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दिल्ली चुनावः उम्मीदवार बेलगाम, अब चुनाव आयोग की 'परंपरागत' सख्ती से नहीं चलेगा काम

दिल्ली विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग से परंपरागत चुनाव प्रचार के माध्यमों के अलावा गैर परंपरागत प्रचार माध्यमों पर भी सख्ती करने की मांग.

उम्मीदवारों पर चुनाव आयोग से लगाम लगाने की मांग उम्मीदवारों पर चुनाव आयोग से लगाम लगाने की मांग
संध्या द्विवेदी
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  • 28 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 4:45 PM IST

बदलते दौर में सियासी पार्टियां और उम्मीदवार तो अब परंपरागत चुनाव प्रचार के तरीकों से इतर आधुनिक तरीकों का बेलगाम इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन चुनाव आयोग लगाम लगाने के अपने पुराने तरीकों पर ही अटका है. ऐसे में आयोग की स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की कल्पना कैसे होगी साकार? दिल्ली चुनाव भी करीब हैं. ऐसे में इसी फर्क की तरफ ध्यान दिलाते हुए सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी ऐंड सिस्टमेटिक चेंज (सीएएससी) एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी डॉ.विक्रम सिंह ने अपने वकील डॉ. विराग गुप्ता के जरिए चुनाव आयोग को एक पत्र सौंपा है. इस पत्र में राजनीतिक पार्टियों की आइटी सेल्स, नियमों का उल्लंघन करती हुई बाइक रैलियों और रथ यात्रा, रोडशोज् पर लगाम लगाने का निवेदन किया गया है. उप चुनाव आयुक्त संदीप सक्सेना ने चुनाव आयोग की बैठक में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा करने का आश्वासन दिया है. पत्र में की गई मांग-

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1-राजनीतिक पार्टियों की आइटी सेल्स द्वारा पोस्ट की जाने वाली फर्जी और आपत्तिजनक खबरों पर चुनाव आयोग लगाम लगाए. रिप्रजेंटेशन ऑफ द पिपल एक्ट-1951 के तहत इस तरह के मामलों पर लगाम लगाने का प्रावधान मौजूद है. हाल ही में आई एमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्ट का हवाला भी पत्र में दिया गया है. रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा चुनाव-2019 के दौरान हरेक भारतीय महिला उम्मीदवारों ने रोजाना सौ आपत्तिजनक ट्वीट अपने ट्वीटर हैंडल के जरिए प्राप्त किए. ऐसे में सोशल मीडिया पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है. इतना ही नहीं पत्र में यह भी कहा गया है कि यह जगजाहिर है कि हरेक पार्टी की आईटी सेल है बावजूद इसके चुनाव आयोग ने इसमें खर्च होने वाले धन के ब्यौरे के बारे में जानकारी हासिल करने की शुरुआत नहीं की है जबकि 25 अक्तूबर 2013 को पहली बार चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर खर्च होने वाले धन का ब्यौरा इकट्ठा करने के लिए एक सूचना जारी की थी.

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2-सरकारी संसाधनों और कर्मचारियों का इस्तेमाल भी चुनाव प्रचार में किया जाना वर्जित है. लेकिन वर्तमान में ऑफिशियल हैंडल के जरिए धड़ल्ले से चुनाव प्रचार किए जा रहे हैं.

3-राजनीतिक पार्टियों की आइटी सेल्स लगातार चुनाव पूर्व 48 घंटे के 'साइलेंस पीरियड' का भी उल्लंघन कर रही हैं. इस दौरान चुनाव प्रचार गैरकानूनी हो जाता है. लेकिन आइटी सेल्स इस नियम को भी खुलेआम चुनौती दे रही हैं.

4- चुनाव आयोग ने 4 जनवरी 2017 को बाइक रैलियां और रोडशोज् की संख्याओं पर लगाम लगाने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया था.

सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी ऐंड सिस्टमेटिक चेंज (सीएएससी) के शोध के मुताबिक बाइक रैलियों और रोडशोजे के लिए पूर्व अनुमति नहीं ली जा रही है.

यही नहीं अस्पताल के नजदीक रैली न करने, मानक के हिसाब से तय संख्या में बाइकों के शामिल होने समेत कई और नियमों की धज्जियां चुनाव में खुलेआम उड़ती हैं.

5-राजधानी में जिस तरह से प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा है उसे देखते हुए भी तुरंत प्रभाव से प्लास्टिक के बैनर और झंडों समेत अन्य प्रदूषण फैलाने वाले संसाधनों पर भी आयोग को कार्रवाई करनी चाहिए.

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