Advertisement

महाराष्ट्रः राहत का सूखा

महाराष्ट्र भयंकर सूखे की मार झेल रहा है और सरकारी उपाय एक के बाद एक नाकाम साबित हो रहे.

किरण डी. तारे
  • नासिक,
  • 18 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST

तालाब निर्माण योजना की समीक्षा के लिए 28 मार्च को बुलाई गई एक बैठक में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस कृषि विभाग के अफसरों पर भड़के हुए थे और उन्हें हिदायत दे रहे थे, “किसानों से रिश्वत खाने के चक्कर में उनका उत्पीडऩ मत कीजिए.” उन्होंने चेतावनी दी, “इस योजना को कामयाब होना ही है.” राज्य में सूखे की बिगड़ती हालत और मंत्रालय की सातवीं मंजिल पर स्थित अपने वॉररूम में बैठी टीम की प्रतिक्रियाओं से युवा मुख्यमंत्री आहत हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से सूचना जुटाकर मुख्यमंत्री तक इसे पहुंचाने का जिम्मा आइटी स्नातकों की एक टीम के पास है, जिनकी संख्या करीब 20 है.

साल भर हो गया, जब मुख्यमंत्री ने महत्वाकांक्षी जलयुक्त शिवार अभियान (जेएसए) का लोकार्पण किया था. इसका उद्देश्य साल भर में महाराष्ट्र के 5,000 गांवों को सूखे से मुक्त करना था और समूचे राज्य से 2019 तक सूखे को खत्म कर देना था. इसके अंतर्गत वॉटरशेड का विकास, भूजलस्तर में वृद्धि, जलस्रोतों से गाद हटाना और उनका विकेंद्रीकरण, सिंचित क्षेत्र में इजाफा करना, जलधाराओं को गहरा और चौड़ा बनाना, मिट्टी और सीमेंट के चेकडैम बनाना और खेतों में तालाब खोदना शामिल था.

तैयारी तो खासी दिख रही थी, लेकिन सूखे की खबरें और भयावह होती जा रही थीं. महाराष्ट्र पिछले 100 साल में सबसे बुरे समय से गुजर रहा है. विधानसभा में 17 मार्च को पेश किए गए राज्य के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, 2015 में राज्य में कुल बारिश राष्ट्रीय दर का 59.4 फीसदी रही, जो कम थी. यह लगातार दूसरा कम बारिश वाला साल था. 2015 में खरीफ  की फसल कुल 141.46 लाख हेक्टेयर जमीन में बोई गई. यह 2014 से 6 फीसदी कम थी. इसमें से 98.6 लाख हेक्टेयर की फसल सूखे की चपेट में आ गई.

फिलहाल, सूखे की सबसे बुरी मार झेल रहा लातूर अलग-अलग कारणों से खबरों में है. यहां पानी भरे जाने वाले क्षेत्रों में धारा 144 लागू है तो मिराज नाम की ट्रेन सांगली से 302 किलोमीटर की दूरी तय करके यहां 10 वैगन पानी लेकर पहुंची है. हर वैगन की क्षमता 50,000 लीटर है. इस दौरान बंबई हाइकोर्ट ने यह सवाल पूछकर बीसीसीआइ को शर्मिंदा कर दिया है कि राज्य जब सूखे के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में वह आइपीएल मैचों में पिचों को हरा रखने के लिए 60 लाख लीटर पानी कैसे बर्बाद कर सकता है.

दिसंबर, 2015 में महाराष्ट्र को केंद्रीय सहायता के बतौर 3,049 करोड़ रु. की राशि मिली थी, जो किसी भी राज्य से ज्यादा थी. राज्य का दावा है कि उसने जेएसए के पहले वर्ष में 1,400 करोड़ रु. खर्च कर दिया है. फडऩवीस ने कई उपायों की घोषणा भी की है (देखें ग्राफिक). जिन किसानों की 33 फीसदी फसल बरबाद हुई है, वे अब मुआवजा पाने के योग्य हो गए हैं. पहले यह शर्त 50 फीसदी फसल की बर्बादी पर लागू थी. इस संशोधन से 25 फीसदी अतिरिक्त किसान मुआवजे के दायरे में आ गए हैं. विधानसभा के अपने संबोधन में राज्यपाल सी. विद्यासागर राव ने बताया कि राज्य सरकार ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए 10,000 करोड़ रु. के अनुदान जारी करने का फैसला लिया है. यह राशि जल संरक्षण परियोजनाओं के लिए जिम्मेदार केंद्रीय एजेंसी महाराष्ट्र राज्य जल संरक्षण निगम के माध्यम से भेजी जाएगी.

