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नोटबंदी पर मनमोहन और मोदी से सिर्फ एक सवाल?

पूर्व प्रधानमंत्री ने सरकार के इस कदम को एतिहासिक भूल की संज्ञा दी. इस कदम से राष्ट्रीय आय में 2 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है लिहाजा प्रधानमंत्री को एक रचनात्मक मसौदा देने की जरूरत है. मनमोहन सिंह ने दावा किया कि लंबे अंतराल में हम गर्त में जा रहे हैं.

मनमोहन सिंह का नोटबंदी पर बयान मनमोहन सिंह का नोटबंदी पर बयान
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 7:59 AM IST

देश में नोटबंदी के आदेश के बाद पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया. मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार ने बिना किसी तैयारी के इस कदम को उठाया है जिससे आम आदमी की दिक्कतें बढ़ गई हैं. सिंह के मुताबिक इस कदम के दूरगामी परिणाम अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय और आने वाले दिनों में इसके असर से देश की आय में 2 फीसदी तक इजाफा दर्ज होना तय है. आइए जानते हैं कि नोटबंदी पर पूर्व प्रधानमंत्री ने क्या-क्या कहा. साथ ही देश में नोटबंदी से उपजे हालात पर अर्थशास्त्री की भी दलील सुनने के बाद आम आदमी क्या पूछ रहा है?

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1. मोदी की ऐतिहासिक भूल?
मनमोहन सिंह: मोदी सरकार का आतंकवाद और कालेधन का हवाला देते हुए नोटबंदी के कदम पर सहमति नहीं जताई. कहा कि नोटबंदी की प्रक्रिया लागू करने से बड़ी अफरा-तफरी पैदा हुई. पूर्व प्रधानमंत्री ने सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक भूल की संज्ञा दी. कहा कि इस कदम से राष्ट्रीय आय में 2 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है लिहाजा प्रधानमंत्री को एक रचनात्मक मसौदा देने की जरूरत है. मनमोहन सिंह ने दावा किया कि लंबे अंतराल में हम गर्त में जा रहे हैं.

एक्सपर्ट और आम आदमी
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि देशभर में इस फैसले के बाद से अफरा-तफरी का माहौल है. ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज का दावा है कि नोटबंदी के फैसले से शुरुआती दिनों में जीडीपी पर दबाव की स्थिति रहेगी. शुरू के कुछ वर्षों में सरकार की कमाई में गिरावट देखने को मिल सकती है. लेकिन मूडीज ने दावा किया है कि लंबे अंतराल में इस कदम से सरकार के राजस्व में बड़ा इजाफा संभव है. कुछ जानकार यह भी उम्मीद जता रहे हैं कि सरकार की बढ़ी हुई कमाई का सीधा असर देश में विकास कार्यों में तेजी के रूप में दिखाई देगी. वहीं जीडीपी को लेकर कई अर्थशास्त्रियों का अनुमान 3.5 फीसदी से लेकर 0.3 फीसदी तक गिरावट दर्ज होने का है. हालांकि मूडीज ने नोटबंदी के असर से ऐसी गिरावट की बात से इंकार किया है.

2. आम आदमी की मौत तय?
मनमोहन सिंह: नोटबंदी पर देश में आज दो राय है. आम आदमी को हुई दिक्कतों का खास ध्यान रखने की जरूरत थी. नोटबंदी का क्या असर पड़ेगा यह कोई नहीं जानता. मोदी जी के लिए 50 दिन का इंतजार करना बड़ी बात नहीं, लेकिन आम आदमी से कैसे 50 दिन इंतजार करने की बात कही जा सकती है क्योंकि पहले 15 दिन में ही 65 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

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एक्सपर्ट और आम आदमी
आम आदमी की सबसे बड़ी परेशानी है कि वह बीते वर्षों में अपनी पूरी जमापूंजी को बैंक के हवाले करता रहा. वह इस उम्मीद में था कि उसे जब भी जरूरत पड़ेगी वह अपना पैसा निकाल सकेगा. लेकिन हकीकत कह रही है कि आज सरकार के फैसले के बाद आम आदमी बैंक में रखे अपने पैसे को निकाल पाने में असमर्थ है. वहीं अर्थशास्त्रियों की दलील है कि नोटबंदी का यह फैसला तब तक अफरा-तफरी बनाए रखेगा जबतक रिजर्व बैंक पर्याप्त मात्रा में नई करेंसी को संचार में नहीं ले आता. इस फैसले का सीधा असर परिवार के खर्च और छोटे कारोबारियों पर पड़ रहा है. अभी तक वह पूरी तरह से कैश पर निर्भर था और आज उसके पास पड़ा कैश बेकार कर दिया गया है और नया कैश उसतक पहुंचने में वक्त लग रहा है. देश में खपत पूरी तरह से कैश पर निर्भर है. लिहाजा आम आदमी को डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल शुरू करने और कैश पर निर्भरता कम करने का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा.

