
लॉकडाउन के दौरान साहित्य आज तक इस बार डिजिटल अंदाज में जनता के सामने आया है. शुक्रवार को कई दिग्गजों ने ई-साहित्य आज तक में समसामयिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए. इसी क्रम में मॉड्रेटर श्वेता सिंह ने दिग्गज राइटर जावेद अख्तर के साथ बातचीत की. जावेद अख्तर ने कोरोना काल में बिगड़ते माहौल से लेकर अपने बचपन की यादों और अपने संघर्ष तक पर बातचीत की.
जावेद अख्तर ने बताया कि लॉकडाउन में वह किताबें पढ़कर, कुछ लिखकर या कभी-कभी OTT प्लेटफॉर्म पर कुछ न कुछ देखकर वक्त काट लेते हैं. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इस माहौल में बहुत से लोग बुरी तरह जूझ रहे हैं. जावेद अख्तर ने कहा कि देश में बहुत से लोगों के साथ ये दिक्कत है कि वो सब कुछ सरकार पर डाल देते हैं लेकिन हिंदुस्तान की खूबसूरती ये है कि जब भी वक्त बिगड़ता है लोग एक दूसरे की मदद को आगे आते हैं.
लॉकडाउन में मीलों तक पैदल अपने घरों को जा रहे गरीब लोगों का उदाहरण देते हुए जावेद अख्तर ने बताया कि जब वो कस्बों, गांवों और शहरों से गुजरते हैं तो लोग खुद ही आगे आकर उनकी मदद करते हैं. जावेद ने मुंबई फ्लड का उदाहरण देते हुए कहा कि तब भी लोगों ने घरों से बाहर आकर एक दूसरे की मदद की थी. जावेद ने कहा कि तब भी लोग अपने घरों से बाहर निकले थे और जो भी हो सकती थी जरूरतमंदों की मदद की थी. यही आज भी देखने को मिल रहा है.
बुरे वक्त पर गुरूर करना गलत
अपने स्ट्रगल और अपने गुजरे वक्त पर बात करने के सवाल पर जावेद अख्तर ने कहा कि देखिए जिस तरह लोग अपनी कामयाबी पर घमंड करने लगते हैं वो खराब काम है. उसी तरह हम कई बार अपने बुरे वक्त पर घमंड करने लगते हैं. जावेद ने कहा कि लोग अपने बुरे वक्त के बारे में बहुत गर्व से बता रहे होते हैं. तो वो दरअसल ये बता रहे होते हैं कि देखो मैं कहां से कहां आ गया.
बुरा वक्त भी देखा है
जावेद ने कहा कि जहां तक इस सवाल की बात है तो हां मैंने भी बुरा वक्त देखा है. तमाम ज्यादा बुरी चीजें जो मेरे साथ हो सकती थीं वो मेरे साथ नहीं हुईं लेकिन फिर भी मैंने घर ना होना, सिर पर छत ना होना, दोपहर में खाना कहां मिलेगा जैसे हालातों का सालों तक सामना किया है. लेकिन मैं इस पर अगर इतराऊं तो ये गलत होगा. इस पर ये सोचना कि मेरे साथ ऐसा हुआ.
आज के दौर में युवाओं को संदेश
वर्तमान में देश की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ी हुई है. करोड़ों लोगों के धंधे ठप्प हो गए हैं और वो किसी तरह अपना गुजारा करने के लिए मजबूर हैं. जावेद अख्तर ने ऐसे लोगों के लिए कहा कि निगेटिव सोच ठीक नहीं होगी. जावेद ने लोगों को उत्साह देते हुए कहा कि हम हारते तब हैं जब हम कोशिश करना बंद कर देते हैं. जब तक कोशिश कर रहे हैं तब तक कहां हारे हैं हम.
किस तरह लिखी जाती हैं फिल्में और कविताएं
जावेद अख्तर ने श्वेता सिंह के साथ बातचीत में बताया कि किस तरह से एक फिल्म या एक गीत लिखा जाता है. जावेद अख्तर ने बताया कि जब किसी फिल्म के लिए आप कोई पात्र लिख रहे होते हैं तो वो बात आप नहीं दरअसल वो पात्र कह रहा होता है. इसी तरह अगर कोई गीत आप लिख रहे हैं तो वो आपकी कही हुई बातें नहीं हैं वो दरअसल उस किरदार की कही हुई बातें हैं जो आपको लगता है कि उसने कही होंगी और आप उन्हें शब्दों के जरिए गीत में पिरो देते हैं.
असिस्टेंट डायरेक्टर बनने का था सपना
जावेद अख्तर ने बताया कि वह बचपन में जब 8-10 साल के थे तो वह श्री 420 और उड़न खटोला जैसी फिल्में देखा करते थे. जावेद अख्तर ने कहा कि तब उन्हें नहीं पता था कि फिल्म में एक कहानी लिखने वाला, एक प्रोड्यूसर, एक डायरेक्टर, एक साउंड मैन और बाकी लोग भी होते हैं. उन्हें तो बस उस हीरो का पता था जो घोड़े पर बैठकर किले की दीवार पर चढ़ जाता था. जावेद ने बताया कि वह गुरुदत्त के फैन थे और उनके साथ काम करना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्य से जब तक वह सिनेमा में आए तब तक उनका निधन हो गया था. जावेद ने कहा कि वह इंडस्ट्री में असिस्टेंट डायरेक्टर बनने आए थे लेकिन उन्हें बार बार उनकी राइटिंग के लिए अप्रीशिएट किया जाता था जिसके चलते उन्होंने राइटिंग ट्राय करनी शुरू कर दी. फिर सलीम खान से एक फिल्म के दौरान जब उनकी मुलाकात हुई तो फिर धीरे धीरे समीकरण बदले और दोनों ने साथ काम करना शुरू कर दिया.
फरहान अख्तर दिखाते हैं अपनी स्क्रिप्ट
जावेद अख्तर ने बताया कि उनके बेटे फरहान अख्तर को वह तब तक कोई राय नहीं देते हैं जब तक उनसे राय मांगी नहीं जाती है. जावेद ने कहा कि हम अक्सर अपने बच्चों को पोस्ट बॉक्स समझ लेते हैं और हर वक्त उनको राय मश्वरे देते रहते हैं. जावेद ने कहा कि आपको ये मानना पड़ेगा कि आप अगर बच्चों को बहुत कुछ सिखा सकता है तो बच्चे भी आपको बहुत कुछ सिखा सकता है.
पहली बार इतने वक्त तक रहे साथ
जावेद अख्तर ने बताया, "मेरी और शबाना की शादी को 38 साल हो गए हैं लेकिन हमने 38 साल में साथ इतना वक्त साथ नहीं गुजारा जितना हमने लॉकडाउन के दौरान 60 दिन में गुजार लिया है. हमारे साथ ऐसा भी हुआ है कि हम दोनों एयरपोर्ट से अलग-अलग कहीं जा रहे हैं तो शबाना कपड़े लेकर एयरपोर्ट आ जाती थीं तो मैं कहीं चला जाता था और वो कहीं चली जाती थीं."