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फिर कवर हो सकती हैं पार्को में हाथी की मूर्तियां और साइकिल ट्रैक

आचार संहिता लगते ही चर्चा में आए दलित प्रेरणा स्थल में लगी हाथी की मूर्तियों और साइकिल ट्रैक, दोनों ही प्रमुख दलों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का सिंबल इसमें नजर आता है. ऐसे में इसे चुनाव के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन माना जा सकता है.

दलित प्रेरणा स्थल में लगे हाथी की मूर्तियां (फोटो-आजतक) दलित प्रेरणा स्थल में लगे हाथी की मूर्तियां (फोटो-आजतक)
अंकित यादव
  • लखनऊ,
  • 13 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 3:02 PM IST

लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और देश भर में आदर्श आचार संहिता लागू है. ऐसे में जगह जगह से राजनैतिक दलों की प्रचार सामग्री हटाई जा रही है. लेकिन एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में हाथी की मूर्तियां और साइकिल ट्रैक चर्चा में है. नोएडा के मशहूर दलित प्रेरणा स्थल के पार्को में लगी हाथी की मूर्तियां और साइकिल ट्रैक हैं. दोनों ही प्रमुख दलों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का सिंबल इसमें नजर आता है. ऐसे में इसे चुनाव के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन माना जा सकता है.

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दरअसल 2012 में कोर्ट के आदेश के बाद नोएडा के मशहूर दलित प्रेरणा स्थल में लगी विशालकाय दर्जनों हाथी की मूर्तियों को चुनाव आयोग ने ढंक दिया था. फिलहाल आचार संहिता लगने के बावजूद इन्हें दोबारा ढंकने के लिए अधिकारी आदेश का इंतजार कर रहे हैं. आम दिनों की तरह लोग यहां टिकट लेकर घूमने पंहुच रहे हैं.

वहीं समाजवादी पार्टी सरकार के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट साइकिल ट्रैक का निर्माण कई शहरों में हुआ है और वहां भी साइकिल का निशान है जो समाजवादी पार्टी का सिंबल है. इसे लेकर भी पिछले चुनावों में विवाद बना था लेकिन फिलहाल अभी इन ट्रैक्स या सिंबल को लेकर चुनाव आयोग ने कोई निर्देश नहीं दिए हैं.

जब इस मामले में हमने नोएडा स्थानीय जिला प्रशासन से बात की तो उन्होंने कैमरे के सामने आने से इंकार कर दिया और कहा कि चुनाव आयोग से अभी तक इसपर कोई निर्देश नहीं आया है.

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बहरहाल सपा और बसपा के लिए हमेशा विवादित रहे ये दोनों काम एक बार फिर आचार संहिता लगते ही सुर्खियों में हैं.

गौरतलब है सन 2012 में इस मुद्दे को लोग कोर्ट तक ले गए थे जिसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग को लखनऊ और नोएडा में बने दलित प्रेरणा स्थल में लगी मूर्तियों को ढकने का निर्देश दे दिया था. जिसपर मायावती ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि ‘खुला हाथी लाख का, ढका हाथी सवा लाख का.

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