
यूपी चुनाव के चार चरण हो चुके हैं. चुनाव में भाग ले रही सभी राजनीतिक पार्टियों का फोकस पूर्वांचल पर शिफ्ट हो गया है. इस चुनावी समर में आगे की लड़ाई यूपी के जिन इलाकों में होनी है उसमें पूर्वांचल सबसे महत्वपूर्ण है. पूर्वांचल के कुल 28 जिलों के अंतर्गत 117 विधानसभा सीटे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी वोटिंग पूर्वांचल के साथ ही आठ मार्च को है. बीजेपी वाराणसी के सभी आठ विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज करके देश को यह संदेश देना चाह रही है कि वारणसी में मोदी का जलवा कायम है.
हालांकि काशी से जो संकेत आ रहे हैं वो बीजेपी और मोदी के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं.
बागियों ने किया नाक में दम
वाराणसी में हर पार्टी अपने ही बागियों से परेशान है. सभी पार्टियां अपने-अपने बागियों को शांत करवाना चाह रही हैं लेकिन अभीतक किसी पार्टी बहुत सफलता नहीं मिली है. एक समाचार वेबसाइट पर प्रकशित खबर के मुताबिक वाराणसी में पार्टियों के उम्मीदवारों से ज्यादा बागी उम्मीदवारों की संख्या हो गई है.
इन बागियों में बीजेपी के दो ऐसे नेता भी हैं जो पार्टी द्वारा टिकट न दिए जाने से दुखी हैं. इन दोनों नेताओं ने पार्टी पर पैसा लेकर टिकट बांटने जैसा गंभीर आरोप भी लगया है. चुनाव में ये दोनों नेता डटे हैं. मीडियाकर्मियों से बात करते हुए भाजपा के इन दोनों बागी उम्मीदवारों ने बताया कि इस चुनाव में एक ही उद्देश्य है कि भाजपा के उम्मीदवार को किसी भी किमत पर हराना है.
काशी चाहता है बदलाव
वारणसी से बीजेपी एक जबरदस्त जीत चाहती है. वहीं जमीन से आ रहे सकेंत के मुताबिक आम लोग इस बार बीजेपी के उम्मीदवारों को विधानसभा भेजने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. जानकारों का ऐसा मानना है कि आम बनारसी इस बार नए उम्मीदवारों को मौका देने के मूड में दिख रहा है.
इसके पीछे जो मुख्य वजह बताई जा रही है वो यह कि काशीवासी पिछले कई बार से लगभग एक जैसे ही वायदे सुनकर थक चुके हैं. मसलन गंगा की सफाई, उसकी पवित्रता और गौरव लौटाने को लेकर किए जा रहे वायदे काशी के लोग एक अरसे से सुन रहे हैं. बनारस ने पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी को चुना और वो देश के प्रधानमंत्री बने. इसके साथ ही बनारस वासियों की उम्मीदें कई गुना बढ़ गईं. इस चुनाव में बढ़ी हुई इन उम्मीदों का नुकसान बीजेपी को हो सकता है.
आखिर में यह कहा जा सकता है कि मोदी के घर की दीवारें बहुत मजबूत नहीं है. दीवारों के दरकने के संकेत मिल रहे है.