैं, ऐसा स्थानीय अखबारों की खबरों के मुताबिक

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