सवाल है, इतना कुछ करने के बावजूद हालात में कोई सुधार क्यों नहीं हो रहा? पहली बात तो यह है कि जेएसए योजना के परिणाम दिखने के लिए जरूरी है कि इस बार मॉनसून अच्छा हो. बाकी जमीनी हालात जानने के लिए इंडिया टुडे  ने अहमदनगर, बीड, लातूर और उस्मानाबाद जिलों का दौरा किया. प्रस्तुत है आंखों देखा हालः

गरीबी के तालाब
अहमदनगर जिले के संगमनेर तालुके का केर गांव जल संरक्षण परियोजनाओं के लिए जेएसए के अंतर्गत सूचीबद्ध है. यहां अब तक इस दिशा में केवल इतना ही काम हुआ है कि गड्ढे खोद दिए गए हैं. यहां 40 एकड़ जमीन के मालिक सुनील गुंजाल फडऩवीस को नहीं, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को धन्यवाद देते हैं. उनकी उम्मीद जेएसए पर नहीं, नासिक-पुणे राजमार्ग के चौड़ीकरण पर टिकी है, जिसके किनारे उनकी जमीन आती है. एक अन्य किसान सयाजी जाधव कहते हैं कि एक तालाब के लिए 50,000 रु. का सरकारी अनुदान पर्याप्त नहीं है. “एक लाख लीटर की क्षमता वाला एक तालाब खोदने में पांच लाख रु. का खर्च आता है. हम जेसीबी मशीनों को 2,000 रु. प्रति घंटा भुगतान करते हैं. यह अनुदान दो लाख रु. का होना चाहिए.”

उम्मीद है कि इस महीने के अंत तक खेतों में तालाब वाली इस योजना को अंतिम रूप दे दिया जाएगा. इसके लिए ऑनलाइन आवेदन जमा करने की अंतिम तारीख 14 अप्रैल थी. करीब 70,000 किसानों ने अब तक आवेदन किया है, लेकिन सरकार का कहना है कि सिर्फ  50,000 किसानों को ही चुना जाएगा. इस काम के लिए 250 करोड़ रु. सुरक्षित रख दिए गए हैं.

सिंचाई विशेषज्ञ और राज्य योजना बोर्ड के पूर्व सदस्य एच.एम. देसरदा इस योजना को “लोकरंजक” बताते हैं. वे कहते हैं, “सरकार को लगता है कि जेएसए और तालाब के नाम से अलादीन का चिराग उसके हाथ लग गया है. जेएसए के तहत हो रहा काम वैज्ञानिक और एकीकृत नहीं है. वैज्ञानिक तरीका यह है कि एक वॉटरशेड किसी पहाड़ के शिखर से नीचे की ओर विकसित किया जाता है. सरकार उलटा कर रही है. जेएसए में खोदे गए गड्ढे कटान के चलते मॉनसून में मिट्टी से भर जाएंगे.” वॉटरशेड ऐसे बनाया जाना चाहिए कि बारिश का पानी कुछ घंटों में नहीं, छह महीने में नदी या झील तक पहुंच सके.

महाराष्ट्र जल और सिंचाई आयोग के प्रमुख रह चुके माधवराव चिताले दूसरी राय रखते हैं. वे कहते हैं, “जेएसए के तहत दो लक्ष्य रखे गए हैः जल का भंडारण और रिसकर नीचे जाना. अगर बांध बनाने का काम सफाई से किया गया तो दोनों लक्ष्य हासिल हो सकते हैं.”

मवेशी शिविर का विवाद

आबाजी पाटील ग्रामीण विकास प्रतिष्ठान नामक एनजीओ के चेयरमैन अशोक पवार बीड जिले की अष्टी तालुका के वातनवाड़ी में 2 फरवरी से 1,100 मवेशियों का एक शिविर चला रहे हैं. उनके मुताबिक, उनका एनजीओ रोजाना एक लाख रु. जानवरों के पानी और चारे पर खर्च करता है. सरकार ऐसे मवेशी शिविर चलाने वाली संस्थाओं को “बड़े मवेशी” के लिए 63 रु. और “छोटे मवेशी” के लिए 32 रु. की दर से भुगतान करती है. इस तरह इस काम के लिए कुल 530 करोड़ रु. आवंटित किए गए हैं. ऐसे शिविर खोलने के लिए किसी भी संस्था को 38 शर्तें पूरी करनी होती हैं, जिसमें पांच लाख रु. सिक्योरिटी रकम के तौर पर जमा कराया जाना भी शामिल है. पवार कहते हैं, “सरकार ने अब तक फंड जारी नहीं किया है. हमें रोज निजी वेंडरों से चारा खरीदना पड़ रहा है.”

