
अब दिल्ली विश्वविद्यालय के भीतर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए हिन्दी की परीक्षाएं पास करना अनिवार्य कर दिया गया है. बीते गुरुवार विश्वविद्यालय में जारी सर्कुलर के हवाले से कहा गया कि वैसे स्टूडेंट जिन्होंने 8वीं तक हिन्दी भाषा नहीं पढ़ी है तो उनके लिए यह अतिआवश्यक कर दिया गया है.
हिन्दी डिपार्टमेंट ने इसके बाबत विश्वविद्यालय के तमाम कॉलेजों के प्रिंसिपलों को ऐसे स्टूडेंट चिन्हित करने और इन परीक्षाओं के लिए तैयार करने की बात कही है. इस कोर्स को उन्होंने कंपल्सरी टेस्ट हिन्दी (CTH) का नाम दिया है. इस कोर्स को एकेडमिक काउंसिल ने जुलाई माह में प्रस्तावित किया था.
पहले हिन्दी नहीं थी अनिवार्य...
विश्वविद्यालय में पिछले वर्ष से शुरू किए गए Choice Based Credit System (CBCS) में हिन्दी अनिवार्य विषय नहीं थी. काउंसिल ने विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन कर रहे तमाम स्टूडेंट्स को हिन्दी सिखाने के लिए CBCS सिलेबस में ऐसे बदलाव किए हैं. वे चाहते हैं कि सारे स्टूडेंट बेसिक हिन्दी जान लें.
ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि यह हिन्दी टेस्ट विश्वविद्यालय में नए विवाद को जन्म देगा. विश्वविद्यालय में देश के ऐसे हिस्सों से भी स्टूडेंट आते हैं जिनके लिए शुरुआती दौर में हिन्दी पढ़ने की अनिवार्यता नहीं होती. पूर्वोत्तर भारत के स्टूडेंट्स ने ऐसे में विरोध की बातें भी कही हैं.
इस टेस्ट को अनिवार्य बनाने के सवाल पर पूर्वोत्तर भारत अंतर्राष्ट्रीय सॉलिडेरिटी फोरम (NFIS) से सम्बद्ध चिंगलेन खुमुकछम कहते हैं कि विश्वविद्यालय के भीतर ऐसे टेस्ट को अनिवार्य बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है. यह टेस्ट वैसे स्टूडेंट्स व जनसमूहों पर अतिरिक्त भार है जो हिन्दी नहीं बोलते.
इससे पहले जब साल 2013 में विश्वविद्यालय के भीतर हिन्दी और आधुनिक भारतीय भाषाओं के लागू होने की बात कही गई थी. तब भी पूर्वोत्तर राज्यों के स्टूडेंट्स ने विरोध जताया था.
इस पूरे मामले पर आर्यभट्ट कॉलेज के प्रिंसिपल मनोज सिन्हा कहते हैं कि डिपार्टमेंट ने उन्हें इस सिस्टम को लागू करने के लिए कई बार कहा है. हालांकि, सारे कॉलेज इसे तब तक लागू नहीं करेंगे जब तक वे रजिस्ट्रार से नोटिफिकेशन नहीं पा जाते.