बहरहाल ग्लोबल फाइनेनशियल एजेंसियां दावा कर रही हैं कि सरकार के इस कदम से लीगल कमाई करने वाली जनसंख्या को सिर्फ शुरुआती मुश्किल का सामना करना पड़ेगा और लंबे अंतराल में उन्हें इसका फायदा मिलेगा. वहीं दलील यह है कि इस कदम से गैरकानूनी कमाई करने वालों के लिए बुरी खबर है. परिवारों के पास गैरकानूनी तरीके से अर्जित की हुई संपत्ति डूब सकती है. लेकिन इन दावों से उलट आज हर वह आम आदमी जिसने 500 और 1000 की नोट में अपने लिए सुरक्षा की गारंटी रखी थी असुरक्षित महसूस कर रहा है. अब भले अस्पतालों में 65 की जगह सिर्फ 45 लोग ही करेंसी की दिक्कत के चलते मर चुके हैं, लेकिन यह 45 भी वही हैं जिनके पास 500 और 1000 की करेंसी में इलाज कराने का पैसा रखा था.

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3. बैंकों पर विश्वास की मौत?
मनमोहन सिंह: नोटबंदी के इस फैसले से लोगों का भारतीय रुपये और बैंकिग व्यवस्था पर विश्वास हमेशा के लिए उठ जाएगा. क्या प्रधानमंत्री एक भी ऐसे देश का हवाला दे सकते हैं जहां आदमी अपना पैसा तो जमा कर सकता है लेकिन उसे निकाल नहीं सकता.

एक्सपर्ट और आम आदमी

नोटबंदी के फैसले के बाद पेमेंट के डिजिटल माध्यमों की आई बाढ़ से बैंको को बड़ा फायदा पहुंचना तय है. ये सभी माध्यम बैंक की मध्यस्थता में काम करते हैं. वित्तीय जानकारों का दावा है कि नोटबंदी के बाद से बैंकों में डिपॉजिट 1-2 फीसदी बढ़ जाएगा. इस इजाफे से बैंकों को ब्याजदर घटाने का मौका मिल जाएगा जिससे उनकी कमाई बढ़ने के पूरे आसार हैं. वहीं कुछ एजेंसियां जैसे स्टैंडर्ड एंड पूअर (एस एंड पी) मानती हैं कि इस कदम से बैंकों का एनपीए बढ़ने का खतरा बढ़ गया है. लेकिन सवाल उस आदमी के पक्ष को जानने का है जो अभीतक बैंक में अपना पैसा इसलिए रखता था कि वह सुरक्षित रहे. सरकार के इस कदम के बाद उसका सबसे बड़ा डर यही है कि अब बैंकों में उसकी कमाई सुरक्षित नहीं है. आज इस फैसले ने आम आदमी के मन में बैंक के प्रति एक डर पैदा कर दिया है. देश में अधिकांश ट्रांजैक्शन (86 फीसदी) कैश के माध्यम से होता था और अब सरकार कैश के बजाए कैशलेस को तरजीह दे रही है. अब आम आदमी को नए नियमों के मुताबिक खुद को तैयार करने की मजबूरी सामने है. भले ही वह अनपढ़ हो उसे अब उस तकनीकि के भरोसे बैठना होगा जिससे वह अभीतक अछूता है. 

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4. कम हुई रिजर्व बैंक की गरिमा

मनमोहन सिंह: इस कदम से रिजर्व बैंक ने कड़ी आलोचनाओं का रास्ता खोल दिया है जो कि पूरी तरह से जायज है. वहीं बैंकों के लिए नए-नए निर्देशों को प्रधानमंत्री कार्यालय का हस्तक्षेप माना जाएगा और सवाल उसकी भूमिका पर भी उठेगा.

एक्सपर्ट और आम आदमी

ग्लोबल फाइनेनशियल संस्थाएं मान रही हैं कि इस कदम के बाद बैंको को अपने पुराने होम लोन और कार लोन की रिकवरी में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. यह बढ़ा हुआ एनपीए नोटबंदी की देन होगी. इस एनपीए के लिए रिजर्व बैंक को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा. हालांकि रिजर्व बैंक का यह कदम लंबे अंतराल में  बेहतर साबित होगा. अर्थव्यवस्था में कम करेंसी का संचार होगा. ज्यादातर ट्रांजैक्शन वर्चुअल होगा और नकली करेंसी पर लगाम लगी रहेगी. इससे केन्द्रीय बैंक का काम आसान हो जाएगा और देश में घरेलू और विदेशी बैंकों को संचालित करने में सहूलियत होगी.

लेकिन आम आदमी के लिए क्या रिजर्व बैंक और क्या सरकार. उसके लिए सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि उसके अपने बैंक की प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है और उसकी वित्तीय सुरक्षा के साथ राजनीति हो रही है. यह आंम आदमी वही है जिसके पास कालेधन का एक अंश भी नहीं है. जब अर्थव्यवस्था में कालेधन का अधिक संचार था तब भी वह पिस रहा था और आज जब इस संचार को खत्म करने की कोशिश का दावा किया जा रहा है तो पिस वही रहा है. सरकार के इस कदम पर देश और दुनिया का कोई अर्थशास्त्री यह गारंटी नहीं दे रहा है कि देश से कालाधन खत्म हो जाएगा और नया कालाधन इसकी जगह नहीं ले पाएगा. उसका तो बस एक ही सवाल है कि क्या इस कदम से देश में रखा सारा कालाधन बाहर आ गया और नहीं तो क्यों उसे इस मुसीबत से गुजरना पड़ रहा है?


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