राजस्व मंत्री एकनाथ खड़से के विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि मवेशी शिविरों में घोटाले के संदेह के चलते अनुदान जारी नहीं किया गया है. कुल 118 गांवों वाले अष्टी तालुके में 116 मवेशी शिविर हैं. फरवरी में खड़से की अगुवाई वाली कैबिनेट की एक उपसमिति ने उस्मानाबाद, बीड और लातूर के चारा शिविरों को बंद करने का निर्देश दिया था क्योंकि वहां अगले तीन माह के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध था. इस निर्देश के चलते खड़से और फडऩवीस के बीच मनमुटाव हो गया. बाद में खड़से ने कहा कि इस फैसले की समीक्षा की जा सकती है.

टैंकर की दिक्कत
मार्च के आखिरी सप्ताह में उस्मानाबाद जिले के येदाशी गांव में दौरे पर आए शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े के ऊपर एक कार्यकर्ता ने बोतल फेंक दी थी. वहां के लोग इसलिए नाराज थे क्योंकि उनके गांव में पानी का टैंकर आधी रात के बाद आता था. इसके बाद समय बदल दिया गया, लेकिन 4 अप्रैल को टैंकर जब 12,000 लीटर पानी लेकर दिन के 11 बजे वहां पहुंचा तो केवल सात मिनट के भीतर खाली हो गया. गांव वाले टैंकर पर चढ़ गए और उन्होंने पाइपों से अपने बरतन भरे. उपसरपंच गजानन नलावड़े कहते हैं, “हमें हफ्ते में एक बार पानी मिलता है और इसकी सूचना केवल घंटे भर पहले दी जाती है.” दिलचस्प बात यह है कि 30,000 की आबादी वाले उस्मानाबाद के इस सबसे बड़े गांव में दो साल पहले तक पानी चौबीसों घंटे आता था. तेरना बैराज से ग्राम पंचायत तक एक सीधी पाइपलाइन थी. बैराज सूख गया तो पाइपलाइन भी बेकार हो गई.

सबके लिए मुफ्त अनाज?
उस्मानाबाद जिले के दहीफल निवासी सतीश हवाले बताते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अनाज ले जा रहे ऐसे 17 ट्रक उन्होंने पकड़े जो खुले बाजार में अनाज की कालाबाजारी कर रहे थे. वे कहते हैं, “दुकानदार खुले बाजार में गेहूं 18 रु. और चावल 14 रु. किलो की दर से बेचते हैं.” सस्ते गल्ले की सरकारी दुकानों पर चावल और गेहूं क्रमशः 3 और दो रु. किलो की दर से बिकता है. खेतिहर मजदूर भी सब्सिडी पर मिला आधा अनाज व्यापारियों को बेच देते हैं और उसके बदले में उन्हें गेहूं के लिए 14 रु. और चावल के लिए 12 रु. किलो की दर से भुगतान किया जाता है. एक लाभार्थी को महीने में पांच किलो गेहूं और तीन किलो चावल मिलता है.

कर्ज का सिलसिला
राज्य में किसानों पर कुल कर्ज अनुमानतः 10,000 करोड़ रु. का है. फडऩवीस ने कहा था कि वे पांच लाख किसानों को कर्जमुक्त कर देंगे. हालांकि विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे की आरटीआइ में मांगी गई एक जानकारी में पता चला है कि फरवरी के अंत तक केवल 1,69,907 किसानों को ही लाभ मिला है.

मुंडे कहते हैं, “आश्चर्य की बात है कि सूखे से सबसे बुरी तरह प्रभावित लातूर, उस्मानाबाद और बीड जिलों में एक भी किसान को लाभ नहीं मिला है. परभणी और हिंगोली में क्रमशः 40 और 57 किसान कर्जमुक्त हो सके हैं. इसके उलट, अधिकतर लाभ विदर्भ के किसानों को मिला है जो फडऩवीस का क्षेत्र है.”

नकद संकट के चलते मराठवाड़ा में अवैध सूदखोरों का चलन बढ़ा है. जिला मुख्यालय जालना के बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र ढोका बताते हैं कि ब्याज दर 20 फीसदी तक जा चुकी है. उन्हीं के शब्दों में, “किसान कर्ज की राशि से जुआ खेल रहे हैं.” लातूर के एक किसान जीवाजीराव पाटील इस बात का खंडन करते हैं, “बमुश्किल 100 में तीन किसान इस तरह के होंगे.”

खड़से मानते हैं कि सरकार सूखे की स्थिति को नियंत्रण में ले चुकी है. वे कहते हैं, “हर संभव स्रोत से पानी उपलब्ध कराया जा रहा है. हमने बागबानी के लिए 16,000 रु. प्रति हेक्टेयर का मुआवजा घोषित किया है. हम खुदकुशी करने वाले किसान को  बिना शर्त और बिना जांच के एक लाख रु. देंगे.”

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement